बेटी को बचाओ, बेटी को पढ़ाओ

अपने घर के आँगन में, बेटी का वृक्ष लगाओ तुलसी की तरह पूजो, फूलों की तरह सजाओ आने दो इस दुनिया में, कोख में ना बलि चढ़ाओ नन्हें हाथों को पकड़ के, शिक्षा का पथ दिखलाओ बेटी को  बचाओ, बेटी को पढ़ाओ ।   लड़कियां ना होंगी तो, बेटी तुम किसे बुलाओगे रक्षा बंधन के […]

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आतंकवाद का अव हो नामोनिशान

दिल में अव छा गया है जुनून मिलेगी शाँति जव लेगें खून का वदला खून तुमको है भारत माता की आन आतंकवाद का अव हो नामोनिशान…. सहनशीलता की अव हो गई हद पार उठो जागो नोजवानो तुमको है शहीदों की माँ की आन आतंकवाद का अव हो नामोनिशान…. मचा रहे हैं वह कत्लेआम शहीद पर […]

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इंसान बुरा नहीं होता है ।

होनी के साए में पड़कर दिन रात बुरे हो जाते हैं इंसान बुरा नहीं होता है हालात बुरे हो जाते हैं रहें शांत और नैतिकता से अपना सदा लगाव रखें अहंकार की भाषा छोडे़ं दिल में सदा सद्भाव रखें अहंकार में रहने से ताल्लुकात बुरे हो जाते हैं इंसान बुरा नहीं होता है हालात बुरे […]

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प्रचण्ड तमस 

  रात्रि का  प्रचण्ड तमस विकल,विवश मेरा मनस्  एक  रश्मि–रेख-अभीप्सा ऊर्ध्वरेता,  सुविकम्पित ; प्राण अवहेलित,हृदय पर दंश का वह दर्द विखंडित, शूल-प्रभृत  अणु-अणु  से रक्त-शोषण में है सन्नद्ध . नहीं मुझे था ज्ञात किंचित अम्ल-सदृश   प्रेम – पीड़ा दग्ध – विरूपित मुझे करेगी अणु – अणु से, आत्म-वपु से . कण्ठ व्रण-आवृत अचल स्वरहीन, किन्तु […]

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कहानी: बुधवा

**********बुधवा********* —————————————– हरिराम का शव धीरे धीरे अकड़ता जा रहा था। आखिर कब तक एक लाश सही हालत में रह सकती थी? लेकिन हरिराम का छोटा लड़का बुधवा करे भी तो क्या करे? हरिराम के मरते ही उसने अपने दोनों बड़े भाइयों को टेलीग्राम करके पिता के मरने की खबर कर दी लेकिन अभी तक […]

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क्योंकि मैं एक औरत हूं

    मैं चुप रह गई, क्योंकि मै एक औरत हूँ… मुझे माँ की कोख में मारा गया , मेरे वजूद को खत्म कर डाला गया , बार बार मेरा बलात्कार हुआ , इल्ज़ाम दोषी पर नहीं, मुझ पर लगा, सजा भी दोषी को नहीं, मुझको मिली , कपड़ों से लेकर मेरे चरित्र पर प्रश्नचिन्ह […]

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किसी के बीमार होने पर

किसी के बीमार होने पर, ठहर जाती हैं आँखें, उसकी जमीन पर घर के जेवरों पर, बेटे की तनख्वाह पर सच होती आशंकाएँ तार तार होती ज़िन्दगी फिर भी जिसे जाना था चला गया, छोड़ गया,सबको तिल-तिल मरने को| उसकी नासमझ बिटिया भी समझ जाती है, अंतिम बार देख रही है उसे, और शायद यही […]

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उस दिन

उस दिन , जब तुम कार से उतरी थीं | स्वर्ग से आयीं अप्सरा, सी लग रहीं थीं | दिव्या दी, भूमिका तुम्हारा हाथ पकड़ तुमसे मिल रही थीं | मैं भी था सहमा-सहमा सा, अपनी अनिश्चित बारी के, इंतज़ार में | ‘आपका नाम’ तुमने पूछा था | मुद्दतों बाद मुझसे , मेरा नाम किसी […]

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बीते समय की यादें

बैठा हूँ नील गगन के तले अपनी यादों की चादर इस कदर बिछाए जैसे हरे भरे पेड़ों के नीचे मन मोहक घटा छा जाती है मन मे एक लहर सी उठ जाती है जैसे हरे घास के मैदानों मे कोई हवा सी गुजर जाती है देख के प्रकृति का यह मानमोहक रूप जैसे बचपन की […]

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वर्तमान का मानव

सहम जाता है मन कभी कभी जब अपराध देश मे होता है होते देख अपराधों को ऎसे अन्तर्मन घबराता है क्यू होते अपराध देश मे यही सवाल मन मे उठ जाता है ईमानदारी का प्रतीक था जो कभी आज क्यू वो भूल जाता है भरा है स्वार्थ मन मे इतना शायद इसलिए कलयुगी मानव कहलाता […]

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