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अपने घर के आँगन में, बेटी का वृक्ष लगाओ

तुलसी की तरह पूजो, फूलों की तरह सजाओ

आने दो इस दुनिया में, कोख में ना बलि चढ़ाओ

नन्हें हाथों को पकड़ के, शिक्षा का पथ दिखलाओ

बेटी को  बचाओ, बेटी को पढ़ाओ ।

 

लड़कियां ना होंगी तो, बेटी तुम किसे बुलाओगे

रक्षा बंधन के दिन, राखी किस से बँधवाओगे

नवरात्रे जब आएंगे , कंजक तुम किसे बनाओगे

भाई दूज के दिन माथे पर,  तिलक किस से सजवाओगे

कन्यादान का सुख पाना है तो , बेटी के जनक बन जाओ

इस गंगा को बहने दो, इस में ही तीर्थ पाओ

बेटी को बचाओ, बेटी को  पढ़ाओ ।

 

बेटिओं की प्रतिभा पर, जो तुम विश्वास जताओगे

हाथ पकड़ कर बेटिओं को,जो शिक्षा का राह दिखाओगे

बेटिओं के सपनो को, जो मंज़िल तक तुम पहुंचवाओगे

कहीं डॉक्टर, कहीं  इंजीनियर, कहीं राष्ट्रपति भी पाओगे

आज बेटिओं ने विश्व में, ऐसा कमाल कर दिखलाया है

हर क्षेत्र में पाकर सफलता, पूरे विश्व में नाम कमाया है

आज बेटियां नहीं हैं अबला, यह मन से भ्रम मिटाओ

हिम्मत बढ़ाओ बेटिओं की इन को भी आगे तुम बढ़ाओ

बेटी को बचाओ, बेटी को पढ़ाओ ।

 

गर्भ के अंदर बेटिओं के, प्राणो को जो मिटाओगे

पाप के भागी बनोगे तुम, कभी चैन से ना रह पाओगे

महा पाप है भ्रूण हत्या, नरकों में भी जगह ना पाओगे

फिर चाहे कितने भी तीर्थ करो, इस पाप से ना मुक्ति पाओगे

हाथ जोड़ कर विनती है, अपनी सोच को बड़ा बनाओ

बेटों के संग बेटिओं को भी, परिवार का हिस्सा बनाओ

पूरे देश में यही  जाग्रति लाओ, यही सन्देश  फैलाओ

बेटी को बचाओ, बेटी को पढ़ाओ ।

संजय कुमार फरवाहा


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