मैं नहीं मधु का उपासक, है गरल से प्रेम मुझको !

 

कीर्ति, सुख, ऐश्वर्य, धनबल, बाहुबल और बुद्धि बंचित,

सम्पदा से हीन हूँ मैं, फिर मुझे क्यों दम्भ होगा ?

सत्य शिव का मैं पुजारी, मैं नहीं याचक बनूँगा,

नहि जगत से बैर मेरा, स्वाभिमानी ढंग होगा !

शुद्ध मति के प्रेम से ही जगत का कल्याण होगा,

छल-कपट से दूर हूँ मैं, है सरल से प्रेम मुझको,

मैं नहीं मधु का उपासक, है गरल से प्रेम मुझको !!

 

वेदना के नवल कारक नित खड़े प्रतिबिम्ब जैसे,

द्वेष से अनभिज्ञ- संस्कृति से यही शिक्षा मिली है !

जो विधाता ने दिया वह फल मुझे पर्याप्त है बस,

पद, प्रतिष्ठा, पारितोषिक की कहाँ इच्छा मिली है?

स्वाभिमानी हो सदा विचरण करें पावन धरा पर,

युक्ति है गतिशील फिर भी, है अचल से प्रेम मुझको,

मैं नहीं मधु का उपासक, है गरल से प्रेम मुझको !!

 

अल्पता में ही सफल होते रहे हैं शिष्टजन सब,

देव निर्मित इस धरा में, मधुप भी मकरंद भी हैं!

सूर ने तो बिन नयन के देव के दर्शन किये हैं,

ध्यान से देखें तनिक तो, गीत भी हैं, छंद भी हैं !

राह चलते मुझे भी अगणित मिले हैं अडिग भूधर,

किन्तु बहती जान्हवी के, शुद्ध जल से प्रेम मुझको,

मैं नहीं मधु का उपासक, है गरल से प्रेम मुझको !!

 

–    नवीन जोशी ‘नवल’


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नवीन जोशी का जन्म देवभूमि उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले में स्थित 'माला' गाँव में ६ जून १९७१ को एक ब्राह्मण परिवार में हुवा ! उनका पूरा नाम नवीन चंद्र जोशी है ! उनके पिता श्रीमान पं. पदमा दत्त जोशी एक किसान एवं संस्कृत के विद्वान थे, नवीन जोशी 'नवल' उनके (तीन पुत्रियां व तीन पुत्र) छः संतानों में पांचवे नंबर के हैं ! परिवार-जन बचपन से उन्हें प्यार से 'नवल' नाम से पुकारते रहे हैं ! उनकी बाल्यकाल से ही संस्कृत एवं हिंदी काव्य में रूचि थी ! विज्ञान विषयों से १२वीं करने के उपरांत आप अपने बड़े भाई श्री देवेंद्र जोशी (एम० ए०-अर्थशास्त्र), जो दिल्ली में कार्यरत हैं उनके साथ दिल्ली आ गए, जहाँ आकर उन्होंने आगे की पढाई भी स्नातकोत्तर (हिंदी), काम के साथ-साथ जारी रखी, साथ ही साथ अनेक सामाजिक संगठनों में सक्रिय हैं !

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