आखिर क्यों, आखिर क्यों। माँ बनी……………………. बेटी परवरिश की बदनाम। क्या यही था। क्या यही था। उसकी प्यारी ममता का परिणाम। मानो आसुँ बन छलके। मानो आसुँ बन छलके। उसका कोई भयानक उपनाम। गाती थी बिलखती थी। वो प्यारी माँ………….. वो प्यारी माँ………….. आखिर किसे अपना दुख दर्द। जता पाती थी। सोती थी जागती थी। […]
Read More...एक किसान का प्यार :- ” तुम पूछती हो , तुम प्यार पर कविताये क्यों नहीं लिखते ? मैं लिखता हूं , हर दिन , हर क्षण तुम्हारे बारे में आदिम सभ्यता की शुरुआत से प्रलय होने तक ! लेकिन प्रिये , हमारा प्यार जैसे – जैसे बढ़ता गया दूसरों की नजरों में खटकता गया […]
Read More...तुम्हारी याद में निकले जो हमारे आंसू बन गए कुमकुमे जुगनू कभी तारे आँसू मेरी हिम्मत मेरी ताकत है ये प्यारे आँसू जिन्दगी तेरे ही भरोसे गुजारे आँसू रह के खामोश भी हर दर्द बयाँ कर देते दिल पे इक चोट हैं दे जाते करारे आँसू बड़ा जालिम है जमाना नही […]
Read More...जीवन में उदगार स्थापित, मर्यादा से कर पाए। आदर्श पूर्ण हो जीवन, सदमार्ग पर चल पाए। ललाट पर शौर्य की रेखा,शौर्य पूर्ण ही जीवन हो। कायरता की ढाल न लेना,जीवन ही पराक्रमी हो। प्रेम से मार्ग प्रदर्शित, मानवता प्रविष्टि रहे। जीवन के हर इक पहलू में ,देश प्रेम विशिष्ट रहे। बलिदान हुए इस माटी पर,उनकी […]
Read More...शीत-निशा तुम किधर गई थी ? कौन गोद में रैन- बसेरा, किस डाली पर दिवस बिताया ? किनको तुमने इतने दिन तक, अपनी साँसों से कंपाया ? होली, तीज, दिवाली बीती, क्या तुझको यह याद न आया अचरज! तुमने इतने हिम को, इतने दिन तक कहाँ छुपाया सरस गुदगुदी रातों को भी, ले अपने […]
Read More...मैं नहीं मधु का उपासक, है गरल से प्रेम मुझको ! कीर्ति, सुख, ऐश्वर्य, धनबल, बाहुबल और बुद्धि बंचित, सम्पदा से हीन हूँ मैं, फिर मुझे क्यों दम्भ होगा ? सत्य शिव का मैं पुजारी, मैं नहीं याचक बनूँगा, नहि जगत से बैर मेरा, स्वाभिमानी ढंग होगा ! शुद्ध मति के प्रेम से ही […]
Read More...अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ, कर प्रकाश निज हृदयपटल में,अंतर्मन के तिमिर मिटाएं मन के तम को करें पराजित, मानवता को गले लगाएं, मिथ्या, मृषा, अनृत के तम को,सारे जग से आज हरो माँ, अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ !1! धर्म-मार्ग के गामी सब […]
Read More...सो गया साहित्य तो कवि क्या कहे, खो गयी यदि कलम तो कैसे सहे ? रो रही है लेखनी, कागज भरा है आंसुओं से , दुख रहे हैं नेत्र उसके पश्चिमी तम के धुओं से ! अजिर वंशज भानु के, पथ मांगते हैं उड्गनों से , चाह है नव-पल्लवों की तमस-युत ऊसर वनों से ! […]
Read More...हे मित्र ‘समय’ तुम रुको तनिक,अब कुछ कर लेना बाकी है मानव बनने में समय लगा, नर जीवन जीना बाकी है ! जब कदम चल पड़े उत्तरार्ध, चंचल मन क्यों तू विचलित है लेकर आता रवि तेज गगन, अवसान भी उसका निश्चित है बस वर्तमान में ही जी ले, ना भूत-भविष्यत् की चिंता क्या […]
Read More...बसंत ऋतु का हुआ आगमन, झूमें आम, कुसुमित डाली। पीली सरसो, लहर रही है, खेतों में है हरियाली। महक उठे हैं गाँव-गली सब, नयी उमंगे, हर मन में। हवा बसंती चले मस्त हो, थाप पड़े, उसकी तन में। चना, मटर, सरसो भी अब, फूलों से कर रहे सिंगार। गेहूँ,धनियाँ,पालक,मूली, हरियल चोला रहे निहार। दुल्हन के […]
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