राष्ट्रपति के अधिकार तथा अन्य जानकारियां
भारतीय संविधान के भाग 5 के अनुच्छेद 52 में भारत के राष्ट्रपति का वर्णन है । अनुच्छेद 52 से 78 तक संघ की कार्यपालिका का वर्णन किया गया है । विभिन्न अनुच्छेदों में राष्ट्रपति के अधिकार, कर्तव्य तथा अन्य जानकारियों का वर्णन किया गया है । संघ की कार्यपालिका के अंतर्गत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , मंत्रिमंडल तथा महान्यायवादी शामिल होते हैं ।
राष्ट्रपति भारत संघ का मुखिया होता है । राष्ट्रपति को भारत का प्रथम नागरिक के रूप में जाना जाता है । वह राष्ट्र की एकता व अखंडता का प्रतिनिधित्व करता है । राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं होता है । इसके बावजूद राष्ट्रपति को अनेक अधिकार दिए गए हैं । उच्चतम न्यायालय से दंडित हुए व्यक्ति को भी राष्ट्रपति क्षमादान कर सकता है । यह शक्ति राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है | इसके खिलाफ अपील भी नहीं किया जा सकता । भारत के सभी लोगों द्वारा राष्ट्रपति के पद को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है । राष्ट्रपति जनता की दृष्टि में गौरव के प्रतीक के रूप में सम्मानित हैं । वरीयता अनुक्रम के रूप में भारत के राष्ट्रपति को प्रथम स्थान दिया गया है ।
राष्ट्रपति के पद के लिए अहर्ताएं या योग्यता
इसके अतिरिक्त नामांकन हेतु निम्न शर्तें भी पूर्ण करनी होगी –
भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 55 के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है । राष्ट्रपति का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता , बल्कि निर्वाचन मंडल के सदस्यों द्वारा उसका चुनाव किया जाता है ।
राष्ट्रपति का चुनाव भारत निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है । आयोग द्वारा राष्ट्रपति के पद समाप्ति से पहले , 60 दिन की अवधि में किसी भी दिन आयोग द्वारा निर्वाचन की अधिसूचना जारी की जा सकती है । निर्वाचन की तिथियां इस प्रकार नियत की जायेगी कि पद समाप्ति के अगले ही दिन निर्वाचित राष्ट्रपति पद ग्रहण करने में सक्षम हो सके ।
राष्ट्रपति के निर्वाचन में निम्न व्यक्ति भाग ले सकते हैं–
1 . राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा के सभी निर्वाचित सदस्य भाग ले सकते हैं ।
2 . राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग ले सकते हैं ।
3 . केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली व पुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग ले सकते हैं ।
ऐसे सदस्य जो राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं ले सकते | उनका विवरण निम्न प्रकार है-
एक विधायक के मत का मूल्य
एक विधायक के मत का मूल्य जानने के लिए प्रत्येक विधानसभा के निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या , उस राज्य की जनसंख्या को , उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों तथा 1000 के गुणनफल से प्राप्त संख्या द्वारा भाग देने पर प्राप्त होती है । एक विधायक के मत के मूल्य की गणना किस प्रकार करेंगे ।
एक विधायक के मत का मूल्य = राज्य की कुल जनसंख्या/राज्य विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्य * 1/1000
एक संसद सदस्य के मत का मूल्य
एक संसद सदस्य के मत का मूल्य जानने के लिए संसद के प्रत्येक सदन के निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्या , सभी राज्यों के विधायकों के मतों के मूल्य को संसद के कुल सदस्यों की संख्या से भाग देने से प्राप्त होती है | एक सांसद के मत के मूल्य की गणना इस प्रकार करेंगे
एक सांसद के मतों का मूल्य= सभी राज्यों के विधायकों के मतों का कुल मूल्य / संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल सदस्य संख्या
किसी भी उम्मीदवार को राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचित होने के लिए मतों का एक निश्चित भाग प्राप्त होना अनिवार्य होता है । मतों का निश्चित भाग जानने के लिए कुल वैध मतों की , निर्वाचित होने वाले कुल उम्मीदवारों ( केवल एक ही उम्मीदवार राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होता है ) की संख्या में एक जोड़कर प्राप्त संख्या द्वारा, भाग देने पर भागफल में एक जोड़कर प्राप्त होता है
निश्चित मतों की मूल्य की गणना इस प्रकार करेंगे
निश्चित मतों का भाग = कुल वैध मत / 1+1=(2)+1
निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य को केवल एक मतपत्र दिया जाता है । मतदाता वोट देते समय अपना वरीयता क्रम 1, 2, 3…….आदि अंकित करता है। यह वरीयता क्रम उम्मीदवारों की संख्या पर निर्भर करता है । प्रथम चरण में प्रथम वरीयता के मतों की गणना होती है । यदि प्रथम चरण में ही उम्मीदवार को निर्धारित मत प्राप्त हो जाता है तो वह निर्वाचित घोषित हो जाता है , अन्यथा मतों के स्थानांतरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
द्वितीय चरण की गणना का प्रावधान है कि प्रथम वरीयता के न्यूनतम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार के मतों को रद्द कर दिया जाता है । तथा इसके द्वितीय वरीयता के मत अन्य उम्मीदवारों के प्रथम वरीयता के मतों में स्थानांतरित कर दिए जाते हैं । जब तक कोई उम्मीदवार निर्धारित मत पाकर विजयी घोषित नहीं हो जाता , तब तक मतगणना की प्रक्रिया चलती रहती है ।
राष्ट्रपति द्वारा शपथ
किसी भी राष्ट्रपति को राष्ट्रपति पद को ग्रहण करने से पूर्व शपथ लेनी पड़ती है | राष्ट्रपति द्वारा शपथ इस प्रकार ली जाती है-
” मैं ( नाम ) की शपथ लेता हूं कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण , संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा । “
यह शपथ राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है । मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति को पद की शपथ दिलाई जाती है ।
राष्ट्रपति के वेतन भत्ते व सुविधाएं
राष्ट्रपति के वेतन भत्ते व अन्य सुविधाएं निम्न है
राष्ट्रपति का कार्यकाल
राष्ट्रपति का कार्यकाल पद धारण करने की तिथि से 5 वर्ष तक होता है । यदि राष्ट्रपति चाहे तो किसी भी समय अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को दे सकता है । राष्ट्रपति अपने पद पर तब तक बना रह सकता है , जब तक दूसरे राष्ट्रपति का निर्वाचन नहीं हो जाता । भारत के संविधान में यह व्यवस्था है कि एक ही व्यक्ति चाहे जितनी बार राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हो सकता है ।
अमेरिका के संविधान में एक व्यक्ति अधिकतम दो बार ही राष्ट्रपति बन सकता है ।
राष्ट्रपति के पद त्याग की स्थिति
राष्ट्रपति के पद निम्न स्थितियों में रिक्त हो सकता है । जो इस प्रकार हैं
(1) पदासीन राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष का कार्यकाल समाप्त हो जाने पर ।
(2) राष्ट्रपति द्वारा त्यागपत्र देने पर ।
(3) राष्ट्रपति की मृत्यु होने पर ।
(4) महाभियोग प्रक्रिया द्वारा पद से हटाए जाने पर ।
(5) निर्वाचन अवैध घोषित होने पर ।
उपरोक्त परिस्थितियों के आधार पर ही राष्ट्रपति का पद रिक्त सकता है |
राष्ट्रपति की शक्तियां एवं कार्य
राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है । उसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अनेक प्रकार की शक्तियां भारतीय संविधान द्वारा प्राप्त हैं । परंतु संसदीय व्यवस्था होने से राष्ट्रपति वास्तव में इन शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करता है । भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को ऐसी शक्तियां भी दी गई है , जिसको लागू करने के लिए उसे किसी अन्य के सलाह की आवश्यकता नहीं पड़ती |राष्ट्रपति की शक्तियां एवं कार्य को निम्न रूपों में देखा जा सकता है –
कार्यकारी शक्तियां
राष्ट्रपति के कार्यकारी शक्तियां व कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
विधायी शक्तियां
राष्ट्रपति के विधायी शक्तियां व कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
(1) वह प्रत्येक नए चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित करता है ।(2) वह संसद की बैठक बुला सकता है । वह पूरे लोकसभा को विघटित कर सकता है ।
(3) किसी प्रस्ताव पर गतिरोध की स्थिति में वह संसद की संयुक्त अधिवेशन को बुला सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है ।
(4) वह राज्यसभा में 12 व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है जो साहित्य , कला, विज्ञान , समाज सेवा आदि विषयों के जानकार हों ।
(5) वह लोकसभा में दो आंग्ल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है ।
(6) जब कोई विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाता है तो उस विधेयक को सहमति के लिए राष्ट्रपति के पासभेजा जाता है । उस संदर्भ में राष्ट्रपति के पास निम्न विकल्प होता है –
(क) वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे देता है ।
(ख) विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है |
(ग) विधेयक को ( यदि वह धन विधेयक नहीं है तो ) संसद के पास पुनर्विचार के लिए लौटा देता है ।
यदि संसद पुनर्विचार के लिए लौटाए गए विधेयक को संशोधन के साथ ही या बिना संशोधन के पुनः पारित करती है तो उस स्थिति में राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही होती है ।
(7) जब संसद सत्र न चल रहा हो तो उस समय राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है । अध्यादेश संसद द्वारा बनाए गए कानून के बराबर ही होता है , परंतु इसे छह हफ्तों के भीतर संसद से पारित करवाना आवश्यक है । राष्ट्रपति अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है ।
(8) वहां महानियंत्रक व लेखा परीक्षक , संघ लोक सेवा आयोग व अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है ।
(9) वह केंद्र शासित प्रदेशों में नियम बना सकता है ।
(10) राज्य विधायिका द्वारा पारित किए गए किसी भी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तो इस संबंध में राष्ट्रपति के पास निम्न विकल्प होते है|
(क) विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे देता है ।
(ख) अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रखता है ।
(ग) राज्यपाल को निर्देश दे देता है कि विधेयक (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो ) को विधायिका को पुनर्विचार हेतु लौटा दे ।
यदि राज्य विधायिका विधेयक को संशोधन के साथ या बिना संशोधन के पुन: राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति इस बार भी स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है ।
वित्तीय शक्तियां –
राष्ट्रपति के वित्तीय शक्तियां एवं कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न है
(1) धन विधेयक को राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है यदि विधेयक धन विधेयक है या नहीं इस संदर्भ में अंतिम निर्णय लोकसभा अध्यक्ष का होता है ।
(2) वह केंद्रीय बजट को संसद पटल पर प्रस्तुत करता है ।
(3) वह केंद्र एवं राज्यों के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए प्रत्येक 5 वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है ।
(4) अनुदान के संबंध में कोई भी मांग किए जाने के संबंध में राष्ट्रपति की अनुमति ली जानी अनिवार्य है । वह किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था भारत के आकस्मिक निधि से कर सकता है ।
न्यायिक शक्तियां
राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां एवं कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
कूटनीतिक शक्तियां
राष्ट्रपति की कूटनीतिक शक्तियां एवं कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
सैन्य शक्तियां
राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियों एवं कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
आपातकालीन शक्तियां
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को आपातकालीन शक्तियां प्राप्त हैं , जिनका उपयोग विशेष परिस्थितियों में किया जाता है , यह शक्तियां निम्नलिखित हैं –
राष्ट्रीय आपातकाल
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकालीन शक्तियां प्राप्त है । राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों के कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
(1) राष्ट्रीय आपातकालीन शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में करता है | ऐसी स्थिति की आशंका के आधार पर भी आपातकाल की घोषणा की जा सकती है ।
(2) राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किए जाने के लिए कैबिनेट की लिखित अनुमोदन आवश्यक है । इस प्रावधान को 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा जोड़ा गया ।
(3) राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किए जाने के एक माह के अंदर संसद से पारित किया जाना आवश्यक है । ऐसा न होने पर यह समाप्त हो जायेगा ।
(4) संसद के अनुमोदन के बाद एक बार में 6 माह के लिए बढ़ाया जा सकता है । इस प्रकार आवश्यकतानुसार इसे कई बार विस्तारित किया जा सकता है ।
(5) राष्ट्रीय आपातकाल को पूरे देश में एक साथ या देश के किसी विशेष भू-भाग में लगाया जा सकता है ।
(6) राष्ट्रपति इसे कभी भी वापस ले सकता है ।
(7) लोकसभा में साधारण बहुमत के द्वारा इसे हटाया भी जा सकता है ।
(8) राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन किया जा सकता है ।
राष्ट्रपति शासन
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति शासन का प्रावधान है । राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति शासन संबंधी शक्तियों व कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –
(1) राष्ट्रपति द्वारा संविधान की विफलता के आधार पर किसी भी प्रांत में राष्ट्रपति शासन की घोषणा की जा सकती है
(2) सामान्य तौर पर राज्यपाल की अनुशंसा के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है ।
(3) राष्ट्रपति शासन घोषित हो जाने पर 2 माह के भीतर संसद से पारित होना आवश्यक है । इस अवधि को 6 माह के लिए बढ़ाया जा सकता है । इसके बाद इस अवधि को विस्तारित करने की भी व्यवस्था है ।
(4) राष्ट्रपति शासन में राष्ट्रपति द्वारा राज्य के किसी भी अधिकारी या संस्था की शक्ति का अधिग्रहण किया जा सकता है ।
(5) राष्ट्रपति शासन के दौरान मौलिक अधिकार सुरक्षित रहते हैं ।
(6) राष्ट्रपति जब चाहे राष्ट्रपति शासन हटा सकती है ।
(7) उच्चतम न्यायालय द्वारा भी राष्ट्रपति शासन हटाया जा सकता है ।
वित्तीय आपातकाल
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकालीन शक्तियां प्राप्त है । राष्ट्रपति के वित्तीय आपातकालीन शक्तियों व कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
(1) वित्तीय अस्थिरता की स्थिति में वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है ।
(2) संसद द्वारा एक बार वित्तीय आपातकाल अनुमोदन हो जाने पर राष्ट्रपति द्वारा स्वयं वापस न लेने की स्थिति तक जारी रहता है ।
राष्ट्रपति द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया
भारतीय संविधान जितना लचीला है ,उतना कठोर भी है । भारतीय न्याय व्यवस्था में चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक सभी के लिए कानून बने हैं । कानून का उल्लंघन होने पर सभी के लिए दंड संहिता भी बनी हुई है । जहां हमारे देश भारत के राष्ट्रपति को मृत्युदंड पाए व्यक्ति की सजा को भी माफ करने की शक्ति भारतीय संविधान द्वारा दी गई है , वहीं उन्हें भी संविधान का अतिक्रमण किए जाने पर महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 61 में ” राष्ट्रपति पर महाभियोग ” का वर्णन किया गया है । यदि राष्ट्रपति द्वारा संविधान का अतिक्रमण किया जाता है तो संसद को यह अधिकार है कि उसके ऊपर महाभियोग का प्रस्ताव पारित करके उसे पद से हटा सकती है । यह संसद की एक अर्ध न्यायिक प्रक्रिया है ।
महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है । संसद के जिस सदन द्वारा प्रस्ताव लाया जाता है , उस सदन के कम से कम एक चौथाई (1/4) सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए । इस प्रस्ताव की सूचना राष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व होनी चाहिए महाभियोग का प्रस्ताव दो तिहाई (2/3) बहुमत से पारित हो जाने पर यह प्रस्ताव दूसरे सदन को भी भेज दिया जाता है । वहां महाभियोग के आरोपों की जांच की जाती है। राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से महाभियोग लगाने पर स्पष्टीकरण दे सकता है । यदि दूसरा सदन भी आरोपों को सही पाता है और दो तिहाई (2/3) बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव को पारित कर देता है तो उसे पारित होने की तिथि से राष्ट्रपति को उसके पद से हटा दिया जाता है ।
अभी तक अर्थात 2020 तक किसी भी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा नहीं हटाया गया है ।
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