किसी भी देश का संविधान एक ऐसी बुनियादी व्यवस्था प्रदान करती है, जिसके माध्यम से वहां की जनता उत्तरोत्तर विकास के पथ पर अग्रसर हो तथा शासित होकर अपने कर्तव्यों द्वारा समाज के विकास में अपना योगदान दे सके।संविधान वह व्यवस्था है, जो अपने नागरिकों को समान रूप से विकास के अवसर प्रदान करती है। विधिक व्यवस्था के कारण ही तानाशाही का अंत एवं एक गुणवान एवं अत्यंत निर्धन व्यक्ति भी उच्च पद पर आसीन हो सकता है। संविधान की ताकत जनता एवं शासक वर्ग के हाथों में निहित रहती है।
भारत में संवैधानिक विकास का प्रारंभ ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ई. से माना जा सकता है। ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज व्यापारियों का एक संगठित समूह था,जो भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आई थी । ईस्ट इंडिया कंपनी को ब्रिटिश सरकार ने भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया था। धीरे-धीरे अंग्रेजों का व्यापार बढ़ता गया तथा उन्होंने अपनी जड़े जमानी शुरू कर दी ।व्यापार की सुरक्षा के नाम पर सेना रखना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार अंग्रेजों की शक्ति में इतना इजाफा हो गया कि वह भारतीय रियासतों के राजनीतिक एवं आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगे।भारतीय रियासतों के आंतरिक कला का अंग्रेजों ने भरपूर फायदा उठाया ।अंग्रेजों ने एक की मदद करके दूसरे को परास्त कर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में शत-प्रतिशत सफल रहे।ईस्ट इंडिया कंपनी जो भारत में व्यापार करने के लिए आई थी , धीरे-धीरे भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बन गई। 1757 ई. की प्लासी की लड़ाई , 1764 ई. के बक्सर का युद्ध तथा 1765 ई. की इलाहाबाद (प्रयागराज )की संधि के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल ,बिहार और उड़ीसा में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। अंग्रेजों की राजनीतिक ताकत को बढ़ते देख ब्रिटेन की सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि ईस्ट इंडिया कंपनी के क्रियाकलापों को नियंत्रित करने के लिए कानून की आवश्यकता है । इस प्रकार भारत में पहला अधिनियम रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के रूप में आया । इसके बाद अनेक एक्ट समय-समय पर पारित किए गए , जिसका वर्णन आगे दिया जाएगा।
भारत में धीरे-धीरे अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित हो गया । भारत की सोई जनता को धीरे-धीरे यह आभास होने लगा कि अंग्रेजों से सत्ता हासिल करनी होगी। सन 1857 ई. में स्वतंत्रता के लिए पहली लड़ाई हुई, परंतु भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करने में असफल हो गए । भारतीयों ने स्वतंत्रता के लिए लंबी लड़ाई लड़ी, अंततोगत्वा भारतीयों को सफलता मिली तथा अंग्रेज भारत छोड़कर जाने को तैयार हो गये । अंग्रेजों की कूटनीतिक सफलता के कारण भारत देश दो भागों में बँट गया, भारत और पाकिस्तान । 15 अगस्त सन 1947 को भारत आधिकारिक रूप से स्वतंत्र हो गया । अब भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपना एक स्वतंत्र रूप से संविधान निर्मित करना था । भारतीय संविधान सभा द्वारा 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवंबर 1949 को पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया। भारत गणराज्य का नया संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ, जो आज तक चल रहा है।
भारत का संविधान निर्मित करने के लिए पूर्व में ब्रिटिश संसद द्वारा समय-समय पर अनेक अधिनियम/चार्टर पारित किए गए थे, जिसे भारत में संविधान का शुरुआत कहा जा सकता है । इसे भारतीय संविधान का आधार भी कहा जा सकता है । जिससे भारत में संवैधानिक विकास , स्त्रोत एवं आधार तत्व की जानकारी प्राप्त हो सके। इसे दो रूपों में भी देखा जा सकता है।
जिसका विवरण निम्नलिखित है-
इस अधिनियम का अत्यधिक संवैधानिक महत्व था । ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियंत्रित करने की दिशा में पहला प्रयास था । इस अधिनियम द्वारा बंगाल के शासन को चलाने के लिए एक गवर्नर जनरल तथा चार सदस्यीय परिषद में निहित किया गया । प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्स तथा परिषद के सदस्य के रूप में क्रमशः क्लैवरिंग , मॉनसन , बरबेल तथा फ्रांसिस को नियुक्त किया गया । इनका कार्यकाल 5 वर्ष का था , तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा इन्हें हटाया जा सकता था । इसके द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी ।
इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार थी :
इस प्रकार 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट के द्वारा कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया । कंपनी के शासन के लिए पहली बार एक लिखित संविधान भारत आया । इस अधिनियम के परिणामस्वरूप राजस्व ,नागरिक आदि मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया।
1773की रेगुलेटिंग की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1781 का संशोधन अधिनियम पारित किया । इसे बंदोबस्त कानून के नाम से भी जाना जाता है । इस अधिनियम से कलकत्ता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए भी कानून बनाने का अधिकार मिल गया ।
इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार थी :
भारत में कंपनी की गिरती साख को बचाने के उद्देश्य से इस अधिनियम को अस्तित्व में लाया गया ।
1786 ई. में लार्ड कार्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया।
कंपनी के कार्यों के सुधार के लिए इस चार्टर को पारित किया गया।
1813 का चार्टर अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया।
1813 के अधिनियम के बाद भारत में कंपनी के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि हुई । अंग्रेजों ने महाराष्ट्र ,पंजाब ,सिंध ,इंदौर, ग्वालियर आदि क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया । इसी प्रभुत्व को अधिक मजबूती प्रदान करने के लिए 1833 का चार्टर अधिनियम पारित किया गया।
ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किए गए विभिन्न चार्टर अधिनियम की श्रृंखला में 1853 का चार्टर अधिनियम अंतिम अधिनियम था । यह अधिनियम मुख्य रूप से भारतीयों की तरफ से कंपनी के शासन की समाप्ति की मांग की गयी । जो तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की रिपोर्ट पर आधारित थी ।
1857 की क्रांति जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है । इस क्रांति से कंपनी शासन की असंतोषजनक नीतियां उजागर हो गयी, जिसका फायदा उठाकर ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया।इसके बाद भारत का शासन सीधे ब्रिटिश राजशाही को हस्तांतरित हो गया ।
1 नवंबर 1858 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने भारत के लिए नीतिगत घोषणा की । उन्होंने कहा कि भारत प्रजा को ब्रिटिश प्रजा के समान मानने , सभी लोगों के उन्नति के प्रयास करने तथा लोक सेवाओं में योग्यता के आधार पर बिना भेदभाव की यह निष्पक्ष भर्ती की जाएगी ।
18 57 की क्रांति में ब्रिटिश सरकार को यह संदेश दिया गया है कि भारत में शासन सत्ता चलाना है तो वैधानिक रूप से भारतीयों का सहयोग लेना आवश्यक है । यह अधिनियम भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण एवं युगांत कारी घटना के रूप में संदर्भित है ।
इस अधिनियम के तहत 28 अप्रैल 18 76 को ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया को भारत का सम्राज्ञी घोषित किया गया ।
सर जॉर्ज चिजनी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गयी । उस कमेटी ने जो सुझाव दिए उसे 1892 के अधिनियम में सम्मिलित किया गया ।
इन सबके बावजूद अधिनियम में अनेक कमियां थी , जिसकी भारतीयों द्वारा बार-बार आलोचना की जाती थी।
जिस समय यह अधिनियम आया उस समय लॉर्ड मॉर्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे तथा लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय थे । दोनों ही इस बात से सहमत थे कि सुधारों की आवश्यकता है । अतः भारत परिषद अधिनियम 1909 प्रकाश में आया । इस अधिनियम को “ मार्ले मिंटो सुधार ” के नाम से भी जाना जाता है ।
20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने पहली बार एक ऐतिहासिक वक्तव्य दिया जिसका सार तत्व इस प्रकार था –
“शासन की सभी शाखाओं में भारतीयों को शामिल करना और स्वायत्तशासी संस्थाओं का क्रमिक विकास जिससे ब्रिटिश भारत के अभिन्न अंग के रूप में उत्तरदाई सरकार की उत्तरोत्तर उन्नति हो सके।”
इस घोषणा को कार्य रूप देने के लिए” मोंटफोर्ड रिपोर्ट 1918″ प्रकाशित की गयी । यही रिपोर्ट 1919 के अधिनियम का आधार स्तंभ बना । उस समय मांटेग्यू भारत के राज्य सचिव थे तथा चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे । इस कारण इस कानून को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है ।
ब्रिटिश सरकार ने नवंबर 1927 में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया । इस आयोग में एक भी सदस्य भारतीय नहीं था । इस आयोग का मुख्य उद्देश्य नए संविधान में भारत की वास्तविक स्थिति का पता लगाना था । भारत आते ही साइमन कमीशन का विरोध शुरू हो गया । “ साइमन कमीशन वापस जाओ ” के नारे लगने लगे । सभी दलों ने साइमन कमीशन का विरोध किया । साइमन कमीशन की रिपोर्ट जून 1930 में प्रकाशित हुई । इस रिपोर्ट में द्वैध शासन प्रणाली सरकारों का विस्तार साम्प्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था आदि को जारी रखने की सिफारिशें की थी । साइमन कमीशन की मांग को कांग्रेस ने ठुकरा दिया तथा 1929 के लाहौर अधिवेशन में ‘ पूर्ण स्वराज ‘ का प्रस्ताव पारित किया गया ।
28 फरवरी 1928 ई. को दिल्ली में सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया गया । संविधान का प्रारूप निर्माण के लिए पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय कमेटी बनाई गयी । नेहरू रिपोर्ट को लखनऊ सम्मेलन में स्वीकार की गयी । जिसे “ नेहरू रिपोर्ट ” के नाम से जाना जाता है । दिसंबर 1928 ई. में कलकत्ता में सर्वदलीय सम्मेलन किया गया, जिसमें इस रिपोर्ट पर आपत्ति उठाई गयी । इसमें सभी समुदायों के सभी निर्वाचन समूह का प्रस्ताव था । इस प्रस्ताव का सबसे अधिक खिलाफत मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी ।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट जून 1930 में प्रकाशित हुई । प्रकाशन के पूर्व ही लॉर्ड इर्विन ने घोषणा की थी कि साइमन रिपोर्ट को गोलमेज में सम्मेलन में विचारार्थ रखा जायेगा । पहला गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को हुआ । इस सम्मेलन में देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा व्यापारिक नेताओं ने भी भाग नहीं लिया । जिसका प्रमुख कारण रहा कि अधिकांश नेता सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद थे । इस कारण प्रथम गोलमेज सम्मेलन निरर्थक साबित हुई ।
जनवरी 1931ई. में गांधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया । दूसरा गोलमेज सम्मेलन दिसंबर 1921 ई. को लंदन में आयोजित किया गया । इस सम्मेलन में कांग्रेस की तरफ से महात्मा गांधी ने भाग लिया । सरोजिनी नायडू और पंडित मदन मोहन मालवीय ने ब्रिटिश सरकार के मनोनीत सदस्य के रूप में भाग लिया । इनके अतिरिक्त मोहम्मद इकबाल , घनश्याम दास बिरला , एस.के. दत्ता, सैयद अली इमाम आदि ने भाग लिया । गांधी जी ने अछूतों को अल्पसंख्यक का दर्जा न देने की वकालत की । गांधीजी का मंतव्य था की दलित हिंदू धर्म के ही अंग है । दलित नेता अंबेडकर आदि अछूतों के लिए अलग से प्रावधान के पक्ष में थे । इस प्रकार “ पूना समझौते ” का आविर्भाव हुआ । जिसके द्वारा हिंदुओं में विभिन्न वर्ग समूहों को विशेष प्रतिनिधित्व दिया गया । इन प्रावधानों का भी विरोध किया गया।
तीसरा तथा अंतिम गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1932 में लंदन में हुआ । तीनों गोलमेज सम्मेलनों की सिफारिशों को आधार बनाकर ब्रिटिश सरकार ने श्वेत पत्र जारी किया । लार्ड लिनोलिथो की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति नियुक्ति की गई । इस समिति द्वारा कुछ संशोधन कर 1935 का भारत शासन अधिनियम 1935 बनाया गया ।
अल्पसंख्यकों को रिझाने हेतु ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैजमे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 ई. में एक योजना की घोषणा की । इसमें मुस्लिम , सिख , इसाई तथा दलितों के लिए भी अलग निर्वाचन की व्यवस्था थी । इसे कम्युनल अवॉर्ड अर्थात सांप्रदायिक अवॉर्ड के नाम से जाना गया । दलितों के लिए अलग निर्वाचन की व्यवस्था से गांधी बहुत दुखी हुए । गांधी जी ने पुणे की यरवदा जेल में अनशन आरंभ कर दिया । गांधीजी तथा कांग्रेस नेताओं और बी आर अंबेडकर व दलित नेताओं के बीच एक समझौता हुआ कि हिंदू निर्वाचन व्यवस्था से दलितों को अलग न किया जाय । बल्कि दलितों के लिए स्थान आरक्षित किया जाय । इस तरह दलितों के लिए भी स्थान आरक्षित किया गया जिसे “ पूना पैक्ट ” या “ पूना समझौता ” के नाम से जाना गया ।
यह अधिनियम भारतीय संविधान के लिए एक विस्तृत दस्तावेज के रूप में उपादेय है। 1935 के अधिनियम में 231 अनुच्छेद (धाराएं ) तथा 10 अनुसूचियां थी।यह अधिनियम एक सशक्त एवं महत्वपूर्ण अधिनियम साबित हुआ ।
(i) संघीय सूची ( 59 विषय)
(ii) राज्य सूची (54 विषय)
(iii) समवर्ती सूची (दोनों के लिए 36 विषय)
ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी 1947 को घोषणा करते हुए कहा कि 30 जून 1947 को भारत से ब्रिटिश शासन को खत्म कर दिया जायेगा । इसके बाद सत्ता भारतीयों को सौंप दी जायेगी । इसके लिए मुस्लिम लीग राजी नहीं हुआ । मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन का प्रस्ताव रखा । 3 जून 1947 को भारत के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना पेश की । जिसमें भारत और पाकिस्तान नाम से 2 देशों के रूप में भारत का विभाजन हुआ , जिसे माउंटबेटन योजना कहा गया । अंततोगत्वा कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने इसे स्वीकार किया । 14 एवं 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को भारत में ब्रिटिश शासन का अंत हो गया । लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने । उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई । इस तरह भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 बनाकर लागू किया गया ।
भारत की अंतरिम सरकार का गठन 2 सितंबर 1946 को संविधान सभा द्वारा किया गया । अंतरिम सरकार 15 अगस्त 1947 तक रही । अंतरिम सरकार की अध्यक्षता वायसराय द्वारा की जाती थी । जवाहरलाल नेहरू को परिषद का उपाध्यक्ष बनाया गया । ब्रिटिस भारत में यह पहला अवसर था कि सरकार भारतीयों के हाथों में थी ।
सदस्य | विभाग |
1. जवाहरलाल नेहरू | परिषद के उपाध्यक्ष , राष्ट्रमंडल सम्बंध , विदेश मामले |
2. सरदार वल्लभभाई पटेल | गृह , सूचना एवं प्रसारण |
3. जगजीवन राम | श्रम |
4. सरदार बलदेव सिंह | रक्षा |
5. लियाकत अली खाँ | वित्त |
6. सी.एच. भाभा | कार्य , खान , एवं उर्जा |
7. आसफ अली | रेलवे एवं परिवहन |
8. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद | खाद्य एवं कृषि |
9. जॉन मथाई | उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति |
10. सी. राजगोपालाचारी | शिक्षा एवं कला |
11. गजनफर अली खान | स्वास्थ्य |
12. अब्दु-रव-निश्तार | डाक एवं वायु |
13. आई. आई. चुंदरीगर | वाणिज्य |
14. जोगेंद्रनाथ मंडल | विधि |
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सदस्य | विभग |
1. पं. जवाहरलाल नेहरू | प्रधानमंत्री ,राष्ट्रमंडल तथा विदेश मामले , वैज्ञानिक शोध |
2. सरदार वल्लभ भाई पटेल | गृह , सुचना एवं प्रसारण , राज्यों के मामले |
3. डॉ. बी. आर. अम्बेडकर | विधि |
4. डॉ. राजेंद्र प्रसाद | खाद्य एवं कृषि |
5. मौलाना अबुल कलाम आजाद | शिक्षा |
6. जगजीवन राम | श्रम |
7. राजकुमारी अमृता कौर | स्वास्थ्य |
8. डॉ जॉन मथाई | रेलवे एवं परिवहन |
9. आर. के षणमुगल शेट्टी | वित्त |
10. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी | उद्योग एवं आपूर्ति |
11. सी. एच. भाभा | वाणिज्य |
12. रफी अहमद किदवई | संचार |
13. नरहर विष्णु गाडगिल | कार्य , खान एवं उर्जा |
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