कौटिल्य का तर्कशास्त्र

राजनीति के छाया में तुम खेल रहे,क्यो इतने गंदे खेल। आजाद कराने में इस मुल्क को,कितनो को हुई थी जेल। धूमिल कर दी तुमने,आजाद भगत,सुखदेव की कहानी। जननी जन्मभूमि हेतु,जब प्राण गवां दी झांसी की मर्दानी। मिट गए जो धरती खातिर,जरा याद करो उनकी कुर्बानी। यादों को घोल पी गए तुम,सावरकर-सुभाष की बलिदानी। कौटिल्य के […]

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“चलो जीते है”

उधार है ये जिंदगी,उधार है ये रिश्ते। कोई किसी का नही,इन्सां हो या फ़रिश्ते। वक्त की पहिया,जो हर वक्त चलती। नही कभी ये थकती,नही कभी ठहरती।   चार दिन के मेले में,सब यहां अजनबी। जाने क्यों फिर भी,सब बने है मजहबी। एक इंसान दूसरे से, क्यो है डरा हुवा। सब निर्दोष है,फिर प्यार क्यो थका […]

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