रामायण – महर्षि वाल्मीकि                  

महर्षि वाल्मीकि का सामन्य परिचय-

रामकथा को आधार बनाकर सर्वप्रथम ‘ रामयण ’ नामक महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि और आर्ष कवि भी कहा जाता है | इनके सम्बंध में कोई प्रामाणिक जीवन परिचय नहीं मिलता है , परंतु अनेक जनश्रुतियाँ मिलती है |

    इस आधार पर वाल्मीकि का पूर्व नाम रत्नाकर था । जो डाकू थे ,लूट पाट करना उनका पेशा था | एक बार की घटना है |  एक साधू उसी रास्ते से जा रहे थे , जिस रास्ते पर रत्नाकर डाकू लूट- पाट करता था | रत्नाकर ने साधू को बंदी बना लिया | इस पर साधू ने कहा कि आप जो लूट पाट  करते है , यह किसके लिये करते है | इस पर रत्नाकर ने बताया कि मैं अपने परिवार के लिये करता हूँ | साधू ने बड़ी ही विनम्रता से रत्नाकर से कहे कि मै यहाँ बंदी हूँ | आप कष्ट करके अपने परिवार वाले से पूछ लीजिए कि जो आप लूट पाट सम्बंधी पापकर्म कर रहे है , उसमें परिवार के सदस्य भी भागीदार बनेंगे अथवा नहीं | इस पर रत्नाकर ने बड़े ही विश्वास के साथ कहा कि अवश्य परिवार के लोग मेरे सभी कार्य में हिस्सा लेंगे | इस बात की पुष्टि करने के लिए रत्नाकर अपने घर गया और बारी – बारी से परिवार के सभी सदस्यों से पूछा कि मै जो पापकर्म कर रहा हूँ , क्या आप लोग मेरे पापकर्म में भागीदार बनेंगे| इस पर परिवार के सभी सदस्यों ने कहा कि पाप कर्म तो आप कर रहे है , हम क्यों भोगेंगे | इस प्रकार का जवाब मिलते ही रत्नाकर वापस साधू के पास आया और उनके पैरों में गिरकर क्षमा मांगने लगा | रत्नाकर ने साधू से पापमुक्ति का उपाय पूछा | इस पर साधू ने कहा कि आप राम नाम का जप करिये आप के सारे पाप धुल जायेगें | रत्नाकर राम नाम का उच्चारण न कर सका और मरा –मरा करने लगा | मरा-मरा कहते-कहते रत्नाकर परिवर्तित होकर साधु वेश में रहने लगे तथा मुनि सा जीवन व्यतीत करने लगे | रत्नाकर नाम परिवर्तित होकर वाल्मीकि नाम पड़ गया |

    इसके उपरांत महर्षि वाल्मीकि आध्यात्मिक ज्ञान की तलास में साधना में लीन रहने लगे | एक दिन की घटना है , ये नदी तट पर विचरण कर रहे थे , वहाँ क्रौंच नामक पक्षी काम क्रीड़ा में लिप्त थे ,तभी एक शिकारी ने नर पक्षी की बाण से हत्या कर दी, उस दृश्य को देखकर अकस्मात ही उनके मुख से एक श्लोक निकल पड़ा ,जो श्लोक निम्न प्रकार था |

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा: |

यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम् || [ बा. द्वितीय सर्ग /15 ]

[ भावार्थ- हे निषाद तुम अनंत वर्षो तक  प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सकोगे , क्योंकि तुमने कामक्रीड़ा करते हुए क्रोंच पक्षी के जोड़े में से एक का वध कर दिया है | ]

          यही श्लोक उनके काव्य का प्रथम सूत्रपात कहा जाता है | इसके बाद महर्षि वाल्मीकि के मानस में इच्छा जागृति हुई कि  एक ऐसे काव्य की रचना की जाय ,जो लौकिक और पारलौकिक दृष्टि से जनमानस में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सके | इसी विचारधारा को मूर्तिरूप देने हेतु इन्होने राम को आधार बनाकर “ रामायण ” की रचना की , जिसकी प्रासंगिकता आज भी विद्यमान है |

वाल्मीकि कृत रामायण का सामान्य परिचय –

रामायण महर्षि वाल्मीकि की प्रसिद्ध रचना है | इस महाकाव्य में भगवान राम के जीवन दर्शन का वर्णन है । इसमें सात काण्ड है – बालकाण्ड,अयोध्या काण्ड,अरण्य काण्ड , किष्किंधा काण्ड , सुंदर काण्ड , युद्ध काण्ड और उत्तर काण्ड ।  इस महाकाव्य में लगभग ( 24000 )  चौबीस हजार श्लोक हैं । इस कारण रामायण को “चतुविंशति साहस्त्री संहिता ” के नाम से भी जाना जाता है ।  वाल्मीकि ने मुख्य रूप से अनुष्टुप् छंदों का प्रयोग किया  है । इनके विषय में यह मान्यता है  कि गायत्री मंत्र के 24 वर्णो का आधार बनाकर 24 हजार श्लोक बनाए गए हैं । प्रत्येक एक हजार श्लोक के बाद गायत्री मंत्र के नये वर्ण से नया श्लोक प्रारम्भ होता है । रामायण को आदि काव्य एवं महाकाव्य के रूप में  स्वीकार किया जाता है । इसे आर्षकाव्य भी कहा जाता है । रस , भाषा , शैली , भाव , विचार आदि दृष्टिकोण से रामायण को भारतीय काव्यों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । रामायण परवर्ती कवियों  , लेखकों नाटककारों  के लिए उपजीव्य काव्य के रूप में प्रसिद्ध है ।

रामायण  का रचनाकाल –

रामायण के रचनाकाल के सम्बंध में सटीक जानकारी नहीं मिलती है । अनुमान और  अन्य स्त्रोंतो से जानकारी करने का प्रयास किया जाता है । अनेक भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने रामायण के रचना काल के सम्बंध में शोध किये हैं  । परंतु विद्वानों के मतों में विभिन्नता है ।

          रामायण में एक श्लोक है –“ यथा हि चोर: स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि । ” –( रामायण , अयो. 109-34) इस श्लोक में बुद्ध को चोर एवं नास्तिक बताया गया है । इसको यदि आधार लिया जाय तो रामायण बुद्ध के बाद की रचना सिद्ध होती है । विद्वानों ने इसको प्रक्षिप्त मानकर खण्डन कर दिया । परंतु रामायण को बुद्ध के बाद की रचना को अनेक विद्वानों का समर्थन प्राप्त है । इसके विपरीत बौद्ध जातकों में रामकथा का मिलना रामायण को बुद्ध के पहले का सिद्ध करती है ।

          हिंदू काल गणनानुसार समय को चार युगों में विभाजित किया जाता है – सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग एवं कलियुग । प्रत्येक युग के समय को देखा जाय तो एक कलियुग – 432000 वर्ष का , द्वापर युग – 864000 वर्ष का , त्रेतायुग – 129600 वर्ष का तथा सतयुग – 1728000 वर्ष का होता है । भगवान राम त्रेतायुग में पैदा हुए थे । इस गणना के अनुसार रामायण का समय कम से कम 870000 वर्ष सिद्ध होता है । परंतु इसका कोई वैधानिक आधार नहीं है । तर्क की कसौटी पर भी नहीं उतरता । इस कारण विद्वानों ने इस मत को नकार दिया ।

          रामायण के रचनाकाल के सम्बंध में भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों के प्रमुख मतों का विवरण दिया जा रहा है जो निम्न प्रकार है ।

  1. वरदाचार्य – इनका मत है कि राम त्रेतायुग में हुए । त्रेतायुग ईसा से 8 लाख 76 हजार एक सौ वर्ष पूर्व हुआ था । वाल्मीकि राम के समकालीन थे । इस प्रकार वरदाचार्य जी पूर्वोक्त समय को ही रामायण का रचनाकाल मानते है ।
  2. स्वामी करपात्री , पं. ज्वालाप्रसाद मिश्र , श्री राघवेंद्र चरितम् के रचनाकार श्री भगवतानंद गुरु आदि के अनुसार श्री राम का अवतार श्वेतवाराह कल्प के सातवें वैवस्वत मंवंतर के चौबीसवें त्रेतायुग में हुआ था । इस गणना से राम एवं रामायण का काल पौने दो करोड़ वर्ष पूर्व का है ।
  3. काशी प्रसाद जायसवाल – 200 ई. पू. मानते हैं ।
  4. जयचंद्र विद्यालंकार – 200 ई. पू. मानते हैं ।
  5. मैकडानल – 200 ई.पू.
  6. कामिल बुल्के – 600 ई. पू.
  7. गोरेसियो- 1200 ई. पू.
  8. श्लेगल – 1100 ई. पू.

विद्वानों के मतों का विश्लेषण करने पर किसी  निश्चित तिथि पर नहीं पहुचा जा सकता है । परंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि रामायण वैदिक काल के बाद की रचना है ।      

रामायण पर आश्रित साहित्य –

वाल्मीकि कृत रामायण में वर्णित रामकथा  ने परवर्ती साहित्यकारों पर इतना प्रभाव डाला कि अनेक कवियों , लेखकों , नाटककारों ने रामकथा को आधार बनाकर अनेक प्रसिद्ध रचनाओं का उल्लेख किया जा रहा है , जो रामकथा पर आधारित है ।

रामकथा पर आश्रित रचनाएँ

रचनाकाररचनाभाषाविधा
कालिदासरघुवंशसंस्कृतकाव्य
प्रवरसेनसेतुबंधसंस्कृतकाव्य
क्षेमेंदरामायण मंजरीसंस्कृतकाव्य
कुमारदासजानकी- हरणसंस्कृतकाव्य
भट्टिभट्टिकाव्य ( रावणवध )संस्कृतकाव्य
भवभूतिउत्तररामचरित , महावीर चरितसंस्कृतनाटक
राजशेखरबालरामायणसंस्कृतनाटक
जयदेवप्रसन्नराघवसंस्कृतनाटक
भोजरामायण चम्पूसंस्कृतचम्पू
वेंकटाध्वरिउत्तर चम्पूसंस्कृतचम्पू

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