पुराणों का परिचय –

पुराण का शाब्दिक अर्थ प्राचीन या पुराना है |पुराणों में वर्णित विषयों की कोई सीमा नहीं है | इसमें प्राचीन कथानक , वंशावली ,इतिहास, भूगोल , चिकित्सा , खगोल शास्त्र ,व्याकरण ,हास्य – व्यंग , प्रेमकथाओं के साथ – साथ धर्मशास्त्र एवं दर्शन आदि का वर्णन किया गया है |इसमें सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर प्रलय तक का भी वर्णन किया गया है |

    अमरकोष आदि प्राचीन कोषों में पुराण के पाँच लक्षण बताय गए है –

सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मंवंतराणि च |

वंशानुचरितं चैव पुराण पञ्चलक्षणम् ||

पाँचों लक्षण इस प्रकार हैं —

  1. सर्ग – सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन |
  2. प्रतिसर्ग – प्रलय एवं सूष्टि का पुन: प्रादुर्भाव का वर्णन |
  3. वंश – देवों और ऋषियों की वंशावली का वर्णन |
  4. मन्वंतर – प्रत्येक मनु का काल और उस समय की प्रमुख घटनाओं का वर्णन |
  5. वंशानुचरित – सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं के जीवन चरित का वर्णन |

वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना एवं पुनर्रचना की | वेदों की जटिल भाषा को पुराणों के माध्यम से सरल भाषा में समझाया गया है |

पुराणों के माध्यम से ऐतिहासिक वंशावलियों की जानकारी प्राप्त होती है | राजा परीक्षित से लेकर पद्मनंद तक का अज्ञात इतिहास पुराणों से ही मिलता है |आंध्र वंशावली के लिए मत्स्य पुराण , मौर्य वंशावली के लिए वायु पुराण के माध्यम से जानकारी प्राप्त होती है | पुराणों में समुद्रों , नदियों , पर्वतों आदि का भौगोलिक वर्णन भी मिलता है | पुराणों की समय सीमा 600 ई. पू. से 500 ई. पू. के लगभग माना जाता है | पुराणों में गुप्तकालीन राजाओं का वर्णन है, लेकिन हर्ष( 606 ई. – 647 ई. ) और उसके बाद के राजाओं का वर्णन नहीं मिलता है |

पुराणों का संक्षिप्त परिचय – पुराणों की संख्या 18 मानी गयी है | जिसका विवरण निम्न है –

  1. ब्रह्मपुराण – इसे आदि पुराण भी कहते है | प्राचीन सभी पुराणों में इसका उल्लेख है | इसका एक परिशिष्ट है , जिसे सौर पुराण कहते है | ब्रह्म पुराण में विभिन्न तीर्थों ,मनु की उत्पत्ति ,उनके वंशजों , प्राणियों की उत्पत्ति आदि का वर्णन किया गया है | इसमें राम और कृष्ण के कथा के माध्यम से अवतार वाद की प्रतिष्ठा की गयी है | इसमें सूर्य को शिव कहा गया है | ब्रह्म पुराण में 246 अध्याय एवं लगभय 10000 श्लोक हैं | ब्रह्म पुराण में उड़ीसा के तीर्थों का महत्त्व वर्णित है |
  2. विष्णु पुराण – यह पुराण भी अत्यंत प्राचीन है | यह पुराण वैष्णवों का आधारभूत पुराण है | इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं | इसमें मुख्य रूप से भी कृष्ण के चरित्र का वर्णन है , संक्षेप में राम – कथा का उल्लेख भी मिलता है | इस पुराण में आकाश आदि भूतों का परिमाण , समुद्र, सूर्य आदि का परिमाण , मन्वन्तर ,राजर्षि एवं देवर्षि आदि के चरित्र का वृहद वर्णन है | इस पुराण में ऐतिहासिक मौर्य राजाओं की वंशावली दी गयी है |
  3. भागवत पुराण – यह पुराण हिंदुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है | इसे श्री मद्भागवत या केवल भागवत पुराण भी कहते हैं वैष्णवों का सबसे प्रिय पुराण हैं | यह पुराण 12 स्कंधों में विभाजित है , जिसमें 18 हजार श्लोक है | इसके10 वें स्कंध में  श्री कृष्ण की रासलीलाओं का बड़ा ही मनोहारी एवं विस्तृत वर्णन है | यह पुराण अनेक कवियों एवं लेखकों के लिए उपजीब्य हैं | हिंदी साहित्य में सूरदास आदि कवियों ने कृष्ण का मनोहारी चित्रण किया है , जिससे उनके काव्य की प्रतिष्ठा बढ़ी | भागवत पुराण में महर्षि सूत जी साधुओं को कथा सुनाते हैं | सूत जी कहते है कि  यह कथा हमने ऋषि शुकदेव जी से सुनी थी | सभी अवतारों का वर्णन किया गया है | बीच – बीच में दार्शनिक विवेचन भी किया गया है |
  4. अग्नि पुराण – उपयोगिता की दृष्टि से अग्निपुराण को विश्वकोश कहा जा सकता है | इस पुराण में उस समय में प्रचलित लगभग सभी विद्याओं का समावेश है , जैसे- व्याकरण , ज्योतिष ,आयुर्वेद ,गन्धर्ववेद , वनस्पति शास्त्र , अर्थशास्त्र ,नाट्यशास्त्र ,वैदिक कर्मकाण्ड आदि |इस पुराण के वक्ता भगवान अग्निदेव हैं | विष्णु और शिव की पूजा के विधान , नृसिंह मंत्र आदि की जानकारी दी गयी है ।                                                           
  5. मत्स्यपुराण – इस पुराण की मुख्य कथा भगवान श्रीहरि के मत्स्य अवतार की मुख्य कथा है | इसमें 14 हजार श्लोक है | ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से इस पुराण में आंध्र राजाओं की प्रामाणिक वंशावली दीगयी है |इसमें दक्षिण भारत की मूर्तिकला , स्थापत्य कला , वास्तुकला का सुंदर वर्णन किया गया है | इसके अतिरिक्त अनेक तीर्थ , दान , यज्ञ ,व्रत , जलप्रलय, मत्स्य और मनु के सम्वाद , नर्मदा माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर विशेष प्रकाश डाला गया है | इसमें जैनधर्म , बौद्ध धर्म , नरसिंह आदि उपपुराणों का उल्लेख है | एक अन्य मान्यता के अनुसार एक राक्षस ने वेदों को चुराकर समुद्र में छुपा दिया ,तब भगवान विष्णु ने मत्स्य  रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया | इसके बाद उन्हे पुन: स्थापित किया |
  6. मार्कण्डेय पुराण – यह पुराण भी प्राचीन पुराणों में से है | इसमें मार्कण्डेय ऋषि ने क्रोष्ठि को सुनाया था | इसमें इंद्र , अग्नि , ब्रह्मा , सूर्य आदि देवताओं को मुख्य देव माना है | भगवती की विस्तृत महिमा का वर्णन करते हुए दुर्गा –सप्तशती की कथा एवं माहात्म्य का वर्णन है |
  7. ब्रह्माण्ड पुराण – इस पुराण में 12000 श्लोक हैं | इसमें पौराणिक, विश्व खगोल , भूगोल , तीर्थ माहात्म्य आदि विषय हैं | इसके सात खण्डों में आध्यात्म रामायण  दी गयी है |
  8. भविष्य पुराण – इसमे भविष्य वाणियाँ दी गयी है | इस पुराण में धर्म, सदाचार , नीति ,उपदेश , व्रत , तीर्थ , दान , ज्योतिष एवं आयुर्वेद के विषयों का वर्णन है |
  9. ब्रह्मवैवर्त पुराण – इस पुराण में सृष्टि को ब्रह्म का विवर्त माना है , इसलिए इसका नाम ब्रह्मवैवर्त हैं | इसके चार खण्ड हैं – ब्रह्मखण्ड ,प्रकृति खण्ड , गणेश खण्ड , तथा कृष्ण जन्म खण्ड | इस पुराण में जीव उत्पत्ति के कारण तथा ब्रह्माजी द्वारा समस्त भूमंडल के जीवों के जन्म और उसके पालन – पोषण का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है | इसमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन श्री राधा की गोलोक लीला और अवतार लीला का सुंदर विवेचन किया गया है |
  10. वामन पुराण – इसमें 10000 श्लोक हैं | इस पुराण में भगवान विष्णु के वामन अवतार का विस्तृत वर्णन दिया गया है | इसमें वामन , नर नारायण ,भक्त प्रहलाद ,तथा श्रीदामा आदि के सुंदर आख्यान हैं |
  11. वाराह पुराण – इसमें मुख्य रूप से विष्णु के वाराहावतार का वर्णन किया गया है | इस पुराण में 218 अध्यायों में 24 हजार श्लोक हैं | इस पुराण में पृथ्वी और वाराह भगवान का शुभ संवाद,महातया का आख्यान, सत्ययुग के वृत्तांत में रैम्प का चरित्र , गौरी की उत्पत्ति , महिषासुर के विध्वंस में ब्रह्मा , विष्णु ,रुद्र तीनों की शक्तियों का माहात्म्य आदि आख्यान वर्णित है | इसके अतिरिक्त नचिकेता का उपाख्यान तथा मथुरा माहात्म्य वर्णित है |
  12. नारद पुराण – यह पुराण स्वयं महर्षि नारद के मुख से कहा गया एक वैष्णव पुराण है | इस पुराण को बृहन्नारदीय पुराण भी कहा जाता है | इसके दो खंडों में क्रमश: 125 और 82 अध्याय है, तथा लगभग 22000 श्लोक हैं | इस पुराण में बारह महीनों से जुड़ी ब्रत कथाएँ , गंगा माहात्म्य भक्ति का महत्व दर्शाने वाली विलक्षण कथाएँ , मोक्ष प्राप्ति का वर्णन किया गया है | इसमें वेदांगों का भी वर्णन किया गया है | 
  13. वायुपुराण  या शिवपुराण – इसे शिवपुराण भी कहते है | इसमें 112 अध्याय और 10 हजार श्लोक हैं | इस पुराण में वायुदेव ने श्वेत कल्प के प्रसंगों में धर्मों का उपदेश किया है | यह पुराण पूर्व और उत्तर दो भागों से युक्त है | इसमें भिन्न – भिन्न मंवंतरों में राजाओं के वंश का वर्णन है | नर्मदा के तीर्थों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है | इस पुराण में भगवान शिव की उपासना की चर्चा अधिक हैं | इसमें भूगोल , खगोल ,सृष्टिक्रम , तीर्थ , ऋषिवंश, राजवंश,शिवभक्ति आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन है |
  14. पद्मपुराण – गणना की दृष्टि से यह पुराण दूसरे स्थान पर है | स्कंद पुराण को प्रथम स्थान प्राप्त है | पद्मपुराण में 5 खंड हैं – सृष्टि , भूमि, स्वर्ग , पाताल और उत्तरखंड |इसमें55 हजार श्लोक है | इस पुराण को पद्मपुराण की संज्ञा इसलिए दी गयी कि पद्म का अर्थ होता है – कमल का फूल | सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी ने भगवान नारायण के नाभि-कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि की रचना सम्बंधी ज्ञान का विस्तार किया था | इस पुराण में विष्णु की महिमा के साथ श्री राम और श्री कृष्ण के चरित्र ,तुलसी महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुंदर वर्णन किया गया है | इस पुराण में ही राधा को कृष्ण की पत्नी के रूप में दिखाया गया है |
  15. लिंगपुराण – इस पुराण में 11 हजार श्लोक हैं | भगवान शिव के 28 अवतारों का वर्णन किया गया है | शिव लिंग की पूजा का माहात्म्य बताया गया है | कणाद मुनि कृत वैशेषिक दर्शन ग्रंथ में लिंग शब्द का अर्थ चिन्ह अथवा प्रतीक बताया गया है | भगवान महेश्वर को आदि  पुरूष कहा गया है | यह शिवलिंग ज्योति रूपा चिन्मय शक्ति का चिह्न हैं |
  16. कूर्मपुराण– पहले इस पुराण की चार संहिताएँ थी | इस समय केवल एक ब्राह्मी संहिता ही प्राप्य है | इसमे 6 हजार श्लोक हैं | भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण करके इस पुराण को राजा इंद्रद्युम्न को सुनाया था ।  इसमें शिव के अवतार का वर्णन है | इस पुराण में दो गीताएँ भी है – ईश्वर गीता और व्यास गीता | कूर्म पुराण सृष्टि वर्णन ,कल्प , मन्वन्तर , युगों की काल गणना ,योगशास्त्र , सूर्यचंद्रवंश वर्णन , वामनावतार की कथा, अनुसूया की संतति वर्णन , यदुवंश के वर्णन में भगवान  श्री कृष्ण के मंगलमय चरित्र का सुंदर वर्णन किया गया है |
  17. गरूण पुराण– इस पुराण में 18000 श्लोक माने जाते हैं | गरुण पुराण वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बंधित है | महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरूण को विष्णु का वाहन कहा जाता है | गरूण की जिज्ञासा शांत करने के लिए जो ज्ञानमय उपदेश भगवान विष्णु द्वारा दिया गया है , उसे ही गरूण पुराण कहा जाता है | इसमें मृत्यु के उपरांत के गूढ़ रहस्यों का वर्णन है | इस पुराण को मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है , इसलिए मृत्यु के बाद गरूण पुराण के श्रवण का प्रावधान है | इसमें फलित ज्योतिष , गणित ,श्राड्ढ- तर्पण ,व्याकरण,आयुर्वेद , नीतिसार ,विविध रत्नों आदि का वर्णन है | गरूण पुराण में मृत्यु के बाद प्राणियों की स्थिति, जीव की यमलोक यात्रा  तथा विभिन्न कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों का विस्तृत वर्णन है | इसमें बताया गया है कि जीव के नरक किस प्रकार के होते है, किस पाप की क्या सजा है और नरकों के दारूण दुखों से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जाता है | इन सब बातों का विस्तारपूर्वक वर्णन गरूण पुराण में मिलता है |
  18. स्कंद पुराण – भगवान स्कंद के द्वारा कहने के कारण इस पुराण का नाम स्कंद पुराण नाम पड़ा | इस पुराण में 81000 श्लोक तथा सात खण्ड हैं | सात खण्डों के नाम – माहेश्वर खण्ड , वैष्णव खण्ड ,ब्रह्मखण्ड , काशी खण्ड ,अवंती खण्ड, नागर खण्ड ,प्रभास खण्ड | यह पुराण सभी पुराणों में सबसे विशालकाय है | इसमें 5 संहिताएँ है –सनत्कुमारीय , ब्रह्मी, वैष्णवी ,शंकर या अगस्त तथा सौर |

     इस पुराण में अयोध्या , जगन्नाथपुरी ,रामेश्वरम् , कन्याकुमारी , द्वारका ,काशी आदि तीर्थों की महिमा का मनोहारी कथाएँ वर्णित है | इस कारण भौगोलिक ज्ञान पर्याप्त रूप में ज्ञानवृद्धि में सहायक है | इसके अतिरिक्त सती चरित्र ,शिव – पार्वती विवाह ,कार्तिकेय जन्म , तारकासुर वध आदि का वर्णन किया गया है | इस पुराण का दक्षिण भारत में अधिक प्रचार – प्रसार है |     


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