हिन्दी पद्य साहित्य का विकास –( रीतिकाल व आधुनिक काल )
हिन्दी पद्य साहित्य के इतिहास मे कक्षा 10 के पाठ्यक्रम के अनुसार रीतिकाल व आधुनिक काल का अध्ययन करना | जिसका विवरण निम्न है |
हिन्दी पद्य साहित्य का इतिहास – हिन्दी पद्य साहित्य के इतिहास को चार कालो मे बांटा गया है | जिसका काल क्रमानुसार विवरण निम्न है |
नाम | समय |
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1. आदिकाल (वीरगाथा काल) | सन् 743 ई. से 1343 ई. तक |
2. पूर्व- मध्य काल (भक्तिकाल) | सन् 1343 ई. से 1643 ई. तक |
3. उत्तर- मध्य काल (रीतिकाल, श्रृंगारकाल,) | सन् 1643 ई. से 1843 ई. तक |
4. आधुनिक काल | सन् 1843 ई. से आज तक |
(क) भारतेन्दु युग | |
(ख) व्दिवेदी युग | |
(ग) छायावाद युग | |
(घ) प्रगतिवाद युग | |
(ङ) प्रयोगवाद युग | |
(च) नई कविता |
रीतिकाल –आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने सन् 1643 ई. से 1843 ई. तक के काल खण्ड को ‘ रीतिकाल’ नाम दिया है | मिश्र बंधुओ ने रीतिकाल को ‘अलंकृत काल’ तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने श्रृंगारकाल नाम दिया |
रीतिकाल का वर्गीकरण –
रीति ग्रंथो को आधार बना कर रीतिकालीन ग्रंथो को तीन भागो मे बांटा गया है –
1. रीतिबद्ध
2. रीतिसिद्ध
3. रीतिमुक्त
1. रीतिबद्ध – रीतिबद्ध वर्ग मे उन कवियो की रचानए आती है, जो रीति के बंधन बंधे हुए है, अर्थाथ जिन कवियो ने रीतिग्रंथो की रचना की है | प्रमुख कवियो मे चिंतामणि, देव, मतिराम,सुरति मिश्र, बिखारी दास, ग्वाल, सोमनाथ, जसवंत सिंह, दुलह, रसित गोविंद, कुलपति मिश्र आदि |
2. रीतिसिद्ध – इस वर्ग मे वे कवि आते है जिन्होने रीतिग्रंथो की रचना नही की परंतु उन्हे रीति की भली- भाति जानकारी थी तथा उन कवियो ने अपने काव्यो मे उसका पूर्ण रुप से उपयोग किया है | रीतिसिद्ध कवियो मे बिहारी का नाम बडे आदर के साथ लिया जाता है | इनकी मात्र एक रचना ‘बिहारी-सतसई’ है |
3. रीतिमुक्त – रीतिमुक्त उन कवियो को कहा गया जो कवि ‘रीति’ के बंधन से पूर्णत: मुक्त थे | जिन्होने लक्षण ग्रंथो की रचना नही की | रीति मुक्त कवियो ने ह्दय की स्वतंत्र वृत्तियो के आधार पर काव्य रचना की |
रीतिमुक्त कवियो मे प्रमुख है – आलम, बोध, धनानंद, ठाकुर आदि |
कवि | रचनाए |
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1.केशवदास | रामचंद्रिका, कविप्रिया,रसिप्रिया, विज्ञान गीता आदि |
2.भूषण | शिवराज भूषण, शिवाबावनी, छत्रसाल दशक |
3.मतिराम | रसराज, ललित ललाम, मतिराम सतसई, आदि |
4.बिहारी | सतसई |
5.पदमाकर | जगव्दिनोद, पद्दाभरण, गंगा लहर, कलि पच्चीसी आदि |
6.देव | भाव विलास. भवानी विलास, रस विलास, आदि |
7.घनानन्द | सुजान हित प्रबंध, वियोग बेलि, आदि |
8. भिखारी दास | काव्य निर्ण, छन्द प्रकाश, श्रृंगार निर्णय आदि |
9.सेनापति | कपित्त रत्नाकर |
10.बोधा | इश्कनमा, विरहवारीश |
1. आश्रयदाताओ की प्रशंसा
2. श्रृंगारिक रचनाओ की प्रमुखता
3. रीतिग्रंथो का निर्माण
4. काव्य भाषा के रुप मे ब्रज भाषा की प्रतिष्ठा
5. सवैया और दोहा छंदो का प्रचुर मात्रा मे प्रयोग
6. प्रकृति मे उदीपन रूप मे चित्रण
7. कला पक्ष की प्रधानता
आधुनिक काल – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने इतिहास ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ मे आधुनिक काल को गद्य काल का नाम दिया |
गद्य का परिपूर्ण विकास आधुनिक काल मे ही हुआ है | इस काल मे नवीन छंदो, अलंकारो तथा नवीन शैलियो का विकास हुआ | कविता बंधनो से मुक्त हो गई | कवियो ने स्वछंद रुप से काव्यो के नये प्रतिमान स्थापित किये , सदियो से आ रही काव्य परम्पराओ को तोडा |
आधुनिक काल को अनेक नाम दिये गये यथा – नवीन विकास का काल, गद्य काल, पुनर्जागरण काल आदि |
आधुनिक काल को विभिन्न कालो के नाम से जाना जाता है, जिसका विवरण निम्न है –
भारतेन्दु युग का नाम भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाम पर पडा | ये आधुनिक साहित्य के जन्मदाता माने जाते है | इस काल मे नाटक, उपन्यास, कहानी, अलोचना, निबंध आदि का प्रचुर मात्रा मे विकास हुआ | काव्य भाषा के क्षेत्र मे ब्रज भाषा की प्रधानता रही, खडी बोली मे गद्य लिखे जाने लगे |
कवि | रचना |
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | प्रेमाश्रुवर्णन, प्रेम सरोवर, प्रेम माधुर, प्रेम प्रलह, गीत गोविंद, प्रेमफुलवारी, वर्षा विनोद, विनय प्रेम पचास आदि |
बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ | आनंद अरूणोदय, मयंक महिमा , अलौकिक लीला आदि |
प्रताप नारायण मिश्र | मन की लहर, श्रृंगार विलास, प्रेम पुष्पावली आदि |
अम्बिकादत्त व्यास | हो हो होरी, सुरवि सतसई, पावस पचासा आदि |
राधाचरण गोस्वामी | नवभक्त पाल |
व्दिवेदी युग का नाम आचार्य महावीर प्रसाद व्दिवेदी जी के नाम पर पडा | आचार्य महावीर प्रसाद व्दिवेदी सन् 1903 ई. मे सरस्वती पत्रिका के संस्थापक बने | पत्रिका के माध्यम से उन्होने ब्रज भाषा को त्याग कर खडी बोली मे काव्य लिखने का सुझाव दिया | व्दिवेदी जी ने भाषा संस्कार, व्याकरण की शुद्धि, विराम चिन्हो का सही प्रयोग करने का सुझाव लेखको एवं कवियो को दिया |
कवि | रचनाएँ |
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अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘ हरिऔध’ | प्रियप्रवास, रस कलश, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे, वैदही वनवास, पद्दा प्रसून |
मैथिलीशरण गुप्त | जयद्रथ वध, जय भारत, भारत भारती, विष्णुप्रिया, पंचवटी, व्दापर, साकेत, यशोधरा |
जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ | उद्धवशतक, हरिश्चन्द्र, गंगावतरण, हिंडोला |
माखनलाल चतुर्वेदी | हिम किरीटिनी, माता, हिम तंरगिनी,समर्पण युग चारण |
सियाराम शरण गुप्त | मौर्य विजय, बापू, दूर्वादल, अनाथ, पाथेय, मृण्मयी, विषाद,आर्द्रा |
रामनरेश त्रिपाठी | मिलन, स्वप्न,मानसी, पथिक |
बालकृष्ण शर्मा ‘ नवीन ’ | कुंकुम, बिनोवा स्तवन, उर्म्मिला, हम विषपायी जनम के, अपलक, क्वासि, रश्मिम रेखा |
सुभद्रा कुमारी चौहान | त्रिधारा, मुकुल गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ करूणा कादम्बिनी, प्रेम पचीसी, कृषक कुंदन त्रिशूल तरंग, राष्टीय वीणा |
व्दिवेदी युग के बाद छायावाद युग का आगमन हुआ | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मुकुट धर पाण्डेय को छायावाद का जनक माना है | छायावादी काव्यो मे अनुभूति एवं चिंतन की प्रधानता रही | छायावाद के प्रमुख आधार स्तम्भ कवियो ने प्रसाद,पंत, निराला और महादेवी वर्मा का नाम उल्लेखनीय है |
कवि का नाम | रचनाएँ |
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1. जयशंकर प्रसाद | झरना, कामायनी, आंस, लहर |
2.सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ | परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास |
3. सुमित्रानन्दन पन्त | ग्रन्थि, वीणा, उच्छवास, गुंजन, पल्लव |
4.महादेवी वर्मा | यामा, नीरजा, सांध्यगीत, नीहार, रश्मि |
प्रगति शब्द का अर्थ है आगे बढना या विकास करना किन्तु हिंदी साहित्य मे प्रगतिवादी शब्द प्रयोग इन अर्थो मे नही लिया जाता है | हिंदी साहित्य मे प्रगतिवादी कविताए मार्क्सवादी विचार धारा से प्रभावित है |
साम्यवादी विचारक समाज मे एक रुपता स्थापित करना चाहते है | जिससे शोषण की प्रक्रिया बन्द हो | समाज मे उद्दोगपति, पूजीपति, जमींदार, मिलमालिक, गरीब कमजोर एवं मजदूरो का शोषण करते है | प्रगतिवादी कविताए शोषण के विरूद्ध आवाज उठाती है
इस प्रकार की कविता को प्रगतिवादी कविता कहते है |
प्रमुख कवि | रचनाएँ |
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1. केदारनाथ अग्रवाल | अपूर्वा, फूल नही रंग बोलते है, नींद के बादल, युग की गंगा, आग का आईना, समय-समय पर |
2. त्रिलोचन | मै उस जनपद का कवि हूँ, धरती, मिट्टी की बारात |
3.रांगेय राघव | अजेय खण्डहर, राह के दीपक, मेधावी,पांचाली |
4.शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ | वाणी की व्यथा, पर आंखे नही भरी जीवन के गान, विश्वास बढता ही गया, हिल्लोल |
5.नागार्जुन ‘वैद्दानाथ मिश्र’ | युगधारा, तुमने कहा था, सतरंगे पंखो वाली, प्यासी पथराई आंखे, भस्मांकुर |
हिंदी काव्य में प्रयोगवाद का आरम्भ सन् 1943 ई. से हुआ है| कवियों ने काव्य में नये प्रयोग करने शुरु किये | नये-नये काव्य उपमानो का जन्म हुआ |भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता को कवियों ने स्थान दिया | दमित कामवासना का चित्रण काव्य मे होने लगा|
अज्ञेय के सम्पादकत्व मे सन् 1943 ई. में तार सप्तक का प्रकासन हुआ |प्रयोगवादी काव्य का प्रारम्भ तार सप्तक से माना जाता है | जिसमे सात कवियो की रचनायें संकलित है | कवियो के नाम है – नेमिचन्द जैन, भारत भूषण अग्रवाल, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, रामविलास शर्मा, गिरिजा कुमार माथुर, गजानन माधव मुक्तिबोध, प्रभाकर माचवे, |
दूसरा सप्तक अज्ञेय के सम्पादकत्व मे सन् 1951 ई. मे प्रकाशित हुआ | इस सप्तक मे सात कवियो के रचनाए प्रकाशित हुई , कवियो के नाम है – धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, हरिनारायण व्यास, शकुंतला माथुर रघुवीर सहाय |
कवि | रचनाएँ |
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1. अज्ञेय | आंगन के पार व्दार, सुनहले शैवाल, हरी घास पर क्षण भर, इत्यलम, असाध्य वीणा आदि | |
2. भवानी प्रसाद मिश्र | खुशबू के शिलालेख, गीत फरोश आदि | |
3. धर्मवीर भारती | कनुप्रिया, अन्धा युग, ठण्डा लोहा आदि | |
4. गिरिजा कुमार माथुर | धूप के धान, साक्षी रहे वर्तमान, शिलापंख चमकीले आदि | |
हिंदी की ‘नई कविता’ पूर्व परंपरागत कविताओं से भिन्न है | कवियो में नये-नये उपमानो का प्रयोग करने शुरू किये | नवीन काव्य शैलियों का विकास हुआ |बौद्धिकता तथा मुक्त यथार्थवाद कविता के नये आयाम बने | नई कविता में लघु मानव के महत्व को दर्शाया गया | नई कविता के प्रचार-प्रसार में ‘प्रतीक’ पत्रिका का महत्व्पूर्ण स्थान था | नई कविता को अनेक पत्रिकाओं ने बढावा दिया जिनके नाम है- कल्पना, दृष्टिकोण, निकष, पाटल आदि |
कवि | रचनाएँ |
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1. कुँवर नारायण | आत्मजयी, चक्रव्यूह, परिवेश -हम तुम,आमने-सामने आदि |
2. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना | कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खुंटियों पर टंगे लोग, काठ की घंटियाँ |
3.दुष्यंत कुमार | साये मे धूप, सूर्य का स्वागत जलते हुये पवन का वसंत आदि |
4.अजित कुमार | अकेले कंठ की पुकार,अंकित होने दो |
5.लक्ष्मीकांत वर्मा | तीसरा पक्ष,अतुकांत |
6.जगदीश गुप्त | बोधि वृक्ष, सम्बूक, शब्द दंश नाव के पांव, गोपा गौतम |
वस्तुत: काव्य दो प्रकार के होते है –
श्रव्य काव्य उस काव्य को कहते है जो कानो से सुना जाता है | दृश्य काव्य उस काव्य को कहते है जिसे अभिनय आदि के माध्यम से देखा और सुना जाता है | जिसका सम्बंध रंग मंच से होता है | उदाहरण हेतु – नाटक एकांकी आदि |
श्रव्य काव्य – श्रव्य काव्य के दो भेद होते है – 1. प्रबंध काव्य 2. मुक्तक काव्य | प्रबंध काव्य के अंतर्गत खण्ड काव्य, महाकाव्य, आख्यानक गीतियाँ आती है |
मुक्तक काव्य के भी दो भेद होते है- 1. पाठ्य मुक्तक 2.गेय मुक्तक
प्रबंध काव्य – प्रबंध काव्य महत्व पूर्ण स्थान रखता है | इसके कई भेद है जिसका विवरण निम्नांकित है –
प्राचीन आचर्यो के अनुसार महाकाव्य, काव्य का वह अंग होता है जिसमे नायक के सम्पूर्ण जीवन का चित्रण होता है | महाकाव्य की कथा इतिहास प्रसिद्ध होती है तथा महाकाव्य का नायक महान गुणों से परिपूर्ण होता है | उसके चरित्र का आभा मण्डल इस प्रकार होता है कि पात्रो के बीच में उसका अव्दितीय स्थान होता है | श्रृंगार, वीर और शान्त रस मे कोई एक रस मुख्य होता है | महाकाव्य सर्गबद्ध होता है तथा कम से कम महाकाव्य मे आठ सर्ग होने चाहिए |
आधुनिक काव्यो मे महाकाव्य के प्राचीन प्रतिमानो मे परिवर्तन हुआ है | महाकाव्य के प्राचीन लक्षणो मे इतिहास पुरूष तथा अतिमहत्वपूर्ण घटनाओ पर ही काव्यो की रचनाएँ होती थी | परंतु आज महान पुरूष के स्थान पर समाज का कोई भी व्यक्ति महाकाव्य का नायक हो सकता है | आधुनिक युग मे ऐसे अनेक महाकाव्य लिखे गये | हिंदी साहित्य के प्रमुख महाकाव्य है – रामचरित्र मानस, कामयनी, उर्वसी, प्रिय प्रवास, साकेत आदि |
जहाँ महाकाव्य मे नायक के सम्पूर्ण जीवन का चित्रण होता है वही खण्ड काव्य मे नायक के किसी एक ही पक्ष अथवा रूप का चित्रण होता है | खण्ड काव्य की कथा अपने आप मे परिपूर्ण होते है |
हिंदी के प्रमुख खण्ड काव्य है – हल्दी घाटी, पंचवाटी, सुदामा चरित्र, जयद्रथ बध, गंगा वतरण, व्दापर आदि |
जब किसी कहानी को पद्यबद्ध किया जाता है तो इसे आख्यानक गीति कहते है | इसमे नायक के वीरता, शौर्य पराक्रम, प्रेम, करूणा आदि के माध्यम से कथा कही जाती है | रंग मे भंग, झाँसी की रानी आदि रचनाएँ आख्यानक गीतियाँ है |
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