मैं चुप रह गई, क्योंकि मै एक औरत हूँ…
मुझे माँ की कोख में मारा गया ,

मेरे वजूद को खत्म कर डाला गया ,

बार बार मेरा बलात्कार हुआ ,

इल्ज़ाम दोषी पर नहीं, मुझ पर लगा,

सजा भी दोषी को नहीं, मुझको मिली ,

कपड़ों से लेकर मेरे चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगा,

मैं चुप रह गयी, क्योंकि मैं एक औरत हूँ …
पति ने मुझे तलाक दे दिया ,

‘चरित्रहीन’ कहकर घर से निकाल दिया ,

ईश्वर ने मेरा पति छीनकर,

मुझको विधवा बना दिया ,

पर लोगों ने ,

‘अपशकुनी’ का हार मुझे ही पहना दिया ,

मेरा हंसने बोलने का अधिकार छीन लिया ,

एक कोने मे पड़ी रहने का आदेश मुझे दिया ,

मैं चुप रह गयी, क्योंकि मैं एक एक औरत हूँ…
मैं माँ न बन सकी ,

तो ‘बांझपन ‘ का मेडल मुझे दिया गया ,

सारा दोष भी मेरे सिर पर ही मढ़ा गया ,

शायद यही मेरी नियति है ..

यह सोचकर एक बार फिर, मैं चुप रह गयी..
सबकुछ सहते, चुपचाप रहते ,बार बार मरके,

आज भी मैं जिन्दा हूँ,

…क्योंकि मैं एक औरत हूँ।


About Author


Alka Srivastava

मैं अलका श्रीवास्तव कानपुर में रहती हूं। मैं एक ग्रहणी हूं और घर परिवार से मिले समय में अपने लेखन के शौक को पूरा करती हूं। अब तक मेरी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
पहली "मनकही", जिसमें सामाजिक, भावनात्मक कहानियों और आसपास की घटनाओं का समावेश है।
दूसरी "बुद्धिमान चीकू नीकू और अन्य कहानियाँ", जिसमें बच्चों के लिए चंपकवन के भोले भाले जानवरों की कहानियाँ हैं, जिनसे बच्चों को कहानियों के माध्यम से नैतिकता का पाठ सीखने को मिलता है।

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