आँखों को मूँदे, बैठी हैं कोने में “वो” !
कभी आंसू आए , तो कभी मुस्कराए “वो” !
रिश्तों को निभाए ।
अपने आप में मस्त, दिल की परतों को खोले,
पर राज़ गहरे छुपाएं हैं “वो” !
एकान्त में अकेली नहीं हैं “वो” !
दोस्त हैं गहरे अंधेरे में, जिसे देख न सके कोई
भीङ में खङी, पर अकेली हैं आज भी “वो” ! ॥


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sumi

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