सहम जाता है मन कभी कभी
जब अपराध देश मे होता है
होते देख अपराधों को ऎसे
अन्तर्मन घबराता है
क्यू होते अपराध देश मे यही
सवाल मन मे उठ जाता है
ईमानदारी का प्रतीक था जो कभी
आज क्यू वो भूल जाता है
भरा है स्वार्थ मन मे इतना
शायद इसलिए कलयुगी मानव कहलाता है
क्यू होते हैं अपराध देश मे
यही सोच के दिल घबराता है
रही ना दोस्ती कृष्ण सुधामा जैसी
ना राम लक्ष्मण जैसा प्यार
एक घर मे ही दीवार चड़ी है
एक तरफ लक्ष्मण दूजी तरफ राम
ना मामा कोई भी कृष्ण है रहा
ना रहा भांजे अभिमन्यु का नाम
स्वार्थ के जंजाल मे देखो
सबसे बड़ा दुर्योधन का नाम
क्यो होते अपराध देश मे
सोच के मन होता हैरान
आज कोई जो ईमानदार है बचा
करने ना देते उसको काम
खाओ ओर खाने दो हमको
यही रह गया भ्रष्टाचारियों का काम
सोच ले ए इंसान अभी भी
सुधार ले अपना ईमान
जीवन के कालचक्र मे फसा रहा
हो ना जाए लहूलुहान
समय अभी भी है ए राही
छोड़ दे तू स्वार्थ का मार्ग
ईमानदारी की राह पकड़ ले
हो जाएगा तेरा उद्धार
हो जाएगा तेरा उद्धार

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धन्यवाद

रचनाकार – पवन कुमार


About Author


Pawan Kumar bhartiya

Student in government polytechnic Srinagar garhwal uttrakhand

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