बीते समय की यादें

बैठा हूँ नील गगन के तले अपनी यादों की चादर इस कदर बिछाए जैसे हरे भरे पेड़ों के नीचे मन मोहक घटा छा जाती है मन मे एक लहर सी उठ जाती है जैसे हरे घास के मैदानों मे कोई हवा सी गुजर जाती है देख के प्रकृति का यह मानमोहक रूप जैसे बचपन की […]

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वर्तमान का मानव

सहम जाता है मन कभी कभी जब अपराध देश मे होता है होते देख अपराधों को ऎसे अन्तर्मन घबराता है क्यू होते अपराध देश मे यही सवाल मन मे उठ जाता है ईमानदारी का प्रतीक था जो कभी आज क्यू वो भूल जाता है भरा है स्वार्थ मन मे इतना शायद इसलिए कलयुगी मानव कहलाता […]

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