उधार है ये जिंदगी,उधार है ये रिश्ते।
कोई किसी का नही,इन्सां हो या फ़रिश्ते।
वक्त की पहिया,जो हर वक्त चलती।
नही कभी ये थकती,नही कभी ठहरती।
चार दिन के मेले में,सब यहां अजनबी।
जाने क्यों फिर भी,सब बने है मजहबी।
एक इंसान दूसरे से, क्यो है डरा हुवा।
सब निर्दोष है,फिर प्यार क्यो थका हुवा।
मौत से तो सबकी है,अपनी रिश्तेदारी।
जाने क्यों फिर भी,करते हैं पहरेदारी।
क्यो ना मोहब्बत का, नया संसार बनाये।
क्यो ना इंसानियत का,एक कुटुम्ब सजाये।
चलती जिंदगी में हम क्यो किसी से बिछड़े।
ठहरे हुवे चौराहे पर,क्यो किसी से झगड़े।
आसान बहुत रास्ते है,चैन से जीने के लिए।
उन्ही में से क्यो ना हम,किसी एक को पकड़े।
हमराह बनते है,अब किसी और के रंगत में।
खुशियां बुनते है,अब किसी और के संगत में।
अब से मोहब्बत का चलो पैगाम फैलाते है।
अब “चलो जीते है”और सभी को हंसाते है।
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