मैं चुप रह गई, क्योंकि मै एक औरत हूँ…
मुझे माँ की कोख में मारा गया ,
मेरे वजूद को खत्म कर डाला गया ,
बार बार मेरा बलात्कार हुआ ,
इल्ज़ाम दोषी पर नहीं, मुझ पर लगा,
सजा भी दोषी को नहीं, मुझको मिली ,
कपड़ों से लेकर मेरे चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगा,
मैं चुप रह गयी, क्योंकि मैं एक औरत हूँ …
पति ने मुझे तलाक दे दिया ,
‘चरित्रहीन’ कहकर घर से निकाल दिया ,
ईश्वर ने मेरा पति छीनकर,
मुझको विधवा बना दिया ,
पर लोगों ने ,
‘अपशकुनी’ का हार मुझे ही पहना दिया ,
मेरा हंसने बोलने का अधिकार छीन लिया ,
एक कोने मे पड़ी रहने का आदेश मुझे दिया ,
मैं चुप रह गयी, क्योंकि मैं एक एक औरत हूँ…
मैं माँ न बन सकी ,
तो ‘बांझपन ‘ का मेडल मुझे दिया गया ,
सारा दोष भी मेरे सिर पर ही मढ़ा गया ,
शायद यही मेरी नियति है ..
यह सोचकर एक बार फिर, मैं चुप रह गयी..
सबकुछ सहते, चुपचाप रहते ,बार बार मरके,
आज भी मैं जिन्दा हूँ,
…क्योंकि मैं एक औरत हूँ।
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