राजनीति के छाया में तुम खेल रहे,क्यो इतने गंदे खेल।
आजाद कराने में इस मुल्क को,कितनो को हुई थी जेल।
धूमिल कर दी तुमने,आजाद भगत,सुखदेव की कहानी।
जननी जन्मभूमि हेतु,जब प्राण गवां दी झांसी की मर्दानी।
मिट गए जो धरती खातिर,जरा याद करो उनकी कुर्बानी।
यादों को घोल पी गए तुम,सावरकर-सुभाष की बलिदानी।
कौटिल्य के इस धरती पर अब तर्कशास्त्र नही चलता है।
विदुर के हस्तिनापुर में अब,राजशास्त्र नही खुलता है।
कालिदास का ज्ञान यहां अब,तिल-तिल कर मरता है।
भूल गए है सब यहां,हिंदुस्तान गाँव में अब भी बसता है।
चाणक्य के इस धरती पर,नीति के जगह कुनीति है।
राम राज्य चली गई,अब रावण वाली यहां रीति है।
विवेकानंद का जन्म यहां,दुनिया मे बुद्ध की नीति है।
संस्कार भूले हम,सभ्यता अब तड़प-तड़प कर जीती है।
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