अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ,
कर प्रकाश निज हृदयपटल में,अंतर्मन के तिमिर मिटाएं
मन के तम को करें पराजित, मानवता को गले लगाएं,
मिथ्या, मृषा, अनृत के तम को,सारे जग से आज हरो माँ,
अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ !1!
धर्म-मार्ग के गामी सब हों, सभी सुखी हों, सभी निरामय,
खुशियाँ गूँजें सभी निकेतन, तव अनुग्रह से हो सबकी जय,
अन्न, बसन बिन रहे न कोई, बस इतना उपकार करो माँ,
अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ !2!
वनप्रिय सी वाणी दो हमको, एक दूसरे के पूरक हों,
सुख-दुख बांटें जन आपस में, श्रेष्ठ संस्कृति के रक्षक हों,
जो निर्धन हैं- भरे नेत्रजल, अभ्युदय-उद्धार करो माँ,
अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ !3!
स्नेहिल शील स्वभाव परस्पर, करुणा का आभूषण कर दो
भांति-भांति के पुष्प सुशोभित, कुसुमाकर सी धरणी कर दो
भर दो नवल ज्योति जन-जन में, यह विनती स्वीकार करो माँ
अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ !4!
पुण्य वत्सला जन्मभूमि हित, अर्पित कर दें हम तन-मन-धन,
करो कृपा ऐसी जगजननी, ले लें पुत्र सभी ऐसा प्रण,
निज माटी से निर्मित दीपक -मेरा, अंगीकार करो मां,
अगणित दीपों के प्रकाश में, एक दीप स्वीकार करो माँ !5!
– नवीन जोशी “नवल”
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