इकारांत : नपुंसकलिंग [ वारि –पानी ]  शब्द के रूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा वारि वारिणी वारीणि
द्वितीया वारि वारिणी वारीणि
तृतीया वारिणा वारिभ्याम् वारिभि:
चतुर्थी वारिणे वारिभ्याम् वारिभ्य:
पंचमी वारिण: वारिभ्याम् वारिभ्य:
षष्ठी वारिण: वारिणो: वारीणाम्
सप्तमी वारिणि वारिणो: वारिषु
सम्बोधन हे वारि ! हे वारिणी ! हे वारीणि !

 

नोट – दधि ( दही) , सक्थि ( जांघ ) , अस्थि ( हड्डी ) , अक्षि ( आँख ) को छोड़कर सभी इकारांत नपुंसकलिंग शब्दों के रूप ‘वारि’ के समान चलते है |

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इकारांत : नपुंसकलिंग [ दधि – दही ] के शब्द रूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा दधि दधिनी दधीनि
द्वितीया दधि दधिनी दधीनि
तृतीया दध्ना दधिभ्याम् दधिभि :
चतुर्थी दध्ने दधिभ्याम् दधिभ्य:
पंचमी दध्न: दधिभ्याम् दधिभ्य:
षष्ठी दध्न: दध्नो: दध्नाम्
सप्तमी दध्नि दध्नो: दधिषु
सम्बोधन हे दधे ! हे दधिनी ! हे दधीनि !

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इकारांत : नपुंसकलिंग [ अक्षि – आँख ] शब्द के रूप      

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा अक्षि अक्षिणी अक्षीणि
द्वितीया अक्षि अक्षिणी अक्षीणि
तृतीया अक्ष्णा अक्षिभ्याम् अक्षिभि :
चतुर्थी अक्ष्णे अक्षिभ्याम् अक्षिभ्य:
पंचमी अक्ष्ण: अक्षिभ्याम् अक्षिभ्य:
षष्ठी अक्ष्ण: अक्ष्णो: अक्ष्णाम्
सप्तमी अक्ष्णि / अक्षणि अक्ष्णो: अक्षिषु
सम्बोधन हे अक्षि / हे अक्षे ! हे अक्षिणी ! हे अक्षीणि !

 

नोट – अस्थि और सक्थि के रूप भी ‘ अक्षि ’के समान ही चलते है |


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