मुझको याद नहीं कब पापा

संग में मेरे रहते थे,

गोदी में कब खेली उनके

कब उनसे में बोली थी।

नील गगन में उड़ते पंछी

मुझको भी संग ले ले तू

तुझ संग उड़कर नील गगन में

मैं भी नभ छू आऊंगी

संग तेरे पंखों का पाकर

पापा से मिल आऊंगी

मॉ से सुना है आसमान में

मेरे पापा रहते हैं।

 

अम्बर के तारों बतलाओ

है कहां ठिकाना पापा का

अनुराग भरा पैगाम मेरा ये

पापा को तुम दे देना,

उनसे कहना समय मिले तो

मुझसे मिलने आ जाना

मॉ से सुना है आसमान में

मेरे पापा रहते हैं।

 

मिलन आस में,जाने कितने

दिन बीते और रात गई

फिर स्वप्न मनोहर देखा एक दिन

मुग्ध किया जिसने मुझको

उन्मुक्त गगन में पंछी बन मैं

असीम अनिश्चित वेग लिए

मिल आई पापा से अपने ।

 

——-धीरेन्द्र ध्यानी

नील कंठ कालोनी

केदारपुर, देहरादून उत्तराखंड

 

 


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Dhirendra Dhyani

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