एक मित्र कहने लगे हमें तुम पर नाज,
कवि बनने का कारण हमें बता दो आज !
मैंने कहा मित्र मेरे है एक विचित्र राज,
कविता को पड़ गया था हमसे कुछ काज !
आकर पूछा हमसे कैसे हो कविराज,
सच कहूं मुझको हुआ था अचरज आज !
बड़े ही विस्मय में निकली मेरी आवाज,
सुंदरी तुम्हारी बातों का ये कैसा ताज !
क्या तुम्हें मिला नहीं कोई बकरा आज ?
आकर रखने लगी मेरे सिर पर ताज !
सुनकर कविता की फूट पड़ी आवाज,
अनायास ही तुम तो  हो गए नाराज !
मुझमें भावों की माया तुममें शब्दों के साज,
मुझमें करुणा की पीड़ा तुममें मर्यादा की लाज !
मुझमें क्रांति की आग तुम लेखनी में जांबाज,
मै बरसा दूं प्रेम मेघ जो तुम कर दो आगाज !
तुम सागर तो मैं हूं उसकी उठती मौज,
तुम मानो मैं तुम्हारी हूं खोज !
प्रियवर ! हमें बडा है तुम पर नाज,
तुमसे ही तो जानती है हमें समाज !
सुनकर कविता की बात मैंने किया आगाज,
उसके हल्के स्पर्श को दे दी हमने आवाज !
जब मेरे व्याकुल मन में उठता है बवंडर तेज,
तव मै सजा देता हूं कविताओं की सेज !
मित्र बोले तुम्हारा है अजब अंदाज,
जैसे तुमने कह दिया यह विचित्र कवि राज !!

योगेश कुमार तिवारी

रीवा- मध्यप्रदेश


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