शीर्षक

मिलकर दिया जलाएं

 
विकल विश्व प्रकृति से हारा
मानव भय से थरथर कांपा।
घुप्प अंधेरा छाया जग में
जनजीवन कैद हुआ निज घर में।
नई रोशनी की आशा में
बुझा हुआ दीपक सुलगाएं।
आओ मिलकर दिया जलाएं।
अन्न मयस्सर मुश्किल जन को
क्षुधातुर हर आंगन में हम
आशाओं का अन्न पहुंचाएं।
आओ मिलकर दिया जलाएं।
भौतिकता के मोह जाल में
हम अपनी पहचान न भूलें।
वज्रपात की क्षणिक घड़ी में
ऋषि दधीचि का दान न भूलें।
इस विघ्न व्यूह की रचना में
अर्जुन सम संधान करें।
निर्णायक युद्ध अभी बाकी है
आहुति अभी अधूरी है।
करें उजाला अंतरतम में
निर्जन जन के अवलंब बने।
वर्तमान के मोह पाश में
हम कल का परिणाम न भूलें।
परिभाषा बदल गई वीरों की
इतिहास बनाने वालों की
लक्ष्मणरेखा में रहकर हम
आज नया इतिहास बनाएं।
आओ मिलकर दिया जलाएं।
 
                     निलेश जोशी “विनायका”
                     बाली, पाली (राजस्थान)

About Author


Nilesh25

Other posts by

वेबसाइट के होम पेज पर जाने के लिए क्लिक करे

Donate Now

Please donate for the development of Hindi Language. We wish you for a little amount. Your little amount will help for improve the staff.

कृपया हिंदी भाषा के विकास के लिए दान करें। हम आपको थोड़ी राशि की कामना करते हैं। आपकी थोड़ी सी राशि कर्मचारियों को बेहतर बनाने में मदद करेगी।

[paytmpay]