इतना आसान नहीं है
स्त्री होना
जितना तुम घिसते हो, चिल्लाते हो
आगे बढ़ने की होड़ में मुझे हमेशा दबाते हो
उतनी ही निखरती हूँ मैं
ईश्वर ने बनाया है कुछ अलग ही मिट्टी से
कि तुम्हारे हर ढांचे में मैं ढल जाती हूं
इतना आसान नहीं है
स्त्री होना
कितने ही रंग रूप रिश्तों में ढल जाती हूं
कितने जख्मों को सह जाती हूं
तुम्हारे दिए गए हर इल्ज़ाम
बिना गलती के सजा भुगत जाती हूं
आँखों में बहाकर आँसू
हर गम को पी जाती हूं
आसान नहीं है स्त्री होना
आज भी स्त्री आदेशों की
गुलाम है
स्त्री को क्या करना है क्या नहीं
इस पर भी हुकुमत आम है
वह घर जिसमें आदेशों की
बारिश होती है
और स्त्री उसे प्यार समझ कर
भीगती जीती है
इतना आसान नहीं है
स्त्री होना
———- ललिता यादव
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