मानस का राजहंस
मानसरोवर से भरी उड़ान
जगत देखने को प्यासी आँखे
सुख दुख का, करने अनुमान
चुनकर पहुँचा राज दरबार
अब उसकी नज़रों में
सुखिया सब संसार
क्योंकि उसकर सुख के सामान
भरे पड़े आवश्यकतानुसार
स्वच्छ हवा में उड़ने वाली
नन्ही चिड़िया तिनका
बिन बिन कर लाती
नीड़ बनाती
बारिश से पहले
दाना पानी लाती
परिवार बढ़ाने खातिर
अण्डे पाल पोसकर
मन ही मन इठलाती इतराती
दुष्टता की मूरत
स्वारथ की सूरत
कुनबा तोड़ना ही काम
बाज़ है उसका नाम
चिड़िया के अंडो पर
बैठा घात लगा
मौका पाते ही
कर डाला काम तमाम
न्याय की लिए हुए अभिलाषा
चिड़िया पहुँची राजहंस के पास
त्राहि त्राहिमाम की करी पुकार
राजहंस ले पहुँचा न्यायिक दरबार
कावं कावं करते कौवे
भरा हुआ मैदान
कलाबाजियां खाते
सौ सौ गतियों का गुमान
सिद्धहस्त हैं उड़ने में
बचने और बचाने में
कभी न करते शील
शरणागत को ही
नोच नोच कर खाने में
शिकार यहाँ ख़ुद आ गिरा,
शिकारी की गिरफ्त में
आरोपी भी था आया
बचत की जुगत में
जब मोल भाव की बारी आई
हंसराज के मन में बेचैनी छाई
फ़िकर कहाँ है चिड़िया की
अंडे तो पहले ही गये
नज़र गोश्त पर आ टिकीं
इससे पहले समझ में आता कुछ
बचने के सारे रास्ते ही खो चुकी।

शिवम विद्रोही
सितम्बर 21, 2018


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