🌾रक्तिम – भँवर🌾
——————–
———————
भर – भर आँसू से आँखें , क्या सोच रहे मधुप ह्रदय स्पर्श ,
क्या सोच रहे काँटों का काठिन्य , या किसी स्फूट कलियों का हर्ष ?
मन्द हसित , स्वर्ण पराग सी , विरह में प्रिय का प्रिय आह्वान ,
या सोच रहे किस- क्रुर प्रहार से छुटा स्नेह जननि का भान !
विरहणी चकवी का क्रन्दन ,भरी आँखों का नीर धार
कुसुम – कलेवर , विलुलित आँचल , उर निकुंज , सान्ध्य-रश्मियों का विहार ,
या सोच रहे , हो – आत्म-विस्मृत , प्रलय- हिलोर कराल झंझावातों को ,
आत्मीय जनों की सुध-सार या मादक-हसित , सुवासित रातों को !
विभिन्न व्यथा- स्त्रोत स्मृतियों को छोड़, तोड़ो कृत्रिम फूलों का श्रृंगार,
भूलो स्नेह स्वर, भूलो सरलता, नहीं भूलना कभी दासता की हार – अंगार ;
शंखनाद गुंजे रणभेरी की, रण में गुंजे वीरोचित ललकार,
उठे मृदंग, उठे तलवारें, खड्ग से सर्वत्र सकरूण हाहाकार !
धन्य भाग ! मधुर उल्लासों को छोड़, तज यौवन देने जीवन आधार ;
दु:खद् रजनी – दु:खद् प्रभात, दबा सूने में होता चित्कार, भय का संचार;
कंपकंपी व्योमगंगा , सर्वत्र करूण पुकार, नहीं अब नुपूर की झंकार ,
धरणी-सीमाओं पर, तांडव करती, कैसी मानव की पशुता साकार!
समरभूमि में तने खड़े हो, हर आकांक्षा -अरमान बिखर जाने दो ,
रोली, घुंघरू, कुंकुम, बिन्दी, प्रणय के आस, सब कुछ डूब भँवर जाने दो ;
निर्मम निरव क्षण की नीरव आशा की हर विलक्षण स्मृतियाँ , खूब बिखर जाने दो ;
शत्रु के उत्पात के, प्रतिपल संघात के , रक्तिम – भँवर में डूबो-डूबो सिहर जाने दो !
आँखों की करूणा-भीख , रिक्त हाथों में , नहीं कोई दे सकता दान !
छोड़ ठिठोली जीवन के , तज सूने अनुभूति सुस्वप्नों का निर्माण ,
ना कभी हताश – निराश हो , तज जीवन के आस , छेड़ विकल विप्लव तान ;
शत्रु को शोणित-सिक्त धाराशायी कर , वीर ! समरभूमि में देना प्राण !
अखंड भारत अमर रहे !
वन्दे मातरम्
जय हिन्द !
✍🏻 कवि आलोक पाण्डेय
🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾
Please donate for the development of Hindi Language. We wish you for a little amount. Your little amount will help for improve the staff.
कृपया हिंदी भाषा के विकास के लिए दान करें। हम आपको थोड़ी राशि की कामना करते हैं। आपकी थोड़ी सी राशि कर्मचारियों को बेहतर बनाने में मदद करेगी।