गाँव-गाँव में शहर-शहर में,
कैसी छायी उजियाली है;
खेतों में अब नव अंकुर , नव बूंद से
छायेगी हरियाली है |
बहुत कुहासा बीत चुका
अंतर्मन का ठिठोर मिटा,
नवचेतन में नवबहार-बसंत,
प्रकृति का सुंदर अभिलेखा |
नवजागृत , नुतन, नव-स्नेह का,
कैसी दीखती परिभाषा है;
हर प्राणी के जीवन का चेतन,
नैसर्गिक अभिलाषा है |
नव स्फूर्त्ति आयी विकट शोक से ,
धन्य है जीवन भारत – ‘आलोक’ से ,
संतप्त जीव अब हैं सुरभित ;
प्रकृति भी पुष्पित – पल्लवित |
सब छोड चलें प्रकृति की ओर
विकृत अखंड भारत के स्वीकृति की ओर ,
यदि दीखे जहाँ जहरीला धुंध काला,
लाना होगा ‘ युद्धरत-हो’ उजाला |
शस्य – श्यामला पुण्य – धरा की,
यशगाथा , को गाएँगे |
अहा ! चैत्र-शुक्ल , प्रतिपदा तिथि ,
मंगल नववर्ष मनाएँगे |