जग ये कहता है सारा,बेटियां होती है बोझ का पिटारा,
गर हुयी बेटी तो मुहँ लटक जाए,हुआ गर बेटा तो लड्डू की दुकान मगवाए,
ऐसा है सोच जग का सारा,
पर मेरे मन को बात न ये गंवारा कि बेटियां होती है बोझ का पिटारा।
मै तो कहू,बेटियां है वो दीपक की ज्योति,
जो ला देती है खुशियो का उजाला,
दो घरो को जोड़ने वाली बंधन है बेटियां,
रिश्तो मे जो ला दे मिठास,ऐसी मिश्ररी की घोल सी होती है बेटियां,
थक कर जब पापा आते है घर पर,पानी का ग्लास ले जो दोड़ी जाए,वो होती है बेटियां,
हो मां को जब कोई परेशानी,तो जिम्मेदारी का जो हाथ आगे बढ़ाये,वो होती है बेटियां।
सोने और चांदी से जिसे तौला जाता,शादी के नाम पर ,
जिसके घर से दहेज लिया जाता,फिर भी चुप रहकर देखे जो नजारा,
कभी बहु कभी बेटी बन जो निभाए फर्ज सारा,वो होती है बेटियां,
फिर जग कहता है क्यू बोझ होती है बेटियां
मै तो कहू हजारो दफा,हर घर की शान होती है बेटियां।
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( नाम-कविता मिश्रा,पिता -श्री अशोक कुमार मिश्रा(सहायक अध्यापक N.B.J inter collage jaunpur)
M.a. sanskrit Net ,B.ed ,t.et ,ctet,
D.O.B.- 09/11/1994
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