एक कवि, …..

 

डूबना चाहता है उस रस में जो,

प्रतिदिन सुप्त होता जा रहा है सांसारिक क्रिया में।

जगाना चाहता है जन जन में

वह मधुरता जो होनी चाहिए थी, किन्तु रही नहीं।

 

समेट लेना चाहता है सारा मीठापन शब्दों में,

चुन चुनकर भिगोता है शब्द,

संजोता सुगन्धित कर उन्हें ताकि महक सके यह जीवन।

 

एक कवि चाहता है तुम भी देखो, जो वह देख रहा।

चखो जो वह चख रहा।

तुम भी कुछ देर खुशी से, प्रेम से भर जाओ मीठेपन में।

 

तृप्त हो सके तुम्हारी आत्मा भी,

ताकि सम्बल मिले इस जीवन में निरन्तर डटे रहने का।

 

विषमताओं भरे इस तपते यथार्थ में,

चाहता है मिले थके जनों को एक शीतल छाँव।

ठहरे एक पल शिथिल पथिक व रोये, खोये

अपने दुःख बहाए अपनी पीड़ा करे कुछ क्षण विश्राम,

पाये आराम।

 

और चाहता है सोना एक दिन स्वयं,

जब मिले उसे कोई दूसरा उसके जैसा,

जो बनाये रख सके छाँव उसके जाने के बाद।

गाये मीठे गीत, निभाए दायित्व उस की ही तरह।

 

एक कवि बस वह कवि होना चाहता है,

जिसका जीवन ही उसकी सबसे मधुर कविता हो।

जिसे जब भी कोई पढ़े,

तो बस गुनगुनाते हुए निकल जाए कहीं कोई दूर,

 

और उसे देखकर मुस्कुराये वह

 

एक कवि!

 

—शुभ 💕(०२/०७/२०२०)


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A Government servant, engineer turned seeker of Ultimate ie सच्चिदानंद 💕

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