विचारों के जीर्ण भवन को
ऊँचा न और उठाना है
नूतन ईंटों को जोड़-जोड़
मानव मूल्यों का भव्य
प्रासाद बनाना है,
आज क्रांति फिर लाना है।
गतिहीन, दिशाहीन समाज को
देकर सही दिशा फिर से
गतिमान बनाना है, आज
क्रांति फिर लाना है।
निराशा के घिरते बादल नभ में
चहुँ ओर, कर संधान बाण का
हमको, नील गगन चमकाना है
आज क्रांति फिर लाना है।
मेघाच्छादित नभ मंडल के
आहत होते बाणों से, बरसाते
वे अश्रु जल, लहराते
जिससे हरे-भरे फसल
काट उन्हें, भर पेट जीवों का
उत्कर्ष काल फिर लाना है,
आज क्रांति फिर लाना है।
-मोहित त्रिपाठी*
रचनाकार का संक्षिप्त परिचय*
नाम: मोहित त्रिपाठी
जन्म: 27 फरवरी 1995, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
शिक्षा: बी.टेक (सिविल अभियांत्रिकी), एम.टेक
सम्प्रति: वाराणसी के शिक्षण एवं समाजसेवी संस्था विज़डम इंस्टिट्यूट ऑफ़ एक्सीलेंस के संस्थापक एवं निदेशक, अनेक संस्थाओं एवं संगठनों से सम्बद्धता, साहित्यिक एवं सम-सामयिक लेखन में सक्रिय
रचना: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सौ से अधिक रचनाएँ प्रकाशित एवं कई अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्र प्रकाशित
पता: डी 36/123 अगस्त्यकुंड, दशाश्वमेध, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत 221001
चलभाष: 6394439380
ई-मेल आई डी:
mohittripathivashisth27@gmail.com
(कवि, शिक्षक एवं समाज सेवी)
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