जब वेदों का अर्थ आम जनता के पहुंच से दूर होता गया तो उसके अर्थ को सरल एवं स्पष्ट भाषा में वर्णन हेतु ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हुई । वेदों के अर्थ ज्ञान के साथ-साथ ब्राह्मण ग्रंथों ने यज्ञों एवं कर्मकांडो की क्रिया विधि को भली-भांति समझाने का प्रयास किया । इन ग्रंथों को ‘ ब्राम्हण ’ कहने के निम्न कारण है –
3.ब्रह्मन् का अर्थ ‘ यज्ञ ’ भी होता है । अत: यज्ञों की व्याख्या एवं उसकी क्रियाविधि का वर्णन करने के कारण इन ग्रंथों को “ ब्राह्मण ’’ कहा गया ।
अधिकतर ब्राह्मण ग्रंथ गद्य में लिखे गये हैं । ब्राह्मण ग्रंथों से हमें उत्तरकालीन समाज एवं संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है । इसमें परीक्षित के बाद और बिंबिसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान होता है । वाचस्पति मिश्र ने ब्राह्मण ग्रंथों का प्रयोजन निर्वचन, मंत्रों का विनियोग ,अर्थवाद एवं विधि माना है । वैदिक साहित्य में ऋग्वेद का स्थान सर्वोपरि है । ऋग्वेद के बाद “ शतपथ ब्राह्मण ” का स्थान है । भट्ट भास्कर ने कर्मकांड तथा मंत्रों के व्याख्यान ग्रंथों को ‘ ब्राह्मण ’ कहा है । भट्ट भास्कर का कथन है –
ब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्मंत्राणां व्याख्यानग्रंथ: ।
[ भट्ट भास्कर- तैत्ति . सं. 1-5-1 ]
ब्राह्मण ग्रंथ वेद के दुरुह शब्दों की व्याख्या करते है । वेद के मंत्रों के अर्थ सरल व स्पष्ट भाषा में बताते हैं । इस कारण ब्राह्मण ग्रंथों की भाषा स्पष्ट व सरल भाषा में लिखे गये हैं । प्रसाद गुण युक्त हैं । जिसमें आम लोगों को भी वेदों में वर्णित ज्ञान आसानी से समझ में आ जाए । इनकी भाषा वैदिक और लौकिक संस्कृत को जोड़ने वाली है । प्रसंगानुकूल शैली का प्रयोग किया गया है ।
वेद के बाद ब्राह्मण ग्रंथों का स्थान आता है । हर वेद का एक या उससे अधिक ब्राह्मण ग्रंथ है या कह सकते हैं कि प्रत्येक ब्राह्मण ग्रंथ किसी न किसी रूप से किसी ना किसी वेद से संबंधित है । आगे हम एक सूची के माध्यम से यह बताने का प्रयास करेंगे कि कौन से वेद के अंतर्गत कौन सा ब्राह्मण ग्रंथ आता है ।
वेद | ब्राह्मण ग्रंथ |
ऋग्वेद | (1) ऐतरेय ब्राह्मण (2) शांखायन या कौषीतकि ब्राह्मण |
यजुर्वेद 1 शुक्ल यजुर्वेद 2 कृष्ण यजुर्वेद | शतपथ ब्राह्मण तैत्तिरीय ब्राह्मण |
सामवेद | पंचविंश (तांड्य या प्रौढ़ ) ब्राह्मण , ष्ड्विंश ब्राह्मण , सामविधान ब्राह्मण , आर्षेय ब्राह्मण , देवताध्याय ब्राह्मण , छान्दोग्य ( मंत्र) ब्राह्मण , संहितोपनिषद् ब्राह्मण , वंश ब्राह्मण ( नोट – कहीं कहीं पर नौ ब्राह्मण ग्रंथ भी बताए गये है । ) |
अथर्ववेद | गोपथ ब्राह्मण |
वेदों की व्याख्या करने वाले ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ कहलाते हैं । प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है –
इस ग्रंथ के रचयिता महिदास ऐतरेय माने जाते हैं । इसमें 40 अध्याय हैं ,जिसको पांच -पांच अध्यायों की आठ पंचिकाओं में विभक्त किया गया है । यह ग्रंथ ऋग्वेद का सबसे प्रसिद्ध ब्राह्मण ग्रंथ है । इस ग्रंथ में कुलपुरोहित के अधिकार, राज्याभिषेक, सोमयाग से संबंध अग्निष्टोम, अग्निहोत्रादि आदि का वर्णन किया गया है । इसमें आख्यान और इतिहास भी है । शुन: शेप आख्यान में प्रसिद्ध उक्ति “चरैवेति –चरैवेति ” के महत्व को बताया गया है । जिसमें चलते रहने की शिक्षा दी गई है ‘ चरैवेति ’ की महत्ता बताते हुए कहा गया है –
आस्ते भग आसीनस्य , ऊर्ध्वंतिष्ठति तिष्ठत: ।
शेते निपद्यमानस्य , चरति चरतो भग: ।
चरैवेति चरैवेति ॥
[ ऐतरेय ब्राह्मण , अध्याय 3 खण्ड 3 ]
( आसीनस्य भग आस्ते , तिष्ठत: ऊर्ध्व: तिष्ठति , निपद्यमानस्य शेते , चरत: भग: चराति , चर एव इति ।)
अर्थ- इस श्लोक में बताया गया है कि जो मनुष्य बैठा रहता है ,उसका सौभाग्य (भग )भी रुका रहता है । जो उठ खड़ा होता है, उसका सौभाग्य भी उसी प्रकार उठता है । जो मनुष्य पड़ा या सोया रहता है ,उसका सौभाग्य भी उसी प्रकार सो जाता है । और जो मनुष्य विचरण में लगा रहता है , उसका सौभाग्य भी चलने लगता है अर्थात आगे बढ़ता ही रहता है । इसीलिए विचरण करते रहो ।
यह ग्रंथ ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है । इसको कौषीतकि भी कहते हैं । इसके प्रणेता शांखायन या कौषितकि में से कोई एक हो सकते हैं । इसमें 30 अध्याय हैं । इसमें सौमयाग, अग्निहोत्र, दर्श पौर्णमास और चातुर्मास्य आदि विषयों का वर्णन है ।
यह शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है । इसके रचयिता याज्ञवल्क्य माने जाते हैं । सभी ब्राह्मण ग्रंथों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है । यह ग्रंथ शुक्ल यजुर्वेद के दोनों शाखाओं काण्व व माध्यन्दिन से संबद्ध है । शतपथ ब्राह्मण में 14 कांड और 100 अध्याय हैं । इसी कारण इसका नाम “शतपथ” पड़ा । इसमें अग्निहोत्र ,चातुर्मास्य, अश्वमेध , राजसूय , वाजपेय , सर्वमेध तथा पुरुषमेध आदि का वर्णन किया गया है । गंधार ,कैकय , पांचाल , कोसल ,विदेह आदि जनपदों का उल्लेख मिलता है । राजा जनमेजय ,जनक ,दुष्यंत का उल्लेख मिलता है । इस ग्रंथ में पुरुरवा- उर्वशी , दुष्यंत पुत्र भरत , जल- प्लावन तथा मनु की कथाएं हैं । इस ग्रंथ में ऐतिहासिक तथ्य का पता चलता है । बौद्ध साहित्य में प्रयुक्त हुए पारिभाषिक शब्द श्रमण, अर्हत, प्रतिबुद्ध आदि शब्दों का प्रयोग इस ग्रंथ में मिलता है ।
यह ग्रंथ कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा से संबंधित है । इसके रचयिता तित्तिरि ऋषि है । इसमें तीन कांड (अष्टक) में विभक्त हैं । प्रथम 2 कांडों में 8- 8 अध्याय (प्रपाठक) हैं तथा तृतीय कांड में 12 अध्याय (प्रपाठक) हैं । इस ब्राह्मण ग्रंथ के अनुसार मनुष्य का आचरण देवों के समान होना चाहिए । मन को सर्वोच्च प्रजापति बताया गया है । इसमें सोम ,राजसूय , सौत्रामणि , बृहस्पतिसव नक्षत्रेष्टि आदि का मुख्य रूप से वर्णन किया गया है ।
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद के तांड्य शाखा से संबंधित है । इसे तांड्य या प्रौढ़ ब्राह्मण ग्रंथ भी कहते हैं । इसके अतिरिक्त इस ग्रंथ को “महाब्राह्मण” भी कहते हैं । इसके रचयिता आचार्य तांड्य हैं । इसमें 25 अध्याय है । इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय ‘ सोम याग ’ है ।
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद के ‘ कौथुम शाखा ’ से सम्बंधित है । इसमें छ: अध्याय है । इसके अंतिम प्रपाठक को “अद्भुत ब्राह्मण” के नाम से जाना जाता है । इसमें भूकम्प , अकाल , उत्पातों की शांति आदि का वर्णन किया गया है । इस ब्राह्मण ग्रंथ को पंचविंश ब्राह्मण का परिशिष्ट कहा जाता है ।
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद से संबंधित है । यह 3 प्रकरण और 25 अनुवाको में विभक्त है । इस ब्राह्मण ग्रंथ में प्रजापति की उत्पत्ति ,देवों की निमित्त यज्ञ , कृच्छ्र तथा अति कृच्छ्र व्रतों का स्वरूप, पुत्र तथा ऐश्वर्य और आयुष्य की प्राप्ति के लिए विविध अनुष्ठान , अग्निहोत्र, अश्लील भाषण, चोरी, अगम्यागमन, स्वाध्याय,पिशाचों का वशीकरण, असिद्धी- विषयिणी परीक्षा, राज्याभिषेक प्रयोग, युद्ध विजय के निमित्त प्रयोग आदि पर प्रकाश डाला गया है ।
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद से संबंधित है । इसमें सामवेद के ऋषियों से संबंद्ध विवरण है । सामवेदीय ब्राह्मण ग्रंथों के मध्य इसका चतुर्थ स्थान है । आर्षेय ब्राह्मण में तीन प्रपाठक है । यह सामवेद की आर्षानुक्रमणी का कार्य करता है ।
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद से संबंधित ग्रंथ है । इसमें मात्र तीन खंड हैं । इसमें देवताओं और छंदों का वर्णन किया गया है ।
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद से संबंधित है । इसे मंत्र ब्राह्मण के नाम से भी जाना जाता है । छांदोग्य ब्राम्हण में दो प्रपाठक और प्रत्येक में 8 खंड है ।
[नोट -छांदोग्य उपनिषद् भी है इसमें 8 प्रपाठक है । यदि दोनों को मिला दिया जाए तो प्रपाठकों की संख्या 10 हो जायेगी । परंतु हमें यहां छांदोग्य ब्राह्मण के संदर्भ में जानना है ।]
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद से संबंधित है । यह बहुत छोटा ग्रंथ है । इसमें एक प्रपाठक है , जो पांच खंडों का है । इस ग्रंथ में सामगान की पद्धति का वर्णन किया गया है ।
यह ब्राह्मण ग्रंथ सामवेद से संबंधित है । इसमें तीन खंड हैं । इस ग्रंथ में ऋषियों और आचार्यों की वंश परंपरा का वर्णन किया गया है ।
यह अथर्ववेद का एकमात्र ब्राह्मण ग्रंथ है । इसके रचयिता ऋषि गोपथ को माना गया है । इस ग्रंथ के दो भाग हैं ।
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