भारतीय संविधान 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया । पारित होने के 2 माह बाद 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान संपूर्ण भारत में लागू कर दिया गया । भारत का संविधान विश्व के संविधानों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है । भारतीय संविधान कठिन परिस्थितियों में भी निर्णायक भूमिका अदा करता है ।भारतीय संविधान में वाकई ऐसी विशेषताएं हैं जिसके कारण भारतीय संविधान को सर्वगुण संपन्न की संज्ञा प्रदान की जाती है ।
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है –
भारत का संविधान पूर्ण रूप से लिखित संविधान है । मौखिक नियमों को प्रधानता नहीं दी गयी है । जो भी कानून बने हैं, सभी लिखित रूप में है । मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग तथा 8 अनुसूचियां थी । वर्तमान में (2019) इसमें 25 भाग और 12 अनुसूचियां हो गयी है । समय-समय पर भारतीय संविधान में संशोधन व विस्तार होता रहता है । इस कारण भारतीय संविधान को एक विस्तृत दस्तावेज कहा जा सकता है ।
भारतीय संविधान कठोर (अनम्य) और लचीला (नम्य) कहा जाता है । कठोर संविधान वह होता है , जिसमें संशोधन की प्रक्रिया कठिन होती है । वहीं लचीला संविधान वह होता है, जिसमें संशोधन की प्रक्रिया बहुत ही आसान होती है । भारतीय संविधान में ऐसे भी प्रावधान है , जहां संशोधन की प्रक्रिया बड़ी जटिल है । बहुत प्रावधान ऐसे भी हैं , जहां बहुत आसानी से संशोधन हो जाते हैं ।
भारतीय संविधान की विशिष्ट विशेषता है , उसका धर्मनिरपेक्ष होना । भारतीय संविधान द्वारा यहां के नागरिकों को यह स्वतंत्रता है कि वह किसी भी धर्म को अपना सकते हैं । सभी धर्मों को समान आदर दिया जायेगा । धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा ।
धर्मनिरपेक्षता को ही दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह मानवतावादी प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है । धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का विशेष गुण है ।
भारतीय संविधान निर्माताओं ने विभिन्न देशों के संविधान का अध्ययन करके उसमें से उपयोगी प्रावधानों को अपना लिया । जर्मनी के संविधान से आपातकालीन शक्तियां , आयरलैंड के संविधान से नीति निर्देशक तत्व , ऑस्ट्रेलिया के संविधान से समवर्ती सूची का प्रावधान , अमेरिका के संविधान से उपराष्ट्रपति का पद आदि प्रावधान भारतीय संविधान ने ग्रहण किये । इस प्रकार अनेक देशों के संविधानों से प्रावधान लिये गये हैं ।
भारतीय संविधान द्वारा एकल नागरिकता की व्यवस्था की गयी है । भारत का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी प्रदेश का निवासी हो , परंतु उसे भारत का नागरिक ही माना जायेगा । एकल नागरिकता से भारत को एक सूत्र में बांधा गया है ।
भारत का संविधान संघीय सरकार की व्यवस्था प्रदान करता है । अनुच्छेद में भारत का उल्लेख ‘राज्यों के संघ’ के रूप में किया गया है ।भारतीय संविधान में एकल नागरिकता , एकीकृत न्यायपालिका ,आपातकालीन प्रावधान आदि एकात्मकता की भावना को प्रबल करते हैं ।
भारतीय संविधान अपने नागरिकों को न्याय दिलाने हेतु स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है । जिला न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक न्याय दिलाने की व्यवस्था की गयी है । न्यायपालिका को कार्यपालिका एवं विधायिका से स्वतंत्र रखा गया है । उच्च एवं उच्चतम न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की गारंटी देता है ।
संविधान के अनुच्छेद 36 से 50 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन किया गया है ।नीति निर्देशक सिद्धांत का अर्थ ‘एक कल्याणकारी राज्य’ की स्थापना करना है । नीति निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता , परंतु कानून बनाते समय सिद्धांतों को अपनाने का अवश्य ध्यान रखना चाहिए ।
भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को कुछ अधिकार दिए हैं , जिन्हें मौलिक अधिकार के नाम से जाना जाता है । मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है ,जो इस प्रकार हैं
(i) समानता का अधिकार [अनुच्छेद 14 – 18] |
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार [अनुच्छेद 19- 22] |
(iii)शोषण के विरुद्ध अधिकार [अनुच्छेद 23- 24 ] |
(iv)धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार [अनुच्छेद 25 -28] |
(v)सांस्कृतिक व शिक्षा का अधिकार [अनुच्छेद 29- 30] |
(vi)संवैधानिक उपचारों का अधिकार [ अनुच्छेद 32 ] |
जिस प्रकार नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों का प्रावधान है । उसी प्रकार भारतीय संविधान ने कर्तव्यों का भी उल्लेख किया है । मूल संविधान में कर्तव्यों का उल्लेख नहीं है । इसे स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 1976 के 42 वें संविधान संशोधन द्वारा शामिल किया गया । पहले मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 थी , परंतु वर्तमान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 है ।
भारत के सभी नागरिकों को जिसकी उम्र 18 वर्ष से ऊपर है ,मतदान करने का अधिकार प्राप्त है । इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा । मताधिकार राजनीतिक समानता को बनाए रखता है ।
आपातकाल से निपटने के लिए भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को वृहद अधिकार दिए गये हैं । आपातकाल के समय राज्य की समस्त शक्तियां केंद्रीयकृत हो जाती हैं । भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का वर्णन किया गया है , जो इस प्रकार हैं-
(i) राष्ट्रीय आपातकाल -युद्ध ,आक्रमण ,सशस्त्र विद्रोह के समय ।
(ii) राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) -राज्यों में संवैधानिक तंत्र की असफलता होने पर ।
(iii) वित्तीय आपातकाल- वित्तीय अस्थिरता के समय इस आपातकाल की घोषणा की जाती है ।
यह भारतीय संविधान का महत्वपूर्ण लक्षण है । भारतीय संविधान में राज्यों और केंद्र की शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है । दोनों संविधान द्वारा नियंत्रित होती है |
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