लो आज़ फिर कहीं पर
एक और भारत मर गया
करना था कुछ और पर
कुछ और ही कर गया
तलाश उसकी रोटी की
आज भी जारी थी
करता भी क्या,बेबस था
उसकी इतनी लाचारी थी
बेदर्द मौसम का कहर
बस उस पर ही बरस गया
लो आज़ फिर कहीं पर
एक और भारत मर गया—
इंतजार में घरवालें सब
आँखे बिछाए बैठे होंगे
कुछ तो। देरी होने पर
मन ही मन में रूठे होंगे
पर इंतजार उसको भी था
कुछ सवार के आने का
कुछ इंतजाम भी करना था
बस आज रात के खाने का
लो इंतजार अब खत्म हुआ
ज़ालिम दुनियां वो छोड़ चला
सबको कहकर वो अलविदा
सब रिश्ते नाते तोड़ चला
देख दशा ये भारत की
मन मेरा इतना भर गया
लो आज़ फिर कहीं पर
एक और भारत मर गया…………
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योगेन्द्र शुक्ला
7020585162
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