दीप ज्योति शत शत नमन
तिमिर को दूर करती दीपज्योति
तुम्हें मेरा शत शत नमन
न कभी हारती न होती निराश
अनवरत जलती रहती तुम
लाख कोशिश करता कोई
तुम्हें बार बार बुझाने की
मगर तुम कालिमा हटाती
ऊर्ध्व ही बढ़ती जाती सदा
तुम्हें शत शत नमन
लोग करते स्वागत तुम्हारा
अर्चना के पुष्प चढ़ाकर
तुम देती आलोक रात भर
करती सबकी रोशन यामिनी
तुम्हें शत शत नमन
कवि राजेश पुरोहित
भवानीमंडी
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