*जिंदगी की दौड़*
व्यर्थ की लिप्सा है ,लोगों जिन्दगी की दौड़ में।
हाथ न कुछ आ सका है, जिंदगी की दौड़ में।।
कभी शह कभी मात, शतरंज के ज्यूँ खेल में।
हार जीत मिलती रहे ये, जिन्दगी की दौड़ में।।
जीते जी मर जाते हैं नफरतों के शहर में।
सिवाय बुराई के कुछ न मिलता, इस अन्धी दौड़ में।।
कुछ खा पी भी न सके, दौलत के जोड़ में।
चौथेपन में दौड़ते दवाखानों की दौड़ में।।
रिश्तों को ठुकरा दिया, खुदगर्ज़ी के वास्ते।
अपनापन कैसे मिले, नकली रिश्तों की दौड़ में।।
अंग अंग कुरूप सा, हो चला व्याधियों से।
पुरोहित दौड़ता जा रहा सुन्दरता की दौड़ में।।
कवि राजेश पुरोहित
98 पुरोहित कुटी
भवानीमंडी
जिला झालावाड
राजस्थान
मोबाइल7073318074
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