बाज़ार से तू बेज़ार क्यूँ है
खुद से इतना खार क्यूँ है ।
हसरतें तू हैसियत में रख
पाले ख्वहिंशे हज़ार क्यूँ है ।
मुफलिसी महबूबा है तेरी
समझ ,तुझ से प्यार क्यूँ है ।
फ़िर से चुनाव आने को है
जाना मेहरबाँ सरकार क्यूँ है
हस्ती है इनकी तुझसे अजय
वरना सांसे मददगार क्यूँ है ।
-अजय प्रसाद
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