आज के जमाने में बेकसूर की जिंदगी।
पता नहीं क्या दर्द है इस सीने में, चाहकर भी किसी से कुछ कह नहीं सकता,
ये जनता हूँ मै की कसूर वार नहीं हूँ किसी का, मगर फिर भी खुद को बेकसूर कह नहीं सकता,
जिम्मेदारिया इतनी आ चुकी है इस छोटी सी जिंदगी में, की चाहकर भी अब मै अपनी मर्जी से मर नहीं सकता,
और आज की दुनिया में जो कसूर करता है वो कभी इल्जमो से डर नहीं सकता,
मेरा थोड़ा सा विश्वास तो कर, मै बेकसूर हूँ इसलिए कोई सबूत नहीं है मेरे पास, बस इसलिए खुद को बेकसूर साबित कर नहीं सकता,
और बस इसलिए मै खुद को बेकसूर कह नहीं सकता।
– एन के विश्वकर्मा
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