आज के जमाने में बेकसूर की जिंदगी।

पता नहीं क्या दर्द है इस सीने में, चाहकर भी किसी से कुछ कह नहीं सकता,
ये जनता हूँ मै की कसूर वार नहीं हूँ किसी का, मगर फिर भी खुद को बेकसूर कह नहीं सकता,
जिम्मेदारिया इतनी आ चुकी है इस छोटी सी जिंदगी में, की चाहकर भी अब मै अपनी मर्जी से मर नहीं सकता,
और आज की दुनिया में जो कसूर करता है वो कभी इल्जमो से डर नहीं सकता,
मेरा थोड़ा सा विश्वास तो कर, मै बेकसूर हूँ इसलिए कोई सबूत नहीं है मेरे पास, बस इसलिए खुद को बेकसूर साबित कर नहीं सकता,
और बस इसलिए मै खुद को बेकसूर कह नहीं सकता।

– एन के विश्वकर्मा


About Author


Narayan Kumar Vishwakarma

Other posts by

वेबसाइट के होम पेज पर जाने के लिए क्लिक करे

Donate Now

Please donate for the development of Hindi Language. We wish you for a little amount. Your little amount will help for improve the staff.

कृपया हिंदी भाषा के विकास के लिए दान करें। हम आपको थोड़ी राशि की कामना करते हैं। आपकी थोड़ी सी राशि कर्मचारियों को बेहतर बनाने में मदद करेगी।

[paytmpay]