व्याकरण की परिभाषा और महत्व

व्याकरण की परिभाषा

व्याकरण वह साधन है जिसके माध्यम से हम किसी भी भाषा को शुद्ध – शुद्ध पढ़ने ,लिखने एवं समझने का ज्ञान प्राप्त करते है |

उदाहरण – व्याकरण के माध्यम से शब्दों का क्रम एवं उनके प्रयोग की जानकारी प्राप्त होती है |जैसे – वह गाय काली है |व्याकरण की दृष्टि से यह वाक्य अशुद्ध है जिसका शुद्ध वाक्य होगा –वह काली गाय है | इसी प्रकार शुद्ध वाक्यों एवं शब्दों का प्रयोग ही व्याकरण कहलाता है |

व्याकरण का महत्व

– व्याकरण की महत्ता सर्व विदित है | इसकी महत्ता के बारे में संस्कृत मे एक श्लोक है ,जो व्याकरण की महत्ता को दर्शाता है |

श्लोक इस प्रकार है –

यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम् |
स्वजनो श्र्वजनो माsभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत् ||

 

अर्थात हे पुत्र ! यदि तुम बहुत अधिक विद्वान नहीं बन पाते हो या बहुत अधिक नहीं पढ़ पाते हो , तो भी व्याकरण अवश्य पढ़ो , जिससे कि ‘स्वजन’ (अपने लोग ) के स्थान पर ‘श्र्वजन’ (कुत्ता) तथा ‘सकल’ (सम्पूर्ण) के स्थान पर ‘शकल’ (टूटा हुआ) और ‘सकृत्’ (किसी समय ) के स्थान पर ‘शकृत’ ( गोबर का घूर ) न हो जाय |
कहने का तात्पर्य यह है कि यदि व्याकरण का ज्ञान नही रहेगा तो समाज में उपहास के पात्र हो जायेंगे |`अत: सभी लोगों को व्याकरन अवश्य पढ़ना चाहिए |

 


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