विराम चिह्नों को स्पष्ट करते हुए पं. कामता प्रसाद गुरु ने कहा है – “ शब्दों और वाक्यों का परस्पर सम्बंध बताने तथा किसी विषय को भिन्न-भिन्न भागों में बाँटने और ठहरने के लिए , लेखों में जिन चिह्नों का उपयोग किया जाता है , उन्हे विराम चिह्न कहते है | “
अगर इसके शब्दिक अर्थ पर ध्यान दें तो विराम का अर्थ – रुकना, ठहरना , विश्राम करना आदि | अत: स्पष्ट है कि कविता,लेख आदि में जिन चिह्नों के माध्यम से कुछ समय के लिए रूकने की स्थिति को दर्शाते है ;उन्हे विराम चिह्न कहते हैं | विराम चिह्नों के प्रयोग की जानकारी न होने से कभी – कभी अर्थ का अनर्थ हो जाता है |
विराम चिह्नों की प्रयोग विधि की जानकारी भाषा रचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते है | विराम चिह्नों के प्रयोग से लम्बे वाक्यों को छोटे रूप में लिखा जा सकता है |हिंदी भाषा में अंग्रेजी के भी विराम चिह्नों का प्रयोग होता है |
क्र. | विराम चिह्न का नाम | चिह्न (संकेत) |
1 | अल्प विराम | , |
2 | अर्द्ध विराम | ; |
3 | पूर्ण विराम | | |
4 | प्रश्न वाचक चिह्न | ? |
5 | विस्मयादी बोधक विराम / आश्चर्य सूचक चिह्न | ! |
6 | अपूर्ण विराम / न्यून विराम / उप विराम | : |
7 | विवरण चिह्न | :- |
8 | निर्देशक चिह्न | — |
9 | योजक या सम्बंध चिह्न | – |
10 | अवतरण या उद्धरण चिह्न | ‘ ’ या “ ” |
11 | कोष्ठक | ( ) , { } , [ ] |
12 | लोप विराम या वर्जनचिह्न | …………… |
13 | संक्षेप सूचक चिह्न / लाघव विराम / संकेत चिह्न | . या ॰ |
14 | हंस पद / त्रुटि विराम | ंं^ |
15 | तुल्यता सूचक चिह्न | = |
16 | अपूर्ण सूचक चिह्न | x x x |
17 | तारक चिह्न / टीका सूचक चिह्न / फुट नोटों के लिये | † , ‡ , ◌ , * ,| |
18 | समाप्ति सूचक चिह्न | ——— o ——— |
विराम चिह्नों के प्रयोग विधि की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है | विराम चिह्नों के सही प्रकार से प्रयोग करने से व्याकरण में होने वाली त्रुटियों से बचा जा सकता है | भाषा को प्रभाव शाली तथा अल्प शब्दों में अपनी बात रखने में विराम चिह्नों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है |विराम चिह्नों के प्रयोग की जानकारी दी जा रही है ,ध्यान पूर्वक समझने का प्रयास करें | जिसका विवरण निम्न है –
उदाहरण –
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कृष्ण के अनेक नाम है : गोपाल, मुरलीधर , गिरिधर , रणछोर , मोहन आदि |
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संस्कृत भाषा में वचन के तीन भेद होते है :- एकवचन , द्विवचन , बहुवचन |
उदाहरण –
आगे के पदों की व्याख्या इस प्रकार है – जैसे कि हम इस कहानी को जानते है | पता नहीं आज क्याहोगा – प्राण न बचेंगे |
उदाहरण –
उदाहरण
सुभाष चंद्र बोष का नारा था – “ तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हे आजादी दूंगा | “
उदाहरण –
“ अ ” का उच्चारण ( बोलना ) कण्ठ से होता है |
महावीर ( हनुमान ) पराक्रमी थे |
उदाहरण –
हमने तो अपना काम समय से किया है ; और तुमने ………..|
उदाहरण
पं. रामकृष्ण शुक्ल
डॉ. ए. पी.जे अब्दुल कलाम
कृ ॰ प॰ उ॰
इसमें पंडित का लाघव है – पं. , डॉक्टर का लाघव डॉ . तथा कृपया पन्ना उलटिये का लाघव है – कृ ॰ प॰ उ॰ |
उदाहरण-
दावत
एक दिन हम आपके यहाँ ^ पर आयेंगे |
उदाहरण –
चार और चार = आठ
रात्रि = निशा
मर्कट = वानर
उदाहरण –
x x x
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं
उदाहरण –
हिंदी ज्ञान गंगा .कॉम वेबसाइट¹ या एप्स सम्पूर्ण विश्व में हिंदी के प्रचार एवं प्रसार के लिये कार्य करती है | हिंदी भाषा का दैनिक जीवन एवं शासकीय कार्यों में अधिकतम प्रयोग हो तथा एक दूसरे के द्वारा ज्ञान वृद्धि में सहायक हो, इसी भावना को मूर्तिरूप देने के लिये इस वेबसाइट या एप्स का निर्माण किया गया है |
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‡
1 – यह वेबसाइट हिंदी के प्रचार प्रसार का कार्य करता है |
उदाहरण –
रीतिकाल का सामान्य परिचय – [1643 ई.-1843 ई. ] –रीति से विद्वानों का तात्पर्य पद्धति ,शैली तथा काव्यांग निरूपण से है | रीतिकाल को श्रृंगार काल, अलंकृत काल आदि नामों से जाना जाता है | इस काल का नाम “रीतिकाल”रखने का श्रेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल को है | यद्यपि शुक्ल जी ने रस या भाव की दृष्टि से श्रृंगार काल कहने की छूट दी है |आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रवर्तक आचार्य चिंतामणि को माना है | विभिन्न विद्वानों ने रीतिकाल को श्रृंगार काल ,अलंकृत काल ,रीतिकाव्य ,कलाकाव्यआदि नामों से उद्बोधन करते है | प्रत्येक काल के पीछे विद्वानों द्वारा काव्य प्रवृत्तियों एवं उस समय की सामाजिक ,राजनीतिक ,साहित्यिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर दिया गया है | सामान्यतया इस काल के कवि अधिकतर राजदरबारों में रहा करते थे | अत: वे कवि अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के लिये उनके विचारों के अनुरूप कविता पाठ करते थे | श्रृंगार परक रचनाओं की अधिकता थी| इसी काल में इस धारा के विपरित ऐसे कवि भी हुये है जो स्वच्छंद विचारधारा से उन्मुख होकर कविता पाठ करते थे | ऐसे कवियों की श्रेणी में आलम ,बोधा ,ठाकुर ,घनानंद आदि को रखा जा सकता है | एक बात स्पष्ट है कि इस काल को देखा जाय तो अलंकार की दृष्टिसे कविता उत्कृष्ट ऊचाईं पर पहुची है| कवियों की चमत्कार प्रवृत्ति के कारण काव्य में उत्तरोत्तर निखार आता गया | अलंकारों एवं छंदों का काव्य में विभिन्न प्रकार से प्रयोग होने लगे | “ रामचंद्रिका” में तो छंदों की विविधता इस सीमा तक पहुँच गई कि विद्वानों ने इसे “ छंदों का अज़ायबघर” तक कह दिया | हिंदी साहित्य को कलापक्ष की दृष्टि से देखा जाय तो इस काल के कवियों ने अपना उत्कृष्ट योगदान देकर हिंदी साहित्य की समृद्धि की है |
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