महाभारत – वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास का सामान्य परिचय –
वेदों के भाष्यकार , 18 पुराणों एवं महाभारत के रचनाकार वेदव्यास जी है । वेदव्यास का दूसरा नाम कृष्ण द्वैपायन भी है । वेदव्यास के पिता का नाम पराशर मुनि तथा माता का नाम सत्यवती था । इनके जन्म की कथा बड़ी ही रोचक तथा अद्भुत् है । वेदव्यास की जन्म कथा निम्न प्रकार है –
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में सुधंवा नाम के एक राजा थे । एक दिन राजा आखेट के लिए जंगल गये । राजा के जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गयी । राजा की पत्नी ने इस समाचार को एक पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया । राजा को जब यह समाचार मिला तो राजा ने एक दोने में अपना वीर्य निकालकर उस शिकारी पक्षी को रानी के पास पहुचाने के लिए दे दिया । रास्ते में एक दूसरा शिकारी पक्षी मिल गया । दोनों में युद्ध हुआ , जिसके परिणामस्वरूप वीर्य यमुना नदी में जा गिरा । यमुना में ब्रह्मा जी के श्राप से एक अप्सरा मछली बनी थी । मछली उस वीर्य को निगल गयी । वीर्य के प्रभाव से मचली गर्भवती हो गयी । गर्भ पूर्ण होने की अवधि के समय एक निषाद ( मल्लाह ) ने उसी मछली को अपने जाल में फँसा लिया । निषाद द्वारा मछली को चीरने पर उसके पेट से एक बालक और एक बालिका निकली । डर बस निषाद ने दोनों बच्चे को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गये । राजा के पुत्र न होने के कारण बालक को अपने पास रख लिया । बालक का नाम मत्स्यराज रखा गया । बालिका को लेकर निषाद घर चला आया । उस बालिका का नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी । मत्स्यगंधा का ही नाम सत्यवती रखा गया । बड़ी होने पर सत्यवती नाव खेने का कार्य करने लगी । एक बार पराशर मुनि नाव पर बैठकर यमुना पार कर रहे थे । वे सत्यवती के रूप सौंदर्य को देखकर काम-मोहित हो गये । पराशर मुनि ने सत्यबती से उसके साथ सम्भोग की इच्छा जाहिर की । इस पर सत्यवती ने कहा कि मुनिवर आप ब्रह्मज्ञानी है और मैं निषाद की कन्या हूँ । हमारा और आपका सम्भोग कैसे हो सकता है ? इसके बाद पराशर मुनि ने समझाया कि हे सत्यवती सम्भोग के बाद भी तुम कुमारी ही रहोगी । अंत में सत्यवती मान गयी और उसने पराशर मुनि के साथ सम्भोग किया । इसके बाद मुनि से सत्यवती को आशिर्वाद दिया कि – जो तुम्हारे शरीर से मछली की गंध निकल रही है वह सुगंध में परिवर्तित हो जायेगी ।
इस घटना के बाद सत्यवती गर्भवती हो गई । समय पूर्ण होने पर सत्यवती को पुत्र पैदा हुआ । जन्म लेते ही वह बड़ा हो गया तथा अपनी माता सत्यवती से बोला – माता जब कभी भी आप विपत्ति में रहना , उस समय मेरा स्मरण करना । मैं उपस्थित हो जाऊँगा । इतना कहकर वह तपस्या के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये । द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने से उनका शरीर काला होने से उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा गया । वेदों का भाष्य करने के कारण वेद व्यास कहलाये और इसी नाम से विख्यात हुए । सत्यवती का विवाह हस्तिनापुर नरेश शांतनु के साथ हुआ । वेदव्यास की पत्नी आरूणी से एक पुत्र हुआ जो महान बाल योगी शुकदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
महाभारत का सामान्य परिचय –
महाभारत वेदव्यास द्वारा लिखित महाकाव्य है । कहा जाता है कि वेदव्यास जी श्लोक बोलते थे और गणेश जी लिखते थे अर्थात् लेखन कार्य गणेश जी करते थे । वास्तविकता जो भी हो यह जनश्रुति है । महाभारत की सामान्य जानकारी निम्न है –
महाभारत में 1 लाख श्लोक है, जो 18 पर्वों में विभक्त है । यह विश्व साहित्य में सबसे विशाल महाकाव्य है । इसकी विशालता का प्रसार तीन चरणों जय , भारत तथा महाभारत के रूप में हुई । महाभारत मूलरूप से ‘ जय ’ काव्य के रूप में जाना जाता था । उस समय उसमे 8800 श्लोक थे । वेदव्यास ने जय संहिता वैशम्पायन को सुनायी थी । यह दूसरे चरण में ‘ भारत ’ काव्य के नाम से जाना गया । भारत संहिता में 24 हजार श्लोक थे । इसे वैश्म्पायन ने अर्जुन के प्रपौत्र जनमेजय को नागयज्ञ में सुनायी थी । विस्तार क्रम को देखा जाय तो इसके तीसरे चरण में 1 लाख श्लोक हो गये । इसे “ महाभारत ” के रूप में जाना गया । नैमिषारण्य में लोमहर्षण के पुत्र सौति ने शौनक आदि ऋषियों को सम्पूर्ण महाभारत की कथा सुनायी थी । आज हम महाभारत का वृहद रूप ही देखते है । जिसमें मूल रूप से कौरवों और पाण्डवों की कथा है । महाभारत में अनेक आख्यान तथा संदर्भित कथाएँ भी हैं । ” जय ” महाभारत क मूल नाम है जिसके सम्बंध में निम्न श्लोक वर्णित है :-
नारायणं नमस्कृत्य नरंचैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् ॥
महाभारत 18 पर्वों तथा 1 लाख श्लोकों में विभक्त है । इसमें 100 उपवर्ग हैं । जिसका संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है ।
महाभारत के 18 पर्व के बाद खिल भाग भी है । जिसे हरिवंश पर्व के नाम से जाना जाता है । जिसमें 99 एवं 100 वाँ दो उप पर्व है – विष्णु पर्व और भविष्य पर्व । इसमें विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के बारे में वर्णन है ।
महाभारत को ज्ञान का भंडार कहा जाता है । इसमें भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ज्ञान का भंडार है । महाभारत की महत्ता महाभारत में ही वर्णित एक श्लोक में बताई गई है । उस श्लोक में कहा गया है कि जो ज्ञान महाभारत में है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जाएगा परंतु जो महाभारत में नहीं है वह आपको कहीं नहीं मिलेगा । श्लोक निम्न है-
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ ।
यदिहास्ति तदन्यत्र , यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् । ।
(महा. आदि. )
इस समय महाभारत के 4 संस्करण प्राप्त हैं जो इस प्रकार हैं – कोलकाता संस्करण , मुंबई संस्करण , मद्रास संस्करण ,पूना संस्करण । महाभारत की शैली पांचाली है । मुख्य रूप से अनुष्टुप छंद का प्रयोग किया गया है । उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा तथा अर्थातरन्यास अलंकारों का मुख्य रूप से प्रयोग हुआ है । महाभारत में प्राय: सभी रसों का प्रयोग हुआ है ,किंतु वीर ,अद्भुत एवं शांत रसों का मुख्य रुप से हुआ है ।
महाभारत का रचनाकाल —
जिस प्रकार रामायण के रचनाकार की सटीक जानकारी नहीं मिलती है उसी प्रकार महाभारत के रचनाकार के विषय में भी सटीक जानकारी नहीं मिलती है , परंतु विभिन्न विद्वानों के मतों और महाभारत का वर्णन प्रमुख ग्रंथों में वर्णित काथांश होने से अनुमान लगाया जा सकता है । महाभारत की पूर्व एवं अपर काल सीमा का अनुमान लगाया जा सकता है । आगे हम विभिन्न विद्वानों द्वारा महाभारत के रचनाकाल के संबंध में जानकारी प्राप्त करेंगे । जिसका विवरण निम्न है –
महाभारत की रचना काल के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका मूल रूप 500 ई.पू.से तथा विस्तृत रूप प्रथम शताब्दी ई. तक रहा होगा। महाभारत में अनेक परिवर्तन परिवर्धन एवं संशोधन भी होते रहे हैं ।
श्रीमद्भगवद्गीता के संदर्भ में – श्रीमद्भगवद्गीता या गीता , महाभारत का ही अंश है । यह महाभारत के भीष्म पर्व में उल्लिखित है । गीता को इतनी प्रसिद्धि मिली कि इसको एक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में लोग जानते हैं । इसके ऊपर कई भाषा में अनेक टीकाएँ लिखी गई हैं ।
इसमें श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश दिया गया है जिस समय महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने को था । दोनों ओर की सेनाएँ आमने-सामने थीं । उसी समय अर्जुन ने देखा कि इस युद्ध को जीतने के लिए हमें अपने भाई ,चाचा, दादा ,गुरु और अनेक परिचित लोगों को मारना होगा ।अर्जुन यह दृश्य देखकर विचलित हो गए तथा युद्ध न करने का निर्णय लिया । श्रीकृष्ण जो अर्जुन के सारथी बने थे ,उन्होंने अर्जुन को युद्ध करने के लिए जो ज्ञान उपदेश दिया ,उसे ही गीता का उपदेश कहा जाता है । इसी उपदेश को सुनने के बाद अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो गए ।
गीता को 18 अध्यायों में विभक्त किया गया है। 18 अध्यायों के नाम निम्न हैं –
गीता पर भाष्य –
गीता को विद्वत समाज द्वारा ज्ञान का भंडार कहा जाता है । इस पर अनेक भाष्य, टीकाएँ लिखी गई हैं । आज भी विद्वानों द्वारा गीता पर अनेक शोध हो रहे हैं । गीता पर अनेक भाष्य लिखे गये हैं । प्रमुख भाष्य निम्नलिखित हैं –
लेखक | पुस्तक का नाम |
जयदयाल गोयंदका | गीतातत्व विवेचनी टीका |
स्वामी रामसुखदास | गीता साधक संजीवनी |
बालगंगाधर तिलक | गीता रहस्य |
विनोबा भावे | गीता प्रवचन |
श्रीधर स्वामी | सुबोधिनी टीका |
आदि शंकराचार्य | गीता भाष्य |
स्वामी अड़गड़ानंद | यथार्थ गीता |
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