जो वर्ण किसी धातु या शब्द के अंत में जुड़कर नये शब्द में परिवर्तित हो जाते है तथा नये अर्थ का ज्ञान कराते है | उसे प्रत्यय कहते हैं |
प्रत्यय के प्रकार – सामान्यतया प्रत्यय के दो भेद हैं |
(क) कृत् (कृदंत) प्रत्यय
(ख) तद्धित प्रत्यय
जो शब्द किसी धातु के अंत मे जुड़कर नये अर्थ का ज्ञान कराते है, वहाँ कृदंत या कृत् प्रत्यय होता है |इस प्रकार के बने शब्दो को कृदंत कहा जाता है |जैसे –कृ + क्त्वा= कृत्वा |
कृदंत (कृत्) प्रत्यय का संक्षिप्त परिचय निम्न लिखित है-
1. ‘क्त’ (त) प्रत्यय –
भूत काल की क्रिया और विशेषण शब्द बनाने के लिये क्त प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है |इस प्रत्यय का प्रयोग कर्म वाच्य एवं भाव वाच्य दोनों में किया जाता है | इसमे कर्त्ता में तृतीया विभक्ति तथा कर्म में प्रथमा विभक्ति होती हैं |कर्त्ता के लिंग और वचन का कोई प्रभाव नही पड़ता |
‘क्त’ प्रत्यय से बने हुए कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण –
धातु | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
कृ | क्त | कृत: | कृता | कृतम् |
भू | क्त | भूत: | भूता | भूतम् |
दा | क्त | दत्त: | दत्ता | दत्तम् |
श्रु | क्त | श्रुत: | श्रुता | श्रुतम् |
पा | क्त | पीत: | पीता | पीतम् |
गम् | क्त | गत: | गता | गतम् |
कथ् | क्त | कथित: | कथिता | कथितम् |
प्रेष् | क्त | प्रेषित: | प्रेषिता | प्रेषितम् |
पठ् | क्त | पठित: | पठिता | पठितम् |
लिख् | क्त | लिखित: | लिखिता | लिखितम् |
हन् | क्त | हत: | हता | हतम् |
नी | क्त | नीत: | नीता | नीतम् |
हृ | क्त | हृत: | हृता | हृतम् |
हस् | क्त | हसित: | हसिता | हसितम् |
दृश् | क्त | दृष्ट: | द्रष्टा | दृष्टम् |
भुज् | क्त | भुक्त: | भुक्ता | भुक्तम् |
स्नै | क्त | स्नात: | स्नाता | स्नातम् |
2. ‘क्त्वा’(त्वा) प्रत्यय –
जब किसी क्रिया के होने पर दूसरी क्रिया प्रारम्भ होती है तब सम्पन्न हुई क्रिया को “पूर्व कालिक क्रिया” कहा जाता है | हिंदी भाषा में इसका अर्थ ‘करके’ लगा कर होता है |पूर्व कालिक क्रिया का बोध कराने के लिये संस्कृत धातु शब्द के आगे क्त्वा (त्वा) प्रत्यय जोड़ा जाता है|
जैसे – दा+ क्त्वा = दत्वा = देकर
प्रत्ययांत धातुओं के रूप नहीं चलते |
कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण –
कृ + क्त्वा = कृत्वा
ग्रह् + क्त्वा = गृहीत्वा
पी + क्त्वा = पीत्वा
क्री + क्त्वा = क्रीत्वा
नी + क्त्वा = नीत्वा
गम् + क्त्वा = गत्वा
श्रु + क्त्वा = श्रुत्वा
नम् + क्त्वा = नत्वा
धा + क्त्वा = धात्वा
लभ् + क्त्वा =लब्ध्वा
हन् + क्त्वा = हत्वा
जि + क्त्वा = जित्वा
पठ् +क्त्वा = पठित्वा
जग् + क्त्वा = जगत्वा
पूज् + क्त्वा =पूजयित्वा
वच् +क्त्वा = उक्त्वा
स्था +क्त्वा =स्थित्वा
लिख् + क्त्वा = लिखित्वा
भू + क्त्वा =भूत्वा
3. तव्यत् प्रत्यय –
बिधिलिड्.लकार के अर्थ को प्रकट करने के लिये तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है | हिंदी में इसका “चाहिये”अर्थ होता है |
जैसे – पठ् + तव्यत् = पठितव्य: = पढ़ना चाहिये |
तव्यत् प्रत्यय के उदाहरण –
भू + तव्यत् = भवितव्य:
पठ् + तव्यत् = पठितव्य:
कृ + तव्यत् = कर्तव्य:
पा + तव्यत् = पातव्य:
दा + तव्यत् = दातव्य:
गम् + तव्यत् = गंतव्य:
चल् + तव्यत् = चलितव्य:
हस् + तव्यत् = हसितव्य:
नी + तव्यत् = नेतव्य:
कथ् + तव्यत् = कथितव्य:
पूज् + तव्यत् = पूजितव्य:
4. अनीयर् प्रत्यय –
तव्यत् प्रत्यय के समान अर्थ में ही अनीयर् प्रत्यय का प्रयोग होता है |”योग्य”अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है |
जैसे – पठ् + अनीयर् =पठनीय:= पढ़ने योग्य या पढ़ना चाहिये |
अनीयर् प्रत्यय के उदाहरण-
भू + अनीयर् = भवनीय:
गम् + अनीयर् = गमनीय:
कृ + अनीयर् = करणीय:
दृश् + अनीयर् = दर्शनीय:
दा + अनीयर् = दानीय:
हस् + अनीयर् = हसनीय:
पठ् + अनीयर् = पठनीय:
श्रु + अनीयर् = श्रवणीय:
भज् + अनीयर् = भजनीय:
स्था + अनीयर् = स्थानीय:
वंद् + अनीयर् = वंदनीय:
कथ् + अनीयर् = कथनीय:
पूज् + अनीयर् = पूजनीय:
जहाँ किसी संज्ञा,सर्वनाम आदि शब्दों के अंत में जुड़कर नवीन शब्दों का निर्माण किया जाता है |वहाँ तद्धित प्रत्यय होता है |इस प्रकार के बने शब्दों को तद्धितांत शब्द कहते है |
प्रमुख तद्धित प्रत्यय निम्न है –
1. “त्व”प्रत्यय – जिस शब्द के अंत में “त्व” जोड़ दिया जाता है, उससे बने हुये शब्द त्व प्रत्यय कहलाते है | इससे बने शब्दों का प्रयोग हमेशा नपुंसकलिंग में होता है |संज्ञा और सर्वनाम शब्दों से भाव वाचक संज्ञा बनाने के लिये इस प्रत्यय का प्रयोग होता है |जैसे – महत् + त्व = महत्त्वम् |
त्व प्रत्यय के प्रमुख उदाहरण –
प्रभु + त्व = प्रभुत्वम्
ब्राह्मण + त्व = ब्राह्मणत्व
गुरु + त्व = गुरुत्वम्
पुरुष + त्व = पुरुषत्वम्
मानव + त्व = मानवत्वम्
2. तल् प्रत्यय –
जिस शब्द के अंत में “त” जोड़ दिया जाता है उससे बने हुये शब्द तल् प्रत्यय कहलाते है | इससे बने शब्दों का प्रयोग हमेशा स्त्रीलिंग में होता है |संज्ञा और सर्वनाम शब्दों से भाव वाचक संज्ञा बनाने के लिये इस प्रत्यय का प्रयोग होता है |जैसे – प्रभु + तल् = प्रभुता |
तल् प्रत्यय के प्रमुख उदाहरण –
महत् + तल् = महत्ता
कटु + तल् = कटुता
गुरु + तल् = गुरुता
लघु + तल् = लघुता
प्रभु + तल् = प्रभुता
3. मतुप् / वतुप् प्रत्यय –
जिस संज्ञा शब्दों से “वाला” अर्थ को प्रकट करने वाले विशेषण शब्द बनाने के लिये प्रयोग किया जाता है तथा जिसमें मतुप् /वतुप् प्रत्यय जोड़ा जाता है | जहाँ मतुप् का मत् और वतुप् का वत् शेष रहता है, वहाँ मतुप् / वतुप् प्रत्यय होता है | ये शब्द विशेषण होते है तथा इनके रुपों में विशेष्य के अनुसार लिंग,वचन और विभक्ति का प्रयोग होता है |
मतुप् / वतुप् प्रत्यय से बने शब्दों के उदाहरण –
शब्द | प्रत्यय | पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग | |
श्री | मतुप् | श्रीमान् | श्रीमती | श्रीमत् | |
बुद्धि | मतुप् | बुद्धिमान् | बुद्धिमती | बुद्धिमत् | |
गति | मतुप् | गतिमान् | गतिमती | गतिमान् | |
मति | मतुप् | मतिमान् | मतिमती | मतिमत् | |
धी | मतुप् | धीमान् | धीमती | धीमत् | |
धन | वतुप् | धनवान् | धनवती | धनवत् | |
पुत्र | वतुप् | पुत्रवान् | पुत्रवती | पुत्रवत् | |
गुण | वतुप् | गुणवान् | गुणवती | गुणवत् | |
अर्थ | वतुप् | अर्थवान् | अर्थवती | अर्थवत् | |
बल | वतुप् | बलवान् | बलवती | बलवत् | |
भग | वतुप् | भगवान् | भगवती | भगवत् | |
ज्ञान | वतुप् | ज्ञानवान् | ज्ञानवती | ज्ञानवत् | |
रस | वतुप् | रसवान् | रसवती | रसवत् | |
रूप | वतुप् | रूपवान् | रूपवती | रूपवत् | |
महिमा | वतुप् | महिमावान् | महिमावती | महिमावत् |
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