सूफ़ी काव्य धारा –

हिंदी साहित्य की निर्गुण काव्य धारा की दूसरी शाखा को सूफी काव्य धारा कहा जाता है | सूफी काव्य के लिए प्रचलित कुछ नाम है – प्रेममार्गी शाखा, प्रेमाश्रयी शाखा, प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा आदि प्रचलित है |

मुसलमानों के आक्रमण के साथ ही कुछ सूफी महात्मा भारत आ गये | यहाँ आकर सूफी मत वेदांत , हठ योग , प्राणायाम जैसी विचार धारा से प्रभावित हुए | कतिपय विद्वानो की धारणा है कि भारत मे सूफी मत का प्रवेश ख्वाजा मुहन्नुद्दीन चिश्ती के भारत आगमन से हुआ |

सूफी सम्प्रदाय –

भारत मे सूफी मत चार सम्प्रदायों में मुख्य रुप से विभाजित हुआ | जिसका विवरण इस प्रकार है-

1. चिश्ती सम्प्रदाय –

इसकी स्थापना ख्वाजा मुहन्नुद्दीन चिश्ती ने की |

2. सुहरावर्दी सम्प्रदाय –

इस सम्प्रदाय का भारत मे प्रचार बहाउद्दीन जकरिया ने किया |

3. कादरी सम्प्रदाय –

कादरी सम्प्रदाय का प्रवर्तक भारत में अब्दुल कादिर ने किया | इस सम्प्रदाय के सैयद मोहम्मद गौस इतने ख्याति प्राप्त हुए कि सिकंदर लोदी ने अपनी पुत्री का विवाह उनके साथ करा दिया |

4. नक्सबन्दी सम्प्रदाय –

इस सम्प्रदाय का प्रचार भारत मे 17 वीं शती मे अहमद फारूखी ने किया |

सूफी शब्द की व्युत्पत्ति अर्थ एवं स्वरुप –

‘सूफी’ शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न शब्दो से की गई है | जिसका विवरण इस प्रकार है –
(i) मुसलमानो का प्रवित्र तीर्थ मदीना की मस्जिद के सामने वाले चबूतरे का नाम सूफ्फा चबूतरा है | इस चबूतरो पर बैठने वाले फकीरो को सूफी कहा जाता है |
(ii) कुछ विद्वान इसका सम्बंध सोफिया शब्द से जोडते है , जिसका अर्थ है – ज्ञान |
(iii) सूफ़ी शब्द का व्युत्पत्ति ‘सफा’ से मानी गयी है | इसका अर्थ पवित्र और शुद्धाचरण है | इस प्रकार पवित्र आचरण करने वाला सूफी कहलाया |
(iv) सर्वाधिक मान्य मत यह है कि सूफी शब्द का सम्बंध ‘सूफ’ से है | जिसका अर्थ है – ऊन | सूफी लोग सफेद ऊन से बने हुए चोगे पहनते थे , और उनका आचरण पवित्र एवं शुद्ध होता था |

सूफी काव्य धारा के कवि व उनकी रचनाएँ –

कुछ प्रसिद्ध सूफी कवियों और उनकी रचनाओ का विवरण निम्नलिखित है –

1. असाइत – असाइत की रचना ‘हंसावली’ है |

जिसका रचना काल 1370 ई0 है | यह रचना प्रेमाख्यानक परम्परा की सबसे प्राचीन कृति है |इस प्रेमख्यान में राजस्थानी भाषा के प्रचीन रूप का प्रयोग हुआ | कवि असाइत ने इस कृति का रचना स्रोत विक्रम एवं प्रेम कथा को माना है | इनकी रचना का एक नमूना इस प्रकार है –
देव अब्रधारु मुझ विनती | पेलि भवि हूँ पंखिणी हती |
इडा मेहला सेवन कीउ | दव बलतउ तेणि बनि आविउ |
मुझ भरतार साहस नवि कीउ | अपति मेहलीनि उडि गयु |
इस्यं करम ते निष्ठुर तणां | मूकी ग्यु बालक आपणां |

2. मुल्ला दाउद –

सूफी कवि मुल्ला दाउद की रचना ‘चन्दायन’ है | इस ग्रंथ की रचना 1379 ई0 मे हुई थी | यह प्रेमाख्यानक परम्परा का दूसरा काव्य है | डा. माता प्रसाद गुप्त ने इस ग्रंथ का मूल नाम ‘लोर कहा’ या ‘लोरकथा’ माना है | किन्तु वे इसकी प्रसिद्ध ‘चान्दायन’ के रुप मे स्वीकार करते है |

3. दामोदर कवि –

दामोदर कवि की रचना ‘लखमसेन पद्मावती कथा’ है | इस ग्रंथ की रचना सन् 1459 ई0 में की गयी | छंद योजना मे चौपाई के अतिरिक्त दोहा ,सोरठा आदि का प्रयोग किया गया है | इनकी भाषा राजस्थानी हिंदी है |

4. कल्लोल कवि –

कल्लोल कवि द्वारा रचित ‘ढोला मारु रा दूहा’ राजस्थानी प्रेमाख्यानक है | डा. मोती लाल मेनारिया ने अंत:साक्ष्य के आधार पर इसे 1443 ई0 सिद्ध किया है | इसमे केवल दोहो का प्रयोग है, तथा भाषा पुरानी राजस्थानी है | एक उदाहरण इस प्रकार है –
कागज नहीं क मसि नहि, क लिखता आलम थाई |
कई उण देश संदेसडा, मोलई बडई बिकाई ||
X x x x x
तू ही सज्जण मित्त तू प्रीतम तू परिवाण |
हियडई भीतर तू बसई , भावई जांण न जाण ||

5. ईश्वर दास –

ईश्वरदास की रचना का नाम ‘सत्यवतीकथा’ है | इस काव्य का रचना काल 1501 ई0 मे निर्धारित है | छंद – दोहा , चौपाई तथा भाषा अवधी है |

6. कुतुबन –

कुतुबन की रचना ‘मृगावती’ है | जिसका रचना काल 1503 ई0 है | ये चिश्ती वंश के शेख बुरहान के शिष्य थे , तथा जौनपुर के बादशाह हुसैनशाह के आश्रित थे | यह ग्रन्थ अवधी भाषा मे लिखा गया है | इसमे कडवक शैली (दोहा चौपाई शैली) का प्रयोग किया गया है |

7. गणपति –

गणपति की रचना ‘मधावानल कामकन्दला’ है | इसका रचना काल 1527 ई0 है | इसमे नायक माधव और नृत्य विशारदा कामकन्दला के प्रेम का निरुपण अत्यंत रोमांचक शैली मे किया गया है | इसमे दोहे का प्रयोग हुआ है | इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी है |

8. मलिक मुहम्मद जायसी-

इनका जन्म 1492 ई0 के लगभग हुआ था | रायबरेली जिले के जायस नामक स्थान पर जन्म लेने वाले मलिक मुहम्मद जायसी के बचपन का नाम मलिक शेख मुंसफी था | जायस के निवासी होने कारण वे जायसी कहलाते थे | जायसी जाति के शेख थे | उनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज था | जायसी का पालन – पोषण उनके ननिहाल मानिकपुर (प्रतापगढ) में हुआ था |
मलिक मुहम्मद जायसी सूफी काव्य धारा (प्रेममार्गी शाखा) के प्रतिनिधि कवि है | पण्डित रामचंद्र शुक्ल इन्हे सूर और तुलसी के समकक्ष मानते है | जायसी बडे कुरुप थे | कहते है कि एक बार बादशाह शेर शाह ने इनकी कुरुपता पर हँस पडा | जायसी ने अपने ऊपर शेर शाह को हँसते हुए देखकर कहा –
‘मोहिका हँसेसि कि कोइरहि ?’
( अर्थात तुम मुझपर हँस रहे हो या मुझे बनाने वाले कुम्हार (अल्लाह ) पर ) इसको सुनकर बादशाह बहुत लज्जित हुए | विरक्त हो जाने पर चिश्तिया सूफी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध पीर शेख मुहीउद्दीन से उन्होने दीक्षा ली थी | माना जाता है कि सन् 1542 ई0 के लगभग उनकी मृत्यु हुई थी |

जायसी की रचनाएँ –

जायसी द्वारा छोटे – बडे मिलाकर 42 ग्रंथो की रचना की गई है | जायसी की प्रमुख रचनाओं का विवरण इस प्रकार है –
(i) अखरावट – अखरावट मे वर्णमाला के एक – एक अक्षर को लेकर सिद्धांत सम्बंधी तत्वो से भरी चौपाइयाँ कही गयी हैं | इस छोटी सी पुस्तक मे ईश्वर सृष्टि जीव ईश्वर प्रेम आदि विषयो पर विचार प्रकट किये गये हैं | इसमे सूफी सिद्धांतो का वर्णन किया गया हैं |
(ii) आखिरी कलाम – इसमे सृष्टि के अंत की कथा हैं , जिसे कयामत कहते हैं |
(iii) कान्हावत – इसमे कृष्ण की कथा हैं |
(iv) चित्ररेखा – चित्ररेखा में चंद्रपुर के राजा चंद्रभान की पुत्री चित्ररेखा और कन्नौज के राजा कल्याण सिंह के पुत्र प्रीतम कुँवर की कहानी वर्णित हैं |
(v) कहरनामा – ‘कहरनामा’ मे कवि ने आध्यात्मिक विवाह की प्रास्तावना के साथ कहार जाति मे प्रचलित विवाह प्रथा द्वारा आत्मा और परमात्मा के परिणय और मिलन को दिखाया गया हैं |
(vi) मसलनामा – मसलनामा मे ईश्वर प्रेम भक्ति और प्रेम निवेदन हैं |
(vii) पद्मावत (1540) – जायसी द्वारा रचित 57 खण्डो में (अध्यायों) पद्मावत इस परम्परा का प्रौढतम काव्य हैं | इसका रचना काल 1540 ई0 हैं | इसमे दोहा और चौपाई छंदो का प्रयोग हैं | इसकी भाषा ठेठ अवधी है | यह एक रूपक काव्य है |

पद्मावत के पात्रो का रूपकत्व ‌- पद्मावत के पात्रो का रूपकत्व इस प्रकार है –

पद्मावत के पात्र प्रतीक
(i) चित्तौड शरीर का प्रतीक
(ii) राजा रत्न सेन मन का प्रतीक
(iii) सिंहल व्दीप हृदय का प्रतीक
(iv) पद्मावती बुद्धि का प्रतीक
(v) राघव चेतन शैतान का प्रतीक
(vi) अलाउद्दीन माया का प्रतीक
(vii) नागमती संसार का प्रतीक
(viii) हीरामन तोता गुरु का प्रतीक

9. मंझन –

इनके सम्बंध मे कुछ भी ज्ञात नहीं है | इनकी रचना ‘ मधुमालती’ है | इसका रचना काल 1545 ई0 है | कवि का मूल उद्देश्य उदात्त प्रेम का चित्रण करना है | इस ग्रंथ की भाषा अवधी है | इसमे दोहा – चौपाई शैली का प्रयोग हुआ है |

10. जटमल –

जटमल ने ‘प्रेमविलास प्रेमलता की कथा’ नामक काव्य की रचना की है | इसका रचना काव्य 1556 ई0 है | इसमे दोहा – चौपाई छंदो का प्रयोग हुआ है |

11. कुशललाभ –

‘माधवानल कामकन्दला चौपाई’ नामक प्रेमाख्यान की रचना सन् 1556 ई0 मे कुशललाभ व्दारा हुई | इसमें चौपाइयों के बीच – बीच मे दोहा, सोरठा , गाथा आदि का प्रयोग हुआ हैं | इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी हैं |

12. नन्ददास –

अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि नन्ददास द्वारा रचित ‘रुपमंजरी’ की रचना 1568 ई0 मे हुई | प्रेमाख्यान परम्परा की विभिन्न प्रवृत्तियों का समन्वय करते हुए रुपमंजरी और कृष्ण के प्रेम का चित्रण अत्यंत स्वच्छंद रुप मे किया गया है | इसमे दोहा – चौपाई शैली का प्रयोग हुआ है, तथा भाषा ब्रज भाषा है |

13. आलम –

इनकी रचना ‘माधवानल कामकंदला’ है | रचना काल 1584 ई0 है |इसकी भाषा अवधी है , और चौपाइयों की पाँच- पाँच अर्द्धालियों के बीच दोहे या सोरठे का प्रयोग किया गया है | काव्यात्मकता की दृष्टि से यह रचना अत्यंत सरस एवं मार्गिक है |

14. नारायण दास –

इनकी रचना ‘छिताई वार्ता’ है | जिन्होने इतिहास और कल्पना के बल पर अपनी कथा का निर्माण किया | रचना काल 1590 ई0 है | इसकी भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा है , तथा इसमे दोहे – चौपाई शैली का प्रयोग किया गया है |

15. उसमान –

उसमान की रचना ‘चित्रावली’ है , जिसका रचना काल 1613 ई0 है | उसमान गाज़ीपुर के निवासी तथा जहाँगीर के समकालीन थे | इनकी भाषा अवधी है | इसमे चौपाई की सात – सात अर्द्धालियों के पश्चात एक – एक दोहे का प्रयोग किया गया है |

16. पुहकर कवि –

इनकी रचना ‘रसरतन’ है | रचना काल 1618 ई0 है | ये अकबर के दरबारी दुर्गा दास के प्रपौत्र थे | इनकी भाषा अवधी है , तथा छंद योजना दोहा – चौपाई प्रयुक्त है |

17. शेखनवी –

शेखनवी की रचना ‘ज्ञानदीप’ है |रचना काल 1619 ई0 है | ये जहाँगीर के समय मे वर्तमान थे | इनकी भाषा अवधी है , तथा इसमे दोहा – चौपाई शैली का प्रयोग किया गया है |

18. जान कवि –

सत्रहवीं शती के मध्य सर्वाधिक प्रेमाख्यानों की रचना करने का श्रेय जान कवि को दिया जाता है | जिनका रचना काव्य 1612 ई0 से 1664 ई0 माना जाता है |

इनके प्रमुख ग्रंथो के नाम इस प्रकार है –
(i) कथा रत्नावती
(ii) कथा नलदमयंती
(iii) कथा कलावंती
(iv) कथा रुप मंजरी
(v) कथा पिजरषा साहिजादै वा देवलदे
(vi) कथा कलंदर
(vii) कथा मोहिनी
(viii) ग्रंथ लै लै मजनू

19. नरपति व्यास –

इनकी रचना ‘नल- दमयंती’ है , जिसका रचना काल 1625 ई0 है | ये दोहा – चौपाई शैली मे रचित है |

21. काशिम शाह –

इनकी रचना ‘हंस जवाहिर’ है | ये दरिया बाद ( बाराबंकी ) के रहने वाले थे | ये 1731 ई0 के लगभग वर्तमान थे | इनके काव्य की भाषा अवधी है |

22. नूर मोहम्मद –

इन्होने सन् 1744 ई0 मे ‘इंद्रावती’ नामक एक सुंदर आख्यान काव्य लिखा | जिसकी भाषा अवधी है | नूर मोहम्मद की एक अन्य रचना फारसी अक्षरो मे लिखा मिला जिसका नाम है – ‘अनुराग बासुरी’ | जिसका रचना काल 1764 ई. है |
नूर मोहम्मद दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के समय मे थे , और ‘सबरहद’ नामक स्थान के रहने वाले थे | जो जौनपुर जिले मे जौनपुर – आज़मगढ की सरहद पर है | पीछे सबरहद से ये अपनी ससुराल भादो (जिला – आज़मगढ ) चले गये | इनके श्वसुर शमसुद्दीन का और कोई वारिस न था | इससे वे ससुराल मे ही रहने लगे | नूर मोहम्मद फारसी के अच्छे आलिम थे और इनका हिंदी काव्यभाषा का भी ज्ञान और सब सूफी कवियों से अधिक था |

23. शेख निसार –

‘युसुफ जुलेखा’ इनकी प्रेमाख्यानक रचना है |


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