रीतिकाल का सामान्य परिचय –
[1643 ई.-1843 ई. ]
रीति से विद्वानों का तात्पर्य पद्धति ,शैली तथा काव्यांग निरूपण से है | रीतिकाल को श्रृंगार काल, अलंकृत काल आदि नामों से जाना जाता है | इस काल का नाम “रीतिकाल”रखने का श्रेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल को है | यद्यपि शुक्ल जी ने रस या भाव की दृष्टि से श्रृंगार काल कहने की छूट दी है |आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रवर्तक आचार्य चिंतामणि को माना है | विभिन्न विद्वानों ने रीतिकाल को श्रृंगार काल ,अलंकृत काल ,रीतिकाव्य ,कलाकाव्यआदि नामों से उद्बोधन करते है | प्रत्येक काल के पीछे विद्वानों द्वारा काव्य प्रवृत्तियों एवं उस समय की सामाजिक ,राजनीतिक ,साहित्यिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर दिया गया है | सामान्यतया इस काल के कवि अधिकतर राजदरबारों में रहा करते थे | अत: वे कवि अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के लिये उनके विचारों के अनुरूप कविता पाठ करते थे | श्रृंगार परक रचनाओं की अधिकता थी| इसी काल में इस धारा के विपरित ऐसे कवि भी हुये है जो स्वच्छंद विचारधारा से उन्मुख होकर कविता पाठ करते थे | ऐसे कवियों की श्रेणी में आलम ,बोधा ,ठाकुर ,घनानंद आदि को रखा जा सकता है | एक बात स्पष्ट है कि इस काल को देखा जाय तो अलंकार की दृष्टिसे कविता उत्कृष्ट ऊचाईं पर पहुची है| कवियों की चमत्कार प्रवृत्ति के कारण काव्य में उत्तरोत्तर निखार आता गया | अलंकारों एवं छंदों का काव्य में विभिन्न प्रकार से प्रयोग होने लगे | “ रामचंद्रिका” में तो छंदों की विविधता इस सीमा तक पहुँच गई कि विद्वानों ने इसे “ छंदों का अज़ायबघर” तक कह दिया | हिंदी साहित्य को कलापक्ष की दृष्टि से देखा जाय तो इस काल के कवियों ने अपना उत्कृष्ट योगदान देकर हिंदी साहित्य को नई पहचान दी है |
रीतिकाल का नामकरण –
[1643 ई. से 1843 ई.] तक के कालखंड को उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल कहा जाता है |इस काल को विद्वानों ने अनेक नाम दिये है |
नीचे सूची दी जा रही है, जिनके माध्यम से समझा जा सकता है |
नामकरणकर्ता | नामकरण |
1. मिश्रबंधु | अलंकृत काल |
2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल | रीतिकाल |
3. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ | कलाकाल |
4. आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र | श्रृंगारकाल |
‘रीति’ को आधार बनाकर इस काल का वर्गीकरण किया गया है |इस काल का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया जा सकता है |- (i) रीतिबद्ध (ii) रीतिसिद्ध (iii) रीतिमुक्त |
क्रमश: इनका वर्णन निम्न प्रकार है –
(1) रीतिबद्ध काव्यधारा –
इस वर्ग में वे कवि आते हैं, जिन्होने लक्षण ग्रंथो की रचना की है तथा काव्य रचना भी की है | ऐसे कवि रीति के बंधन में बँधे हुये है| अर्थात् इस धारा के रचनाकार कवि और आचार्य दोनों थे | इस धारा के प्रमुख कवि है – चिंतामणि ,मतिराम ,देव ,जसवंत सिंह ,मण्डन ,कुलपति मिश्र ,भूषण ,भिखारी दास ,दूलह , सोमनाथ ,पद्माकर ,सुरतिमिश्र ,प्रताप सिंह .ग्वाल ,रसिक गोविंद आदि |
(2) रीतिसिद्ध काव्यधारा –
इस वर्ग में वे कवि आते हैं ,जिन्होने रीतिग्रंथ या लक्षण ग्रंथों की रचना नहीं की है | परंतु रीतिसिद्ध कवियों को रीति की भली भांति जानकारी थी | वे इसमें पारंगत थे ,जिसका प्रयोग कवियों ने अपने काव्य ग्रंथों में किया है | ‘बिहारीलाल ‘ इस वर्ग के प्रतिनिधि कवि हैं | इस वर्ग के कवियों में प्रमुख कवि है – बिहारीलाल ,रसनिधि नृप शंभू ,बेनीबंदीजन,बेनीकवि ,बेनीप्रवीन , राजा मानसिंह ,पजनेस ,रामसहाय दास आदि |
(3) रीतिमुक्त काव्यधारा –
इस वर्ग के अंतर्गत वे कवि आते है जो रीतिबंधन व परिपाटी से मुक्त थे | इस वर्ग के कवि काव्य परिपाटी से अलग हटकर स्वच्छंद रूप से अपने विचारों की अभिव्यक्ति काव्य रूप में दी है | इस धारा के कवि प्रयत्न करके कविता नहीं की है , वरन कविता इनके हृदय से फूटी है | इन्हे स्वच्छंदतावादी कवि भी कहा जाता है | इस वर्ग के कवियों में प्रमुख कवि हैं – घनानंद ,आलम ,बोधा , ठाकुर ,द्विजदेव आदि |
1. चिंतामणि त्रिपाठी –
ये रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र तथा तिकवाँपुर ,जिला- कानपुर के निवासी थे | परम्परा से प्रसिद्ध है कि भूषण ,मतिराम तथा जटाशंकर इनके भाई थे जो प्रसिद्ध कवि भी थे | इस पर भी विद्वानों में विवाद है |इनका जन्म काल 1600 ई. के लगभग तथा मृत्यु काल 1680-85 ई. के आस –पास है | ये सूर्यवंशी शाहजी भोसला ,शाहजहाँ तथा दारा शिकोह के आश्रम में रहे | इनकी रचना निम्न है -
1. छंद विचार पिंगल
2. काव्य विवेक
3. कविकुलकल्पतरु
4. काव्य प्रकाश
5. रामायण
2. केशवदास [1560 ई. -1617 ई. ]
– आचार्य केशव दस का ओरछा नरेश महराज रामसिंह के भाई इंद्रजीत सिंह की सभा में रहते थे | जहां उन्हे वहाँ बहुत सम्मान मिलता था | ये ब्राह्मण कृष्ण दत्त के पौत्र और काशीनाथ के पुत्र थे | पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र केशव को प्रथम आचार्य मानते है |केशव ने पहली बार काव्यांगों पर विचार किया तथा संस्कृत की परम्परा की स्थापना भी पहली बार की है | आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने केशव की कविता में दुरुहता और अस्पष्टता का आरोप लगाया है तथा उन्हे “ कठिन काव्य का प्रेत “ कहा है |केशव कवि और आचार्य दोनों थे | आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने केशव को रीतिकाल में स्थान न देकर भक्तिकाल में सगुण धारा में स्थान दिया है परंतु केशव दास का वर्णन रीतिकाल में करना ही उचित है | केशव दास की रचनाओं का वर्णन निम्न है –
1. कविप्रिया –
यह अलंकार स्र संबंधित शाष्त्रीय ग्रंथ है | कहा जाता है कि केशवने इसकी रचना अपनी साहित्य शिष्या राय प्रवीण के लिये की थी | प्रवीणराय केशव के आश्रय दाता इंद्रजीत सिंह के दरबार की गणिका थी |
2. रसिक प्रिया –
यह रस सम्बंधी शास्त्रीय ग्रंथ है | इस इस ग्रंथ में नायिका भेद का वर्णन किया गया है | श्रृंगार रस की प्रमुखता है |
3. रामचंद्रिका –
यह केशव की भक्तिपरक रचना है | इसमें 115 प्रकार के छंद है | रामचंद्रिका को छंदों का अजायबघर कहा है |
4. छंदमाला –
इसमें छंदों का वर्णन किया गया है |
5. वीरसिंह देव चरित –
यह एक प्रशस्ति काव्य है |
6. जहागीरजस चंद्रिका –
यह भी एक प्रशस्ति काव्य है |
7. रतन बावनी
8. विज्ञान गीता
9. नखशिख
केशव को अलंकारवादी कवि कहने के पीछे उन्ही का एक दोहा उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत है –
जदपि सुजाति सुलच्छनी , सुबरन सरस सुवृत्त |
भूषण बिनु न विराजई , कविता बनिता मित्त ||
3. कुलपति मिश्र –
ये आगरा के रहने वाले माथुर चौबे थे | इनके पिता का नाम परशुराम मिश्र था | कहा जाता है कि हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि बिहारीलाल इनके मामा थे | कुलपति मिश्र जी जयपुर के महाराज जयसिंह के पुत्र महाराज रामसिंह के आश्रय में रहते थे | इनका कविता काल 1660ई. से 1700 ई. के बीच है | चिंतामणि की परम्परा में आने वाले ये दूसरे प्रमुख आचार्य हैं | ये संस्कृत के विद्वान थे | इनकी रचना है –
1. रसरहस्य
2. संग्रामसार
3. दुर्गाभक्ति चंद्रिका
4. मुक्तितरंगिणी
5. नखशिख
इनमें प्रथम तीन ही उपलब्ध है | इसमें दुर्गाभक्तिचंद्रिका , दुर्गासप्तशती का पद्यबद्ध अनुवाद है | संग्रामसार ,महाभारत के द्रोणपर्व का तथा रसरहस्य ,मम्मट के ‘काव्यप्रकाश’ का छायानुवाद है |
4. कुमारमणि –
इनका जन्म 1665 ई. के आस –पास हुआ है | ये ध्वनिवादी आचार्य है | चिंतामणि ,कुलपति मिश्र की परम्परा से आते हैं | इनके दो ग्रंथ है –
1. रसिकरंजन (1708 ई.)
2. रसिकरसाल (1719 ई.) |
5. बिहारीलाल-
रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि कविवर बिहारी लाल का जन्म 1595 ई. में ग्वालियर
के पास बसुवा गोविंदपुर गाँव में हुआ था | इनके पिता का नाम केशव राय था | इनके पिता निम्बार्क सम्प्रदाय के महंथ नरहरि दास के शिष्य थे | सन् 1645 ई. के आस पास जब कविवर बिहारी जयपुर के महाराज जयसिंह के यहाँ पहुँचे तो पता लगा कि महाराज अपनी नव विवाहिता रानी के प्रेम में इतना रसलीन हो गए कि राज दरबार देखना ही छोड़ दिया | उस समय बिहारी ने एक दोहा लिख कर महाराज के पास भेजवा दिया जो इस प्रकार है –
नहिं पराग नहिं मधुर मधु , नहिं विकास इहिं काल |
अली कली ही सों विध्यो , आगे कौन हवाल ||
कहा जाता है कि इस दोहे का महाराज के ऊपर इतना प्रभाव हुआ कि वे प्रसन्न होकर बिहारी को काली पहाड़ी नामक ग्राम दान में दे दिया , तथा प्रत्येक दोहे पर स्वर्ण मुद्राएँ देने का संकल्प किया | बिहारी का देहावसान सन् 1663 ई. में हुआ | बिहारी लाल की ख्याति का आधार उनकी एक मात्र रचना “ बिहारी सतसई “
है जिसमे 719 दोहे हैं | नि[:संदेह बिहारी को रीतिकाल का सर्वश्रेष्ठ कवि कहा जा सकता है | बिहारी ने अलंकार ,रस ,भाव , वक्रोक्ति , ध्वनि ,नायिका भेद ,गुण ,रीति आदि आयामों को ध्यान में रख कर दोहो की रचना की है |
6. महाराज जसवंत सिंह –
ये मारवाड़ के प्रसिद्ध महाराज थे | महाराज जसवंत सिंह अपने समय के सबसे प्रतापी हिंदू नरेश थे | ये महाराज गजसिंह के दूसरे पुत्र थे | इनका जन्म 1626 ई. में तथा देहावसान 1688 ई. में हुआ | ये हिंदी सहित्य के प्रमुख आचार्य माने जाते है | इन्होने अलंकार पर एक छोटा सा ग्रंथ भाषा भूषण लिखा जो बहुत ही प्रचलित हुआ | “भाषाभूषण“ बिल्कुल चंद्रालोक की छाया पर बनाया | दोनो पुस्तकों में एक ही दोहे /श्लोक में लक्षण और उदाहरण दोनो रखे गये है | भाषाभूषण के अतिरिक्त इनके अन्य ग्रंथ तत्वज्ञान सम्बंधी हैं | इनके द्वारा लिखे ग्रंथ इस प्रकार है –
1. भाषाभूषण
2. अनुभव प्रकाश
3. आनंद विलास
4. अपरोक्ष सिद्धांत
5. सिद्धांत सार
6. सिद्धांत बोध
7. प्रबोध चंद्रोदय नाटक |
7. बेनी –
ये 1643 ई. के आस-पास मौजूद थे | ये असनी के बंदीजन थे | इनका कोई ग्रंथ उपलब्ध नही है | फुटकल कवित्त सुने जाते हैं |
8. बेनी बंदीजन – इनका कविता काल 1792 ई. से 1833 ई. के आस पास तक माना जा सकता है | ये बैंती ( जिला-रायबरेली )के रहने वाले थे | ये अवध के प्रसिद्ध वजीर महाराज टिकैतराय के आश्रय में रहते थे |इनके द्वारा लिखे दो ग्रंथ है –
1. टिकैतरायप्रकाश
2. रसविलास
9. बेनी प्रवीन –
ये लखनऊ के वाजपेयी थे | इन्होने1817 ई. में अपनेदूसरे ग्रंथ की रचना की थी इनके दोनों ग्रंथ हैं
1. श्रृंगार भूषण
2. नवरसतरंग
10. मंडन –
ये जैतपुर (बुंदेलखण्ड ) के रहने वाले थे | राजा मंगदसिंह के दरबार में 1739 ई. के लगभग मौजूद थे | इनके पाँच ग्रंथों का पता चला है जो इस प्रकार है –
1. रसविलास
2. जनकपचीसी
3. रसरत्नावली
4. जानकी जू को ब्याह
5. नैन पचासा
11. भूषण-
वीर रस के प्रसिद्ध कवि भूषण का जन्म 1613 ई. में कानपुर जिले के तिकवापुर गाँव में हुआ था | इनकी मृत्यु 1715 ई. में हुई थी |ये कान्य कुब्ज ब्राह्मण थे |ये शिवाजी और छत्रसाल के आश्रय दाता थे |भूषण को हिन्दू जाति का प्रतिनिधि कवि माना जाता है | भूषण इनकी उपाधि है | जिसे चित्रकूट के नरेश सोलंकी के पुत्र रुद्र ने प्रदान की थी | इसके बाद ये इसी नाम से प्रसिद्ध हो गये | रीति परम्परा से हट कर वीर रस से पूर्ण रचनाएँ की है
1. शिवराजभूषण
2. शिवाबावनी
3. छत्रसाल दशक
12. मतिराम – [1604ई.-1701ई. ] –
ये तिकवाँपूर (जिला- कानपुर ) के रहने वाले थे | चिंतामणि और भूषण के भाई ये परम्परा से प्रसिद्ध हैं |मतिराम रीतिकाल के विशिष्टांग आचार्यों के प्रमूख थे | ये बूंदी के महाराज भावसिंह के यहाँ बहुत दिन तक रहे | मतिराम के ग्रंथ इस प्रकार है –
1. मतिराम सतसई
2. ललित ललाम
3. रसराज
4. अलंकार पंचाशिका
5. वृत्त कौमुदी
रसराज में रस और नायिका के भेदों का वर्णन किया गया है | ललित ललाम अलंकार सौंदर्य का ग्रंथ है | मतिराम सतसई में 703 दोहे है |
13. श्रीपति-
ये कालपी के रहने वाले थे |कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे | 1720 ई. में इन्होने अपने ग्रंथ काव्य सरोज की रचना की | इनके ग्रंथ है –
1. काव्य सरोज
2. रस सागर
3. सरोज कलिका
4. अलंकार गंगा
5. कविकल्पद्रुम
6. अनुप्रास विनोद
7. विक्रमविलास
14. देव [1673 ई.-1767 ई. ]-
इनका जन्म इटावा (उत्तर प्रदेश ) के ब्राह्मण परिवार में हुआ था | अपने जीवन काल में ये तमाम रईसों , नवाबों तथा रजाओं के आश्रय में रहे |जिनके प्रमुख नाम है – फफूँद रियासत के राजा कुशलसिंह ,आजमशाह, सेठ भोगी लाल ,चरखापति राजा सीताराम के भतीजे भवानी दत्त वैश्य ,राजा उद्योतसिंह , पिहानी के अधिपति अली अकबर खाँ | रीतिकालिन कवियों मे कृतित्व के कारण देव प्रसिद्ध हुए |इनके पुस्तकों की संख्या कुछ लोग 52 और कोई 72 तक बतलाते है | परंतु उपलब्ध मात्र15 तक ही हैं | इनका एक प्रसिद्ध दोहा इस प्रकार है –
अभिधा उत्तम काव्य है , मध्य लक्षणा लीन |
अधम व्यंजना रस विरस ,उलटी कहत नवीन||
देव की रचनाओं का विवरण इस प्रकार है——
1. भावविलास
2. जातिविलास
3. रसविलास
4. कुशलविलास
5. भवानीविलास
6. वृक्षविलास
7. पावसविलास
8. अष्टयाम
9. सुजानविनोद
10. प्रेमतरंग
11. रागरत्नाकर
12. देवचरित
13. प्रेमचंद्रिका
14. काव्यरसायन या शब्दरसायन
15. सुखसागर तरंग
16. ब्रम्हदर्शन पचीसी
17. तत्व दर्शन पचीसी
18. आत्मदर्शन पचीसी
19. जगदर्शन पचीसी
20. नखशिख
21. रसानंद लहरी
22. प्रेमदीपिका
23. प्रेमदर्शन
15. भिखारीदास [ सन् 1705 ई. -1770 ई. ]
– इनका जन्म प्रतापगढ़ (उ.प्र. ) के पास ट्योंगा गाँव में हुआ था | इनके पिता का नाम कृपाल दास था | भिखारी दास ने अपना वंश परिचय अपने ग्रंथ में दिया है | इन्होने रस ,छंद , अलंकार,रीति , गुण , दोष आदि निरुपण किया है | अत: इनके विषय में स्पष्ट कहा जा सकता है कि ये सर्वांग निरूपक आचार्य थे | इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है –
1. श्रृंगार निर्णय – इसमें नायक नायिका के भेदों का वर्णन है |
2. काव्य निर्णय- इसमें रस , अलंकार , गुण , दोष और ध्वनि का विवेचन किया गया है |
3. शतरंज शतिका
4. छंदार्णव पिंगल
5. छन्द प्रकाश
6. रस सारांश
7. विष्णु पुराण भाषा
16. रसलीन [सन्1699 ई. -1750 ई. ] –
इनका पूरा नाम सैयद गुलाम नवी ‘रसलीन’था | जन्मस्थान विलग्राम ,जिला हरदोई (उ.प्र.) है |इनके दो प्रमुख ग्रंथ है –
1. अंग दर्पण
2. रस प्रबोध |
इनका प्रसिद्ध दोहा इस प्रकार है –
अमिय , हलाहल , मदभरे ,सेत ,श्याम रतनार |
जियत , मरत , झुकि झुकि परत , जेहि चितवर इकवार |
17. पद्माकर [ 1753 ई. -1833 ई.] –
इनका जन्म मध्य प्रदेश के सागर नामक स्थान पर हुआ था | बांदा में इनका मूल निवास था | इनके पिता मोहन लाल भट्ट थे ,जो अच्छे कवि भी थे |पद्माकर रीतिकाल के अंतिम व श्रेष्ठ आचार्य थे | ये कई राजाओं के आश्रय में रहे , जिसमें नागपुर के महाराज रघुनाथ राव (अप्पा साहब ) ,जयपुर नरेश महाराज प्रताप सिंह ,गोसाई अनूप गिरि उपनाम हिम्मत बहादुर आदि | जयपुर नरेश द्वारा इन्हे कविराज शिरोमणि की पदवी मिली | इनके द्वारा रचित ग्रंथ है —-
1. हिम्मत बहादुर विरुदावली
2. जगद्विनोद
3. पद्माभरण
4. गंगालहरी
5. प्रबोध पचासा
6. प्रतापसिंह विरुदावली
7. कलिपच्चीसी
18. सेनापति [ 16 वीं शती ] –
सेनापति के सम्बंध में जो जानकारी प्राप्त होती है ,वह उनके ही ग्रंथ से जाना जा सकता है | इनके पिता गंगाधर दीक्षित था | इनका एक मात्र ग्रंथ है – कवित्त रत्नाकर
| इनका प्रिय अलंकार श्लेष है , जिसमें इनको पूर्ण सफलता भी मिली है | सेनापति संस्कृत के विद्वान थे |
19. घनानंद [1689 ई.-1739 ई . ]-
घनानंद स्वच्छ्न्द काव्यधारा के प्रमुख कवि है | आचार्य रामचंद्र शुल्क ने घनानंद को साक्षात् रसमूर्ति और ब्रजभाषा के काव्य के प्रधान स्तम्भों में से एक मानते हैं | घनानंद जाति के कायस्थ थे ,तथा बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले के मीरमुंशी थे | ये राज दरबार में कुचक्र का शिकार हुए | कहा जाता है कि एक बार राजा ने इनसे गाने के लिये कहा , इस पर घनानंद टाल मटोल करने लगे | तब वहाँ कुछ लोगों कहा कि इनकी प्रेमिका सुजान कहेगी तब गायेंगे | सुजान वैश्या बुलाई गई | घनानंद ने सुजान की ओर मुंह करके तथा बादशाह की ओर पीठ करके गाने पर राज दरबारियों ने इसे राजा की तौहीन करार दिया | राजा के कहने पर उन्हे देश से निकाल दिया गया | उसी समय घनानंद ने सुजान को भी चलने के लिये कहा , परंतु सुजान ने चलने से इंकार कर दिया | इस घटना से घनानंद को गहरा आघात लगा |इसके बाद उन्हे वैराग्य उत्पन्न हो गया और वृन्दावन जाकर निम्बार्क सम्प्रदाय में वैष्णव हो गये |
घनानंद स्वच्छंद विचारधारा से प्रेरित मार्मिक कवितामें सिहस्त एक महाकवि थे | इनकी हृदय की गहराइयों को छुती है | घनानंद के ग्रंथ का विवरण इस प्रकार है –
1. सुजान सागर
2. कोक सागर
3. बिरहलीला
4. रसकेलिवल्ली
5. कृपानंद
20. बोधा [ 18 वीं शती ] –
ये बुंदेलखंड के रहने वाले थे | ये पन्ना नरेश के दरबारी थे | घनानंद की भांति इनका भी प्रेम पन्ना दरबार की नर्तकी सुभान ( सुबहान ) से होने कारण देश निकाला गया | प्रेम के पीर की व्यंजना बड़ी मर्मस्पर्सी ढ़ंग से की है | ये अपने समय के प्रसिद्ध कवि थे | इनके लिखे दो ग्रंथ है –
1. विरहवारीश
2. इश्कनामा
21. आलम –
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 1683 ई. से 1703 ई. तक आलम का कविताकाल माना है | ये जाति के ब्राह्मण थे ,परंतु शेख नाम की रँगरेजिन से विवाह करके मुसलमान हो गये |बाद में जहाँ नामक एक पुत्र भी हुआ | ये औरंगजेब के दूसरे बेटे मुअज्जम के आश्रय में रहते थे | इनकीभी प्रेम कहानी विचित्र है | कहा जाता है कि आलम ने एक बार शेख से पगड़ी रंगने को दी | भूल बस एक चिट में दोहे की आधी पंक्ति लिखी थी “कनक छरी सी कामिनी , काहे को कटि छीन “ ,शेख ने दोहा पूरा करके लिख दिया “ कटि को कंचन काट विधि कुचन मध्य धरि दीन “ | इसके बाद उसी पगड़ी में चिट को रख दिया | इसके बाद आलम शेख के पूरे दीवाने हो गये और उनसे विवाह कर लिया | शेख भी कविता करती थी और हाजिर जवाबी में निपुण थी | एक बार की घटना है शाहजहाँ मुअज्जम हँसी में शेख से पुछा-“ क्या आलम की औरत आप ही है ? “ | शेख ने तुरंत उत्तर दिया कि “ हाँ जहाँपनाह जहान की माँ मैं ही हूँ | “ इश्क का दर्द इनके एक एक वाक्य में भरा है | आलम की कविताओं के संग्रह का नाम “ आलमकेलि “
है |
22. ठाकुर [ 18 वीं शती ] –
इनका जन्म ओरछा में हुआ था |ठाकुर के पूर्वज काकोरी (अवध) के निवासी थे | इनके बारे में प्रसिद्ध है कि हिम्मत बहादुर के अपमान पर ठाकुर ने अपनी म्यान से तलवार निकाल लिया था | हिंदी साहित्य के इतिहास में तीन कवि ठाकुर नाम से हो चुके हैं | जिसमें दो कवि असनी के ब्रह्मभट्ट और एक बुंदेलखंद के कायस्थ | तीनों की कविता इतनी मिल – जुल गई है कि भेद करना कठिन हो जाता है | ये तीसरे रीतिमुक्त के प्रमुख कवि हैं |इनके काव्य में प्रेम के विविध प्रसंग होली ,बसंत आदि के स्वाभाविक चित्रण हैं | इन्हे लोक जीवन का अच्छा ज्ञान था | इनके दो काव्य संग्रह है –
1. ठाकुर शतक
2. ठाकुर ठसक
23. द्विजदेव –
इनका रचना काल 1820 ई. से 1861 ई. तक रहा है | ये रीतिमुक्त काव्य धारा के अंतिम कवि थे | इनका प्रकृति प्रेम स्वच्छंद है | इनके प्रमुख ग्रंथ है –
1. श्रृंगार लतिका
2. श्रृंगार बत्तीसी
24. रसनिधि –
इनका वास्तविक नाम पृथ्वी सिंह था ,रसनिधि इनका उपनाम था | ये दतिया के बरौनी के एक जमीदार थे |इनका रचना काल 1603 ई. से 1660 ई. तक रहा है | इन्होने बिहारी के तर्ज पर दोहों का एक ग्रंथ बनाया है | इनके प्रमुख ग्रंथ निम्न है –
1. रतन हजारा
2. रसनिधि सागर
3. विष्णुपदकीर्तन
4. कवित्त
5. बरहमासा
6. हिंडोला
7. अरिल्ल
25. बृंद [1643 ई . – 1723 ई. ]
– ये मेडना ( जोधपुर) के रहने वाले थे | इनका अधिकांश समय किशनगढ़ में बीता | इन्होने बृंद सतसई की रचना की है , जिसमें 700 दोहे है | इनकी रचना इस प्रकार है –
1. बृंद सतसई या दृष्टांत सतसई
2. श्रृंगार शिक्षा
3. भाव पंचाशिका
26. ग्वाल कवि [ 1791 ई. – 1868 ई . ] –
ग्वाल कवि मथुरा के रहने वाले थे तथा बंदीजन सेवाराम के पुत्र थे | इनके प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार है –
1. रसरंग
2. रसिकानंद
3. कृष्णजू को नखशिख
4. दूषण दर्पण
27. दूलह –
इनका कविताकाल 1743ई. से 1768 ई. तक माना जा सकता है | ये कालिदास त्रिवेदी के पुत्र थे |इनके पिता का नाम उदयनाथ ‘ कवींद्र ‘ था | इन्होने अलंकार पर एक ग्रंथ लिखा , जो बहुत प्रसिद्ध हुआ | अलंकार पर इनकी पुस्तक का नाम है – कविकुलकेष भरण
| इसमें 85 पद्य हैं | मतिराम , दास , देव आदि के साथ दूलह का भी नाम लिया जाता है |
28. प्रतापसाहि –
इनका रचना काल 1823 ई. -1843 ई. के बीच माना जाता है | ये बुंदेलखंड के निवासी रतन सेन बंदीजन के पुत्र थे | प्रतापसाहि एक कवि , टीकाकार एवं रीतिकार के रूप में जाने जाते हैं | शिवसिंह सेंगर के मतानुसार ये पन्ना महाजन छत्रसाल में आश्रम में रहे | इनके लिखें ग्रंथ इस प्रकार है
1. अलंकार चिंतामणि
2. जयसिंह प्रकाश
3. श्रृंगार मंजरी
4. व्यंग्यार्थ कौमुदी
5. श्रृंगार शिरोमणि
6. अलंकार चिंतामणि
7. काव्य विनोद
8. काव्य विलास
व्यंग्यार्थ कौमुदी और काव्य विलास इनकी प्रसिद्ध रचना है |
29. तोषनिधि –
इनका कविताकाल 1734ई. के आस-पास रहा | ये श्रृंगवेरपुर ( सिंगरौर , जिला इलाहाबाद ) के रहने वाले थे | इनके पिता का नाम चतुर्भुज शुक्ल था | ये प्रसिद्ध कवि तथा काव्यांगोंके सरस लक्षण और उदाहरण दिये है | इनकी रचना है –
1. सुधानिधी
2. विनयशतक
3. नखशिख
30. नेवाज –
ये 1680 ई. के लगभग वर्तमान थे | ये जाति के ब्राह्मण थे | इन्होने ‘ शकुंतला नाटक’
नाम का एक आख्यान , दोहा , चौपाई , सवैया आदि छंदों में लिखा है |
31. श्रीपति –
ये 1720 ई. लगभग वर्तमान थे | ये कलापी के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे |इनके लिखे ग्रंथ इस प्रकार है –
1. काव्यसरोज
2. कविकल्पद्रुम
3. अनुप्रास विनोद
4. रससागर
5. विक्रमविलास
6. सरोज कलिका
7. अलंकार गंगा
32. बैताल –
इनका कविता काल 1729 ई. से 1782 ई. के आस- पास माना जाता है | ये जाति के बंदीजन थे | महाराज विक्रमसाहि की सभा में रहते थे| इन्होने नीति और लोक व्यवहार संबंधी कुंडलियों की रचना की है | जो विक्रम को सम्बोधित है |एक उदाहरण इस प्रकार है-
मरै बैल गरियार , मरै वह अड़ियल टट्टू |
मरै करकसा नारि , मरै वह खसम निखट्टू ||
ब्राह्मण सो मरि जाय ,हाथ लै मदिरा प्यावै |
पूत वही मर जाय , जो कुल में दाग लगावै ||
अरू बेनियाव राजा मरै , तबै नींद भर सोइए |
बैताल कहै विक्रम सुनो, एते मरे न रोइए ||
33. अन्य कवि –
इसके अतिरिक्त रीतिकाल में अनेक कवि हुए जिसमें गिरधर कविराय, सूदन , गुलाम मिश्र , महाराज विश्वनाथ सिंह ,गुरु गोविंदसिंह जी , बनवारी ,सबलसिंह चौहान आदि कवियों की लम्बी श्रृंखला है | कवियों ने अपनी रचनाओं द्वारा रीतिकाल को समृद्ध किया है|
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