हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रंथो का लेखन भारतीय एवं पाश्चात विव्दानो ने अपने – अपने ठंग से लिखने का प्रयास किया है |
प्रमुख हिंदी इतिहास लेखको का विवरण इस प्रकार है –
आदिकाल
लेखक | इतिहास ग्रन्थ | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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1.गार्सा-द-तासी | इस्त्वार द ला लितरेत्यूर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
2.मौलवी करीमुद्दीन | तबका तश्शुअहा में तजकिरान्ई जुअहा- ई हिंदी | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
3.शिवसिंह सेंगर | शिवसिंह सरोज | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
4.सरजाँर्ज ग्रियर्सन | द माडर्न वर्नेक्यूलर लिटरेचर आँफ हिन्दुस्तान | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
5.मिश्रबन्धु | मिश्रबन्धु विनोद ( श्यामबिहारी मिश्र , शुकदेव बिहारी मिश्र , गणेश बिहारी मिश्र ) | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
6.आचर्य रामचन्द शक्ल | हिंदी साहित्य का इतिहास | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
7.डा. रामकुमार वर्मा | हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
8.बाबू श्यामसुन्दर दास | हिंदी भाषा और साहित्य | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
9.आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी | हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य का | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
10.डा. धीरेन्द्र वर्मा | हिंदी साहित्य | 11.डा. गणपतिचन्द्र गुप्त | हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास | 12.डा. नगेन्द्र | हिन्दी साहित्य का इतिहास, रीतिकाव्य की भूमिका | 13.डा. बच्चन सिंह | हिंदी साहित्य का नवीन इतिहास | 14.डा. भोला नाथ तिवारी | हिंदी साहित्य | 15.विश्वनाथप्रसाद मिश्र | हिंदी साहित्य का अतीथ | 16.परशुराम चतुर्वेदी | उत्तरी भारत की संत परम्परा | 17.प्रभुदयाल मीतल | चैतन्य सम्प्रदाय और उसका साहित्य | 18.डा. नलिन विलोचन शर्मा | हिंदी साहित्य का इतिहास दर्शन | 19.डा. मोतीलाल मेंनारिया | राजस्थानी पिंगल साहित्य, राजस्थानी भाषा और साहित्य | 20.कृपाशंकर शुक्ल | आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास | 21.पं. राम नरेश त्रिपाठी | कविता कौमुदी (दो भाग ) | 22.सूर्यकान्त शास्त्री | हिंदी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास | 23.पं.महेश दत्त शुक्ल | हिंदी काव्य संग्रह | 24.डा. टीकम सिंह तोमर | हिंदी वीर काव्य | 25.आचार्य चतुरसेन | हिंदी साहित्य का इतिहास | 26.डा. रामस्वरुप चतुर्वेदी | हिन्दी साहित्य और संवेदना का इतिहास | 27.डा. भगीरथ मिश्र | हिंदी काव्य शास्त्र का इतिहास | 28.डा. रामखेलावन पाण्डेय | हिंदी साहित्य का नया इतिहास | 29.डा. विजयेन्द्र स्नातक | राधावल्लभ सम्प्रदाय – सिद्धांत और साहित्य | 30.पदुमलाल पुन्ना लाल वख्सी | हिंदी साहित्य विमर्श | 31.आयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध | हिंदी भाषा और उसके साहित्य का इतिहास | 32.डा. विश्व नाथ त्रिपाठी | हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास | 33.नागरी प्रचारिणी सभा काशी | हिंदी साहित्य का वृहद इतिहास |
[ हिंदी साहित्य का वृहद इतिहास 18 खण्डों मे विभक्त है | इसके षष्ठ भाग “ रीतिकाल” का सम्पादन डा . नगेन्द्र ने किया है | शताधिक लेखको ने अपना महत्व पूर्ण योगदान दिया है | ]
हिंदी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन और नामकरण पर विव्दानो ने अलग- अलग विचार रखे है |
हिंदी साहित्य के इतिहास का नामकरण –
नामकरण को लेकर विव्दानो मे मतभेद है | विव्दानो ने अपने विचारो को प्रमुख स्थान दिया है | नामकरण से सम्बंधित कुछ आधार बिन्दु सुझाये जा रहे है | जिसका विवरण निम्न है –
(क) कर्ता के आधार पर – कर्ता के आधार पर नामकरण जैसे – प्रसद युग , भारतेन्दु युग , व्दिवेदी युग , शुक्ल युग आदि |
(ख) शासक और शासन काल के आधार पर – इस आधार पर नामकरण हैं – विक्टोरिया युग, एलिजावेथ युग, मराठा युग आदि |
(ग) प्रवृत्ति के आधार पर – प्रवृत्ति के आधार पर नामकरण जैसे – रीतिकाल, छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद आदि |
(घ) विकास वादिता के आधार पर – आदिकाल, आधुनिक काल, मध्यकाल आदि |
(ङ) समाजिक तथा सांस्कृतिक घटनाओ के आधार पर – इस आधार पर नामकरण है – राष्ट्रिय धारा, स्वातंत्रोंत्तर, स्व्चछन्दवाद आदि |
हिंदी साहित्य के इतिहासकारो व्दारा अपने – अपने ठंग से काल विभाजन किया गया |
गार्सा-द- तासी और शिवसिंह सेंगर ने काल विभाजन का कोई प्रयास नही किया | काल विभाजन का पहला श्रेय जार्ज ग्रियर्सन को जाता है | जार्ज ग्रियर्सन ने सर्वप्रथम काल विभाजन का प्रथम प्रयास किया |
1. जार्ज ग्रियर्सन का काल विभाजन –
जार्ज ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ मे ग्यारह अध्यायो का वर्णन किया है जो निम्न लिखित है –
(i) चारण काल
(ii) 15 वीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण
(iii) मलिक मोहम्मद जायसी की प्रेम कविता
(iv) ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय
(v) मुगल दरबार
(vi) तुलसीदास
(vii) रीतिकाव्य
(viii) तुलसीदास के परवर्ती कवि
(ix) 18 वीं शताब्दी
(x) कंपनी के शासन मे हिन्दुस्तान
(xi) विक्टोरिया के शासन मे हिन्दुस्तान
2. मिश्र बन्धुओं का काल विभाजन – ‘मिश्र बन्धु विनोद’ निम्न काल विभाजन वर्णित है-
1. आरम्भिक काल –
(क) पूर्व आरम्भिक काल (सं0 700 से 1343 वि0)
(ख) उत्तर आरम्भिक काल (सं0 1344 से 1444 वि0)
2. माध्यमिक काल –
(क) पूर्व माध्यमिक काल (सं0 1445 से 1560 वि0)
(ख) प्रौढ माध्यमिक काल (सं0 1561 से 1680 वि0)
3. अलंकृत काल –
(क) पूर्व अलंकृत काल (सं0 1681 से 1790 वि0)
(ख) उत्तर अलंकृत काल (सं0 1791 से 1889 वि0)
4. परिवर्तन काल – (सं0 1890 से 1925 वि0)
5. वर्तमान काल – (सं0 1926 वि0 से आज तक)
3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल विभाजन –
आचार्य शुक्ल ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1929 ई0) मे काल विभाजान मे दोहरा नामकरण करते हुए उसका प्रारुप निम्न प्रकार दिया है |
1. आदिकाल (वीरगाथा काल) सं0 1050 – 1375 वि0
2. पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल) सं0 1375 – 1700 वि0
3. उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) सं0 1700 – 1900 वि0
4. आधुनिक काल (गद्य काल) सं0 1900 – 1984 वि0
4. डा. रामकुमार वर्मा का काल विभाजन – डा. रामकुमार वर्मा ने अपने इतिहास ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ (1938) मे निम्न प्रकार से काल विभाजन किया है –
1. सान्धिकाल (सं0 750 से 1000 वि0)
2. चारणकाल (सं0 1000 से 1375 वि0)
3. भक्तिकाल (सं0 1375 से 1700 वि0)
4. रीतिकाल (सं0 1700 से 1900 वि0)
5. आधुनिक काल (सं0 1900 वि0 से अब तक)
5. हजारी प्रसाद व्दिवेदी का काल विभाजन – इस प्रकार है –
1. आदिकाल (1000 ई0 से 1400 ई0)
2. पूर्व मध्यकाल (1400 ई0 1700 ई0)
3. उत्तर मध्यकाल (1700 ई0 1900 ई0)
4. आधुनिक काल (1900 ई0 से अब तक)
6. डा. गणपति चन्द्रगुप्त का काल विभाजन – इस प्रकार है –
1. प्रारम्भिक काल (1184 ई0 से 1350 ई0)
2. मध्यकाल –
(i) पूर्व मध्यकाल (1350 ई0 से 1500 ई0)
(ii) उत्तर मध्यकाल (1500 ई0 से 1857 ई0)
3. आधुनिक काल (1857ई0 से 1965 ई0)
हिंदी साहित्य के काल खण्ड को विव्दानो ने भिन्न-भिन्न नामकरण किया है जिसका विवरण प्रस्तुत है |
(1)आरम्भिक काल | मिश्र बन्धु |
(2)चारण काल | डा. ग्रियर्सन |
(3)वीरगाथा काल | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल |
(4)आदिकाल | हजारी प्रसाद व्दिवेदी |
(5)चारण काल, सन्धिकाल | डा. रामकुमार वर्मा |
(6)बीजवपन काल | महावीर प्रसाद व्दिवेदी |
(7)सिद्ध सामन्त काल | राहुल सांस्कृत्यायन |
(8)प्रारम्भिक काल | डा. गणपति चन्द्र गुप्त |
(9)वीरकाल | आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
(10)संक्रमण काल | रामखेलावन पाण्डेय |
(11)पुरानी हिंदी काल | चन्द्रधर शर्मा गुलेरी |
(12)आधार काल | डा. मोहन अवस्थी |
(13)अन्धकार काल | डा. कमल कुल श्रेष्ठ |
(1) भक्तिकाल | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल |
(2) पूर्व मध्यकाल | डा. गणपति चन्द्र गुप्त |
(3) पूर्व मध्यकाल | हजारी प्रसाद व्दिवेदी |
(1) अलंकृत काल | मिश्र बन्धु |
(2) रीतिकाल | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल |
(3) कलाकाल | रमाशंकर शुक्ल रसाल |
(4) श्रृंगार काल, प्रेमकांत | आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
(1) गद्यकाल | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल |
(2) आधुनिक काल | डा. रामकुमार वर्मा |
(3) वर्तमान काल | मिश्र बन्धु |
(4)आधुनिक काल | डा. गणपति चन्द्र गुप्त |
हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रंथो मे जो नाम सर्वाधिक प्रचलितहै वे इस प्रकार है |
(1) आदिकाल (1000 ई0 से 1350 ई0)
(2) भक्तिकाल (1350 ई0 से 1650 ई0)
(3) रीतिकाल (1650 ई0 से 1850 ई0)
(4) आधुनिक काल (1850 ई0 से अब तक)
हिंदी साहित्य के आरम्भ को लेकर विव्दानोमे पर्याप्त मतभेद है जिनका विवरण इस प्रकार है –
डा. ग्रियर्सन | – 700 ई0 |
मिश्र बन्धु | – 643 ई0 |
पं0 चन्द्रधर शर्मा गुलेरी | – 10 वी शती |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | – 993 ई0 |
डा. रामकुमार वर्मा | – 7 वीं शती |
डा. नगेन्द्र | – 8 वीं शती |
हजारी प्रसाद व्दिवेदी | – 10 वीं शती |
डा. गणपति चन्द्रगुप्त | – 1184 ई0 |
आदिकाल मे हिंदी साहित्य के समानान्तर संस्कृत और अपभ्रंश साहित्य की रचना हुई | आदिकालीन अपभ्रंश साहित्य के कवियो का परिचय निम्न प्रकार है –
कवि | रचना | विशेष |
स्वयंभू | पउमचरिउ, रिट्ठणेमि,स्वयंभू छंद | 1. 783 ई0 के आस – पास के विव्दान थे , 2. स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मिकी कहा जाता है | |
पुष्पदन्त | महापुराण, णयकुमार चरित, जसहर चरिउ | 1.ये 10 वीं शती मे हुए थे | 2. 63 महापुरुषो के जीवन की घटनाओ का वर्णन है | ये शैव थे परन्तु बाद मे अपने आश्रय दाता के अनुरोद से जैन हो गये | |
धनपाल | भविसयत्त कहा | 1.रचना काल 10 वीं शती | 2. इस काव्य मे एक वणित पुत्र भविष्यदत्त की कथा है | |
अब्दुल रहमान | सन्देश रासक | 1.रचनाकार 12 वीं शती का उत्तरार्द्ध है | 2. यह एक खण्ड काव्य है | जिसमे विक्रमपुर की एक वियोगिन के विरह की कथा है | |
जिनदत्त सूरि | उपदेश रसायनरास | 1.इस ग्रंथ की रचना 12 वीं शताब्दी मे हुई | 2. यह 80 पद्दो का यह नृत्य – गीत काव्य रास लीला के रूप मे है | |
जोइन्दु | परमात्म प्रकाश, योगसार | 1.इनकी रचना छठवीं शताब्दी मे हुई | 2. वर्ण्य विषय धर्म दर्शन है | |
रामसिंह | पाहुड दोहा | 1.ग्यारहवीं शताब्दी मे उनकी रचना लिखी गयी | 2. इनकी रचना मे दार्शनिकता है | |
राहुल सांस्कृत्यायन ने सिद्धो की संख्या 84 बताई है | ये लोग अपने नाम के पीछे ‘पा’ जोडते थे जैसे – सरहपा , लुइपा , शबरपा आदि | पा आदर सूचक शब्द था | सिद्धो का प्रादुर्भाव आठवीं शती के आस- पास माना जाता है | सिद्ध सम्प्रादाय वस्तुत: बौद्ध धर्म की विकृति है | ईसा के प्रथम शताब्दी तक बौद्ध धर्म हीनयान और महायान दो भागो मे विभक्त हो गया | हीनयान केवल सन्यासियों के लिए था तथा महायान के व्दार सबके लिये खुले थे | महायान ही आगे चलकर मन्त्रयान बन गया | मन्त्रयान के भी दो भाग हुए वज्रयान और सहजयान| वज्रयानी ही सिद्ध कहलाये | ये मन्त्र –तंत्र का प्रयोग करते थे |
आदिकालीन सिद्ध साहित्य के प्रमुख कवियो और उनकी रचनाओ का विवरण निम्न है –
कवि | रचना | विशेष |
सरहपाद या सरहपा | दोहा कोष | 1.राहुल जी ने इनका समय 769 ई0 माना है | 2. इनकी कविता के वर्ण्य विषय – गुरु महिमा, वाड्याडम्बरो तथा कर्मकाण्डों का विरोध कायारुपी तीर्थ की प्रशंसा अन्तर साधना पर जोर और पण्डितो को फटकार | |
शबरपा | चर्यापद | 1.इनका जन्म क्षत्रिय कुल मे 780 ई0 मे हुआ था | 2. इनकी गुरु सरहपा थे | 3. शबरो का सा जीवन व्यतीत करने के कारण ये शबरपा कहे जाने लगे | |
लुइपा या लूहिपा | – – | 1.ये 773 ई0 के आस-पास विद्यमान थे | इनके गुरु शबरपा थे | 84 सिद्धो मे इनका स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है | |
डोम्भिपा | डोम्बि-गीतिका, योगचर्या, अक्षरव्दिकोपदेश | 1.मगध के क्षत्रिय वंश के 840 ई0 के लगभग इनका जन्म हुआ था | 2. विरुपा से इन्होने दीक्षा ली थी | 3. इनके व्दारा लिखित 21 ग्रंथ बताये गये है | |
कण्हपा | – | 1.इनका जन्म कर्नाटक के ब्राह्मण वंश मे 820 ई0 मे हुआ था | 2. इनके लिखे 74 ग्रंथ बताये जाते है | इनके गुरु जालन्धरपा थे | |
कुक्कुरिपा | – | 1.इनके गुरु चर्पटीपा थे | इनके व्दारा रचित 16 ग्रंथ माने जाते है | 3. इनके जन्मकाल का पता नही चल सका है | |
1. लूहिपा 2. लीलापा 3. विरूपा 4. डोंभिपा 5. शवरीपा 6. सरहपा 7. कंकालीपा 8. मीनपा 9. गोरक्षपा 10. चौंरगीपा 11. वीणापा 12. शांतिपा 13. तंतिपा 14. चमरिपा 15. खड्गपा 16. नागार्जुन 17. कण्हपा 18. कर्णरिपा 19. धगनपा 20. नारोपा 21. शीलपा 22. तिलोपा 23. छत्रपा 24. भद्रपा 25. दोखंधिपा 26. अजागिपा 27. कालपा 28. धोंभीपा 29. कंकणपा 30. कमरिपा 31. डेंगिपा 32. भदेपा 33. तंधेपा 34. कुक्कुरिपा 35. कुचपा 36. धर्मपा 37. महीपा 38. अंचितिपा 39. भल्लहपा 40. नलिनपा 41. भूसुकुपा 42. इंद्रभूति 43. मेकोपो 44. कुठालिपा 45. कमरिपा 46. जालंधरपा 47. राहुलपा 48. घर्वरिपा 49. धोकरिपा 50. मेदिनीपा 51.पंकजपा 52. घंटापा 53. जोगीपा 54. चेलुकपा 55. गुंडरिपा 56. निर्गुणपा 57. जयानंत 58. चर्पटीपा 59. चंपकपा 60. भिखनपा 61. भलिपा 62. कुमरिपा 63. चँवरिपा 64. मणिभद्रपा (योगिनी) 65. कनखलापा (योगिनी) 66. कलकलपा 67. कंतालीपा 68. धहुरिपा 69. उधरिपा 70. कपालपा 71. किलपा 72. सागरपा 73. सर्वभक्षपा 74. नागबोधिपा 75. दारिकपा 76. पुतलिपा 77. पनहपा 78. कोकालिपा 79. अंनगपा 80. लक्ष्मीकरा (योगिनी) 81. समुदपा 82. भलिपा 83. लुचिकपा 84. मेखलपा |
जिस प्रकार हिंदी के पूर्वी क्षेत्र मे सिद्धो ने बौद्ध धर्म के बज्रयान मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यम से किया, उसी प्रकार पश्चिमी क्षेत्र मे जैन साधुओ ने भी अपने मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यमसे किया | जैन साहित्य मे हिंदी की वे रचनाए आती है जिनके अंतर्गत जैन धर्म की कथाओ या उपदेशो के आधार बनाया गया है |
जैन कवियो के रचनाए आचार, रास, फागु और चरित आदि विभिन्न शैलियो मे है | प्रमुख कवियो के रचनाएँ निम्नलिखित है –
कवि | रचना |
आचार्य देव सिंह | श्रावकाचार |
शालिभद्र सूरि | भरतेश्वर बाहुबली रास |
आसगु | चन्द्रनबाला रास |
जिनधर्म सूरि | स्थूलिभद्र रास |
विजयसेन सुरि | रेवंत गिरिरास |
सुमति गणि | नेमिनाथ रास |
बज्रसेन सूरि | भरतेश्वर बाहुबली घोर रास |
अभय तिलकमणि | महावीर रास |
लक्ष्मीतिलक उपाध्याय | शान्तिदेव रास |
जिन पद्य सूरि | स्थूलिभद्र फागु |
शालिभद्र सूरि | बुद्धिरास |
आसगु | जीवदया रास |
प्रज्ञातिलक | कच्छुली रास |
सारमुर्ति | जिनि पद्य सूरि रास |
उदयवंत | गौतम स्वामी रास |
शालिभद्र सूरि | पंच पांडव चरित रास |
नाथ सम्प्रदाय का प्रवर्तक मत्स्येन्द्र नाथ (मुछन्दर नाथ ) एवं गोरखनाथ माने गये है | नाथो का समय 12 वीं शती से 14 वीं शती तक है | हिंदी संत काव्य पर इसका पर्याप्त प्रभाव पडा है | डा. हजारी प्रसाद व्दिवेदी के अनुसार ‘नाथ पंथ या नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध मत, सिद्ध मार्ग, योग मार्ग, योग सम्प्रदाय, अवधूत मत एवं अवधूत सम्प्रदाय नाम भी प्रसिद्ध है |’ राहुलसांस्कृत्यायन ने सिद्ध साहित्य के विकसित रुप को ही नाथ साहित्य कहा है | नाथ साहित्य मे नारी को विषवेलि कहा गया है | ये लोग समझते है कि नारी योगियो को छलने के लिये ईश्वर का एक षडयंत्र है | नाथो का ईश्वर वाद सगुण ईश्वर के प्रति आस्था वान न होकर निरंजन के प्रति आस्थावान था | नाथ सम्प्रदाय के आराध्य देव शिव है |
सामान्यत: विव्दानो ने 76 नाथों की सूची प्रस्तुत की है | वास्तव मे नाथों की संख्या 9 प्रसिद्ध है | ‘गोरक्षसिद्धांत संग्रह’ मे नौ मार्ग प्रवर्तको के नाम गिनाये गये है | जिनका विवरण इस प्रकार है –
1: नागर्जुन
2:जडभरथ
3:हरिश्चन्द्र
4:सत्यनाथ
5:भीमनाथ
6:गोरक्षनाथ
7:चर्पटनाथ
8:लंधर
9:मलायार्जुन
नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख आधार स्तम्भ रहे है | जिनका विवरण इस प्रकार है –
नाथ गुरुओ की परम्परा मे आदिनाथ अर्थात शिव के पश्चात सर्वप्रथम आचार्य गुरु मत्स्येन्द्र नाथ माने गये इन्हे अवतार माना गया | इनका वास्तविक नाम विष्णु शर्मा था | मत्स्येन्द्रनाथ गोरखनाथ के गुरु थे | मत्स्येन्द्र नाथ के गुरु जालंधर नाथ थे | कहा जाता है कि मत्स्येन्द्रनाथ ने ‘कौलज्ञान निर्णय’ पुस्तक लिखी |
ये मत्स्येन्द्र नाथ के गुरु भाई थे | जालंधर नाथ के गुरु आदिनाथ अर्थात शिव है | इनकी अपभ्रंश मे लिखित दो महत्वपूर्ण ग्रंथ है – विमुक्त मंजरी गीत और चित्तबिन्दु भावना क्रम | जायसी के पद्मावत मे जालंधर नाथ और उनके शिष्य गोपी चन्द्र का उल्लेख है | जालंधर नाथ बालानाथ के नाम से भी जाने जाते है |
गुरु गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भ कर्ता माने जाते है | वे सिद्ध मत्स्येन्द्र नाथ के शिष्य थे | राहुलसांस्कृत्यायन जी ने गोरखनाथ का समय 845 ई. माना है | डा. हजारी प्रसाद व्दिवेदी उन्हे नवी शती का मानते है | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 13 वीं शती का बतलाते है तथा डा. पीताम्बरदत्त बड.थ्वाल ग्यारहवीं शती का मानते है |गोरखनाथ को सामान्यत: कागडा निवासी माना गया है |
मिश्र बंधुओ ने गोरखनाथ को प्रथम हिंदी गद्य लेखक माना है | सर्वप्रथम डा. पीताम्बरदत्त बड.थ्वाल ने गोरखनाथ की पुस्तको को ‘गोरखवाडी’ नाम से कराया जिसमे गोरखनाथ के चालीस पुस्तको का उल्लेख है | परंतु उन्होने केवल 14 पुस्तको को ही स्वीकार किया है |
गोरखनाथ के प्रमुख ग्रंथ है –
(i) सबदीपद
(ii) आत्मबोध
(iii) ज्ञानतिलक
(iv) ज्ञानचौतीसा
(v) पंचमात्रा आदि |
गोरखनाथ ने लिखा है कि धीर वह है जिसका चित्त विकार साधन होने पर भी विकृत नही होता है |
नौ लखपातरि आगे नाचै, पीछे सहज अखाडा |
ऐसे मन लै जोगी खेलै, तब अंतरि बसै भंडारा ||
नाथ साहित्य के विकास मे अनेक कवियो ने योगदान दिया हैं | वे कवि होने के साथ- साथ नाथ पंत के गुरु भी थे | कुछ प्रमुख कवियो के नाम है –
चौंरगीनाथ, गोपीचन्द्र, चुणकरनाथ, भरथरी, चर्पटनाथ,जलन्ध्रीपाव, नागार्जुन, काणेरी आदि |
आदिकाल में रचित साहित्य में रासो काव्य ग्रंथो का महत्वपूर्ण
स्थान है |आदिकाल मे जैन कवियों ने जिस रास काव्य की रचना की है वह वीर रस प्रधान रासो काव्यसे भिन्न है |वीर रस प्रधान साहित्य की रचनायें अधिकतर चारण कवियों ने की है |
रासो शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बंध में विद्वानो मे मतभेद है |इस सम्बंध मे प्रमुख विद्वानो के विचार निम्नलिखित है –
1.गार्सा द तासी के अनुसार – फ्रांसीसी विद्वान गार्सा द तासी ने ‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बंध मे विचार किया और इसे राजसूय शब्द से उत्पन्न माना है |
उदाहरणस्वरूप—-– राजसूय—– रासो
डा. नरोत्तम स्वामी ने रासो शब्द की व्युत्पत्ति राजस्थानी भाषा के ‘रसिक’ शब्द से माना है, जिसका अर्थ है – कथाकाव्य
उदाहरण- रसिक रासंउ—— रासो
उदाहरण——-राजयश रासो
इन्होने रास शब्द से रासो की व्युत्पत्ति मानी है
उदाहरण—— रास रासो
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘रसायण’ शब्द से माना है |उन्होने वीसल देव रासो की एक पंक्ति उद्धृत की है |जिसमे रसायण शब्द का उल्लेख हुआ है | जो इस प्रकार है—–
बारह सौ बहोत्तरां मझारि ,जेथ बदी नबमी बुधवारि |
नाल्ह रसायणआरंभाई ,शारदा तुठी ब्रहमकुमारि | |
उदाहरण स्वरुप —— रासक रासा रासा रासो
कवि | रचना | विशेष |
दलपति विजय | खुमाण रासो | 1.ग्रंथ की रचना लगभग 5000 छंदो मे की गयी है |2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस नवीं शताब्दी की रचना माना है | |
नरपति नाल्ह | बीसलदेव रासो | 1.इसका रचना काल 1155 ई0 मे | 2. यह 125 छंदो की रचना है | 3. इस ग्रंथ मे सर्वप्रथम बारहमासा वर्णन मिलता है | |
शार्डगधर | हमीर रासो | 1.’प्राकृत पैगलम्’ नामक ग्रंथ ने हमीर रासो के कुछ छंद मिले थे , आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसी के आधार पर उसकी अस्तित्व की कल्पना की थी | |
जगनिक | परमाल रासो (आल्हखण्ड) | 1.इस ग्रंथ का रचना काल 13 वीं शती मे माना जाता है | 2. यह लोक गेय काव्य था | 3. सन् 1865 ई0 मे चार्ल्स इलियट ने आल्हखण्ड का प्रकाशन करवाया था | |
चंद्रबरदायी | पृथ्वी राजरासो | 1.इस ग्रंथ मे कुल 69 समय (सर्ग) है , तथा 16306 छंद है |2. पृथ्वी राजरासो का अपूर्ण भाग चन्द्रबरदायी के पुत्र जल्हण ने पुरा किया | |
श्रीधर | रणमल्ल छंद | 1.इस ग्रंथ का रचना काल 1397 ई0 है | |
आदिकाल मे स्वच्छंद रुप मे लौकिक विषयो पर ग्रंथ लिखने की प्रवृत्ति मिलती है |लौकिक साहित्य का विवरण निम्नलिखित है –
कवि | रचना | विशेष |
कुशलराय | ढोला – मारु रा दूहा | 1.इस ग्रंथ की रचना 11 वीं शती मे हुई | 2. यह काव्य विराह वर्णन मे अव्दितीय है | 3. इसमे ढोला नामक राजकुमार और मारवणी नामक राजकुमारी की प्रेमकथा का वर्णन | |
भट्टकेदार | जयचंद्र प्रकाश | 1.इस रचना मे महाराज जयचंद्र के प्रताप का वर्णन | 2. इस कृति का ‘राठौर रीख्यात’ मे उल्लेख मिलता है परंतु अभी तक ये उपलब्ध नही हुई है | |
मधुकर कवि | जयमयंक जस चंद्रिका | 1.इस ग्रंथ का रचना काल 1168 ई0 है | 2. ये ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नही है, मात्र ‘राठौर रीख्यात’ ने इसका उल्लेख हुआ है | |
आदि काल के कुछ कवियो ने महत्वपूर्ण रचनाएँ स्वच्छंद रुप से की हैं |
जिनका का विवरण निम्नलिखित है –
1:अमीरखुसरो – इनका जन्म उत्तर प्रदेश के एटा जिला मे सन् 1252 ई0 मे तथा मृत्यु 92 वर्ष के अवस्था मे सन् 1325 ई0 मे हुई थी | अमीरखुसरो का वास्तविक नाम अबुल हसन था | इनके गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया थे |
अमीरखुसरो को खडी बोली हिंदी का प्रथम कवि कहा जाता है | अनेक विव्दानो ने इन्हें हिंदुस्तान की तूती कहा है |
खुसरो मूलत: फारसी के कवि थे | कहा जाता है कि इन्होने 99 पुस्तको की रचना की, परंतु केवल 22 रचनाएँ ही प्राप्त है |हिंदी मे खुसरो की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है –
i) खालिकवारी – (यह एक शब्द कोष है |)
ii) खुसरो की पहेलियाँ
iii) मुकरियाँ
iv) दो सखुने
v) गजल
वास्तव मे अमीरखुसरो हिंदू – मुस्लिम एकता के प्रतीक है , खुसरो के रचनाओ के नमूने इस प्रकार है –
तरवर से इक तिरिया उतरी, उसने बहुत रिझाया |
बाप का उसने नाम जो पूछा, आधा नाम बताया ||
आधा नाम पिता पर प्यारा, बूझ पहेली गोरी |
अमीर खुसरो यो कहे, अपने नाम न बोली ’निबोली’ ||
एक थाल मोती से भरा |
सबके सिर पर औधा धरा ||
चारो ओर वह धाली फिरे |
मोती उससे एक न गिरे ||
एक नार ने अचरज किया, साँप मारि पिंजरे मे दिया |
जो – जो साँप ताल को खाए, सूखे ताल साँप मर जायें ||
खीर पकाये जतन से, चरखा दिया चलाय |
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजाय ||
जे हाल मिसकी मकुन तगाफुल दुराय नैना, बनाय बतियाँ |
कि ताबे हिज्राँ न दारम, ऐ जाँ ! न लेहु काहे लगाय छतियाँ ||
शबाने हिज्रा दराज चूँ जुल्फ व रोजे बसलत चूँ उम्र कोतह |
सखी ! पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँन्धेरी रतियाँ ||
विव्दानो ने विद्यापति का जन्म 1368 ई0 मे स्वीकार किया | विद्यापति मिथिला के विसपी नामल गाँव मे पैदा हुए थे | विद्यापति आंसुकवि थे , तथा साहित्य मे सबसे अधिक उपाधिया ग्रहण करने वाले सम्भवत: विद्यापति ही थे | इन्हे अभिनय जयदेव,कवि शेखर, कवि कण्ठहार, राजपण्डित,खेलन कवि, सरस कवि, कविरत्न, नवकवि और मैथिल कोकिल आदि उपाधिया दी गयीं | विद्यापति शैव थे | उनकी पदावली मे भक्ति एवं श्रृंगार का समन्वय दिखाई पडता है |
विद्यापति मे हिंदी तथा संस्कृत दोनो भाषाओ मे काव्य रचना की है | जिसका विवरण इस प्रकार है –
1:विद्यापति पदावली – ‘मैथिली’ भाषा मे रचित श्रृंगारिक रचना है |
2:कीर्तिलता – वीर काव्य रचना अपभ्रंश (अवहट्ठ) भाषा मे है |
3:कीर्तिपताका – यह रचना भी वीरकाव्य रचना है | जो अपभ्रंश भाषा मे लिखा गया है |
1:भूपरिक्रमा
2:शैवसर्वस्य
3:लिखनावली
4:गंगा वाक्यावली
5:विभागसार
6:पुरूष परीक्षा
आदि काल मे काव्य रचना के साथ – साथ गद्य रचना की दिशा मे भी प्रयास हुआ है | जिसका विवरण इस प्रकार है –
लेखक | रचना | विशेष |
रोडा | राउलवेल | 1.यह एक शिलांकित कृति है | 2. विव्दानो ने इसका रचना काल 10 वीं शताब्दी माना है | 3. यह गद्य – पद्य मिश्रित चम्पू काव्य की प्राचीनतम हिंदी कृति है | |
दामोदर शर्मा | उक्ति – व्यक्ति – प्रकरण | 1.यह एक व्याकरण ग्रंथ है | 2. इस पुस्तक की रचना 12 वीं शताब्दी मे हुई | 3. दामोदर शर्मा प्रसिद्ध गहडवाल शासक महाराज गोविंद चंद्र के सभा पण्डित थे | |
ज्योतिरीश्वर ठाकुर (मैथिलिकवि) | वर्णरत्नाकर | 1.यह मैथिली हिन्दी मे रचित गद्य रचना है | 2. यह रचना शब्द कोष जैसा प्रतीत होता है | 3. यह कृति डा. सुनीति कुमार चटर्जी तथा डा. बबुआ मिश्र द्वारा सम्पादित होकर एसियाटिक सोसाइटी आँफ बंगाल से 1940 ई0 मे प्रकासित हुई | |
आदिकाल की प्रवृत्तियों का विवरण इस प्रकार है |
1: रासो (चरित काव्य या कथा काव्य) काव्यों की रचना
2: मुक्तक एवं प्रबंध काव्यों की रचना
3: संदिग्ध प्रामाणिकता
4: वीर तथा श्रृंगार रस की प्रधानता
5: ऐतिहासिकता का अभाव
6: सिद्ध जैन, नाथ सम्प्रदाय द्वारा धार्मिक काव्य रचना
7: छंदो की विविधता लोक साहित्य की रचना
8: कल्पना का प्राचुर्य
9: संकुचित राष्ट्रियता
तथा डिंगल –पिंगल भाषा का प्रयोग
डिंगल भाषा अपभ्रंश + राजस्थानी का योग
ब. पिंगल भाषा अपभ्रंश + ब्रजभाषा का योग
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