छंद

 छंद की परिभाषा

गति , तुक , मात्रा, विराम , आदि नियमों पर आधारित काव्य रचना को छंद कहते है | ‘ छंद ‘ का अर्थ ‘ बंधन ‘ होता है | छंद को पिंगल एवं वृत्त आदि नामों से जाना जाता है |

छंद का सामान्य परिचय –

छंद शास्त्र का इतिहास बहुत पुराना है | छंद शब्द पर विचार किया जाय तो , छंद शब्द संस्कृत के छिदि धातु से बना है | छिदि धातु का अर्थ है – ढँकना , आच्छादित करना | प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में सर्वप्रथम छंद पर चर्चा हुई है | ऋग्वेद की रचना छंदोबद्ध है |
छंद शास्त्र के आदि प्रणेता पिंगल ऋषि थे | इनके ग्रंथ को छंद शास्त्र का आदि ग्रंथ मानते है | इनके ग्रंथ को “ पिंगलशास्त्र ” कहा जाता है | आज पिंगल ,छंद शब्द का पर्यायवाची शब्द हो गया है | छंद रचना के कारण ही आज इतने वर्षों के बाद भी पद्य रचना सुरक्षित है | इस प्रकार स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यदि गद्य की कसौटी “व्याकरण” है तो कविता या काव्य की कसौटी “ छंद शास्त्र” को माना जा सकता है |

छंद के अंग –

छंद रचना विधान को समझने के लिये छंद के आंगों का ज्ञान होना आवश्यक है | इसके अंगों का वर्णन इस प्रकार है—

  1. वर्ण – वर्ण ध्वनि की सबसे छोटी इकाई है | वर्ण को दो भागों में बाटाँ जा सकता है –

 

  • ह्रस्व स्वर –

 

    जिन वर्णों के उच्चारण करने में कम समय लगता है उसे ह्रस्व स्वर कहते है | ‘ छंद ‘ में ह्रस्व को लघु कहते है | लघु की एक मात्रा होती है | जिसे “ |” इस संकेतसे प्रदर्शित करते हैं |

ह्र्स्व स्वर – अ ,इ ,उ , ऋ , चंद्र बिंदु

 

  • दीर्घ स्वर –

 

    जिस स्वर के उच्चारण करने में ह्र्स्व स्वर से दुगुना समय लगता है , उसे दीर्घ स्वर कहते है | “ छंद ” में दीर्घ को ‘ गुरू ’ कहते है | गुरू की दो मात्रा होती है | जिसे “ s” संकेत से प्रदर्शित करते है |

दीर्घ स्वर – आ , ई , ऊ , ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अनुस्वार  ,विसर्ग |

  1. मात्रा- किसी भी स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है , उसे मात्रा कहते है | लघु मात्रा का चिह्न [ | ] तथा गुरु मात्रा का चिह्न [ s ] है | जब मात्राओं की गणना करते है तो लघु की एक तथा गुरु की दो मात्रा की गणना करते है | छंदों की पहचान गणना करने से ही होती है |
  2. गति – काव्य को पढ़ते समय जो प्रवाह होता है, उसे गति कहते हैं | प्रत्येक छंद की गति अलग –अलग होती है |
  3. यति – प्रत्येक छंद को पढ़ते समय जिस स्थान पर रूकते है या विराम लेते है, उसे ‘ यति ’ कहा जाता है |
  4. तुक – छंद कई चरणों में होते हैं | चरण के अंत में आने वाले समान वर्णों को “ तुक ”कहते है | इनके उच्चारण नें भी समानता होती है |
  5. पाद या चरण – प्रत्येक छंद में कम से कम चार चरण होते है | इससे ज्यादा भी चरण होते है | चरण को पद या पाद भी कहते हैं |
  6. गण – तीन वर्णों के समूह को एक गण माना जाता है | गणों की संख्या आठ है | जिसके नाम और संकेत इस प्रकार हैं |

 

गण का नाम और संकेत

क्र. गण का नाम परिभाषा संकेत
1 यग़ण प्रारम्भ का वर्ण लघु ISS
2 मगण तीनों वर्ण गुरु SSS
3 तगण अंतिम वर्ण लघु SSI
4 रगण मध्य का वर्ण लघु SIS
5 जगण मध्य का वर्ण गुरू ISI
6 भरण प्रारम्भ का वर्ण गुरू SII
7 नगण तीनों वर्ण लघु III
8 सगण अंतिम वर्ण गुरु IIS

 

गणों को आसानी से याद करने एवं  समझने के लिये एक बहुचर्चित सूत्र है –

“ यमाताराजभानसलगा ”

|

इस सूत्र के प्रथम आठ वर्ण में आठ गणों के नाम हैं | अंतिम दो वर्ण आठवें गण को मिलान करने हेतु हैं |

गण का विचार केवल वार्णिक छंद में किया जाता है | ऊपर के सूत्र को निम्न तालिका द्वारा समझा जा सकता है |

‘ यमाताराजभानसलगा ’ सूत्र का स्पष्टीकरण एवं तालिका

सूत्र संकेत मात्रा गण का नाम
यमाता ISS यगण
मातारा SSS मगण
ताराज SSI तगण
राजभा SIS रगण
जमान ISI जगण
भानस SII भगण
नसल III नगण
सलगा IIS सगण

 

चरणों के आधार पर छंदों के भेद –  पाद या चरण के आधार पर छंद के तीन भेद है |

  • समवृत्त – जिसके सभी चरणों में मात्राओं तथा वर्णों की संख्या समान हो | उसे समवृत्त छंद कहते है | जैसे – चौपाई , इंद्रवज्रा आदि |
  • अर्ध समवृत्त – जहाँ पर प्रथम और तृतीय चरणों तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में मात्राओं और वर्णों की संख्या में समानता होती है | उसे अर्ध समृत्त कहते हैं | जैसे –दोहा ,सोरठा आदि |
  • विषम वृत्त – जिसके चारों चरणों में मात्राओं और वर्णों की असमानता होती है | उसे विषमवृत्त कहते हैं | जैसे- आर्या , लक्ष्मी |

मात्राओं और वर्णों की  संख्या के आधार पर भेद –

  1. साधारण वृत्त – वार्णिक छंदों में 26 वर्णों तक तथा मात्रिक छंदों में 32 मात्राओं तक के छंदों को “ साधारण वृत्त “ कहते है |
  2. दण्डक वृत्त – वार्णिक छंदों में 26 वर्णों से अधिक वाले तथा मात्रिक छंदों में 32 मात्राओं से अधिक वाले छंदों को “ दण्डक वृत्त” कहते है |

 

छंदों के भेद – मुख्यत: छंद के दो भेद हैं –

  • मात्रिक छन्द – जिस छंद में मात्राओं की गणना के आधार पर छंदों की पहचान की जाती है , उसे मात्रिक छंद कहते है | इस छ्न्द में मात्राओं की संख्या के आधार पर छंदों का विचार किया जाता है | जैसे- दोहा , सोरठा ,बरवै आदि |

हिंदी के प्रमुख मात्रिक छंदों का वर्णन निम्न प्रकार है –

  • दोहा – इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती है | दोहा छ्न्द अर्द्ध सममात्रिक छंद होता है |

उदाहरण –

S  S  I  I   S   S    I  S      S   S    S  I  I     S I  =13+11=24

मेरी   भव  बाधा    हरौ ,     राधा  नागरि     सोइ |

S      I  I    S    S   S  I  S     S   I     I  I  I    I  I     S  I =13+11=24

जा   तन   की   झाईं   परे,     श्यामु   हरित      दुति    होइ ||

  • सोरठा – इसके पहले और तीसरे चरण में 11 – 11 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 -13 मात्राएँ होती है | यह दोहे का उल्टा होता है | यह अर्द्ध सममात्रिक छंद होता है |

उदाहरण –

S  I    I  S I I    S   I         I I I      I  I  I    S I  I    I  I  I =11+13=24

नील   सरोरुह    श्याम ,     तरुन     अरुन    वारिज    नयन |

करहु   सो   मन उर धाम , सदा    क्षीर     सागर      सयन ||

  • चौपाई – चौपाई में चार चरण होते है | प्रत्येक चरण में 16–16 मात्राएँ होती है | यह सममात्रिक छंद है |

उदाहरण –

I  I     I  I     I  S    I   S   I   I    S   S   =16

बिनु    पग     चले   सुने    बिनु    काना |

कर   बिनु  कर्म   करे   विधि    नाना ||

तनु   बिनु   परस   नयन   बिनु  देखा|

गहे   घ्राण   बिनु   वास       असेखा ||

  • रोला- इसमें चार चरण होते है | प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है | प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं पर “ यति ” ( विराम ) होता है |

उदाहरण –

S  S     S  S    I  S      I     S  S     S  I  I    S  S =11+13=24

जीती   जाती    हुई ,    जिन्होने      भारत   बाजी|

निज    बल    से   मलमेट,   विघर्मी   मुगल कुराजी||

जिनके   आगे    ठहर ,  सके  जंगी   न      जहाजी |

है   ये   वहीं    प्रसिद्ध  ,   छत्रपति   वीर    शिवाजी ||

  • बरवै – इसमें चार चरण होते है | पहले और तीसरे चरण में 12-12 तथा दूसरे और चौथे चरण में 7-7 मात्राएँ होती है | यह अर्द्ध सममात्रिक छंद है | बरवै छंद का उदाहरण –

उदाहरण –
I  I I    I S      S    I I    I I     S    I I     S I =12+12=24

अवधि  शिला का   उस   पर   , था   गुरू   भार |

तिल –तिल   काट   रही   थी  , दृग    जलधार ||

  • कुण्डलिया – दोहा और रोला छंद को मिलाकर कुण्डलिया छंद बनता है | पहले दो चरण ‘ दोहे ’ का लक्षण तथा बाद के चार चरण में ‘ रोला ‘ का लक्षण होता है | कुण्डलिया में छ: चरण होते है तथा प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है |

उदाहरण –

I I S  I I     I I   S I     I  I   I I    S S    S     S I = 13+11=24

रहिये लट   पट  काटि   दिन , बरु   घामें   माँ  सोय |

S I     I     S S   S I S       S   I I    I I S    S  I   = 13+11=24

छाह   न   बाकी  बैठिये ,   जो  तरु   पतरो    होय ||

S     I I    I IS    S I      S I    I I   S   S   S   S =11+13=24

जो   तरु   पतरो   होय ,   एक  दिन  धोखा  दै   है |

जो   दिन   चले   बपरि   , टुटि   तब   जर ते  जैहे ||

कह  ‘ गिरधर ‘  कविराय  , छँह  मोटे  की  गहिये |

पातो  सब  झरिजाय , तरु  छाया   में   रहिये ||

  • हरिगीतिका – इस छंद में चार चरण होते है प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती है | प्रत्येक चरण में 16 और 12 मात्राओं पर ‘यति ’ होती है | सममात्रिक छंद है |

उदाहरण –

S      S I     S   I I    I I I   I S I     S I     S  I I S   I S =16+12=28

श्री  कृष्ण   के  सुन   वचन  अर्जुन , क्रोध   से जलने  लगे |

सब शोक अपनाभूल करके , कर – युगल मलने लगे |

मुख बाल – रवि सम लाल होकर, ज्वाल सा बोधित हुआ |

प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या , काल भी क्रोधित हुआ |

  • उल्लाला – इस छंद में चार चरण होते है | पहले और तीसरे चरण में 15-15 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 -13 मात्राएँ होती है | यह अर्द्ध सममात्रिक छंद है |

उदाहरण –

I I    SI       I S I I      S    I S   I I S     S    I I I I   I I I=15+13=28

सब   भाँति   सुशासित हो जहाँ , समता   के   सुखकर  नियम |

बस इसी स्वशासित देश में , जागे हे जगदीश हम ||

  • छप्पय – यह छंद रोला छंद तथा उल्लाला छंद को मिलाकर बनता है | इस छंद में छ: चरण होते है | प्रथम चार चरण रोला छंद के तथा अंतिम दो चरण उल्लाला छंद के होते है | यह विषम मात्रिक छंद है |

उदाहरण –

S S SI       I I S I      I I I   I I   I I    SII    S = 24

नीलाम्बर परिधान , हरित   पट   पर   सुंदर   है ,

सूर्य चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है |

नदियाँ होम प्रवाह , फूल तारेमण्डल है ,

बंदीजन खगवृन्द ,शेषफल सिन्हासन है |

I IS     I I SI   I S I    S    I I SS      I I  S I      S = 28

करते अभिषेक पयोद   हैं , बलिहारी  इस   वेश     की ,

हे मातृभूमि ! तू सत्य ही , सगुण मूर्ति सर्वेश की |

  • गीतिका छंद – इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती है | 14 एवं 12 मात्राओं पर यति का विधान होता है |यह छंद सम मात्रिक है | इसमें चार चरण होते है |

उदाहरण –

S   IS      S SI SS     S  I    I  I S     S I S = 26

हे   प्रभो   आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए |

शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए |

लीजिए हमको शरण में , हम सदाचारी बने |

ब्रह्मचारी , धर्मरक्षक , वीर व्रतचारी बने |

 

  • वार्णिक छंद – जिस छंद में वर्णों की गणना के आधार पर छंदो की पहचान की जाती है , उसे वार्णिक छंद कहते है | इस छंद में वर्णों की संख्या के आधार पर छंदों पर विचार किया जाता है | जैसे – इंद्रवज्रा , उपेंद्रवज्रा आदि |

हिंदी के प्रमुख वार्णिक छन्द –

  1. इंद्रवज्रा –इस छंद में चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं | इसमें तगण , तगण ,जगण ,गुरू , गुरू का क्रम निर्धारित होता है | चरण के अंत में यति होती है | समवार्णिक छंद है |

उदाहरण –

तगण  तगण  जगण  गुरु  गुरु  

S S I S S I I S I S S

जागो उठो भारत देशवासी ,

आलस्य त्यागो न बनो विलासी |

उँचे उठो दिव्य कला दिखाओ,

संसार में पूज्य पुन: कहलाओं |

  1. उपेंद्रवज्रा – इस छंद में चार चरण होते है | प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते है | इसमें जगण ,तगण , जगण , गुरु , गुरु का क्रम निर्धारित होता है | चरण के अंत में यति होती है |यह समवार्णिक छंद है |

उदाहरण –

बड़ा छोटा कुछ काम कीजै |

परंतु पूर्वापर सोच लीजै |

बिना विचारे यदि काम होगा |

कभी न अच्छा परिणाम होगा |

  1. वंश्स्थ – इस छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं | इसमें जगण , तगण जगण , रगण का क्रम निर्धारित होता है |यह समवार्णिक छंद है |

उदाहरण –

दिनांत था , थे दिननाथ डूबते ,

सधेनुआते गृह ग्वाल बाल थे |

दिगंतमें गो रज थी समुत्थिता ,

विषाण नाना बजते सवेणु थे |

  1. बसंततिलका – इस छंद में चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते है | इसमें तगण ,भगण , जगण , जगण , गुरु , गुरु का क्रम निर्धारित होता है | यह समवार्णिक छंद है |

उदाहरण –

भू में रमी शरद की कमनीयता थी |

नीला अनंत नभ निर्मलहो गया था |

थी छा गयी कुकुभ में , अमिता सिताभा |

उत्फुल्ल सी प्रकृति भी प्रतिभात होती ||

  1. मालिनी – इस छंद में चार चरण होते है | प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं | इसमें नगण , नगण , मगण , यगण ,यगण , का क्रम निर्धारित होता है | आठवें और सातवें वर्णों पर यति होती है | यह समवार्णिक छंद है |

उदाहरण –

प्रिय पति वह मेरा प्राणप्यारा कहाँ है ?

दुख जलनिधि –डूबी का सहारा कहाँ है ?

लख मुख मैं आ लौ जी सकी हूँ ,

वह हृदय हमारा नैन-तारा कहाँ है ?

  1. सवैया – सवैया में 22 से 26 वर्ण तक होते हैं | इसके कई भेद है जैसे – सुमुखी ,सुंदरी , मत्तगयंद आदि |
  • मत्तगयंद सवैया – यह छंद सवैया छंद का एक भेद है | इसमें चार चरण होते है | प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते है | इसमें सात भगण और 2 गुरु का क्रम निर्धारित है | 12 और 11 वर्णों पर ‘ यति ‘ होती है | इसका अन्य नाम ‘ मालती ‘ अथवा ‘ इंदव ‘ है |

उदाहरण –

या लकुटी अरु कामरिया पर , राज तिहँपुर को तजि डारौं |

आठहुँ सिद्ध नवों निधि को सुख , नंद की धेनु चराय बिसारौं ||

‘ रसखान ‘ कबौ इन आँखिन तें , ब्रज के वन बाग गड़ारा निहारौं |

कोटिक हूँ कलधौत के धाम , करील की कुंजन ऊपर वारौ ||

  1. मंदाक्रांता – इस छंद में चार चरण होते है | प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं | इसमे मगण , भगण , नगण , तगण ,तगण , गुरू ,गुरू का क्रम निर्धारित होता है | यह समवार्णिक छंद है | 10 और 7 वर्णों पर यति होती है |

उदाहरण –

प्यारे तेरा गमन सुन के दूसरे रो रहे है ;

मैं रोती हूँ ,सकल ब्रज है वारि लाता दृगों में |

सोचो बेटा, उस जननी की क्या दशा आज होगी,

तेरे जैसा सरल जिसका एक ही लाड़ला है |

  1. कवित्त या मनहर – इस छंद में चार चरण होते है | प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं | चरण का अंतिम वर्ण गुरू होता है | 16 और 15 वर्णों पर यति होती है |

उदाहरण –

मंजुल मृदुल मुरलीके स्वर के समान , उनका सरस गान गूँजता है कान में |

उसका अनूप रूप भूलता कभी नहीं ,चाहे कुछ सोचूँ किंतु आता वही ध्यान में|

सुखकर उसके शरीर की सुगंध जैसी,है मुझे उसी की सुध आती आन–आन में|

प्राण में उसी की मूर्ति मंजु है समायी हुई , मानों उड़त है वहीं साँसों की विमान में |

 

मुक्त छंद के सम्बंध में –

मुक्त छंद उस छंद को कहते है जो कविता या काव्य नियमबद्ध नहीं होते |नियमों से मुक्त रचना को मुक्त छंद के अंतर्गत माना जाता है | मेरा ऐसा मानना है कि ‘ छंद ‘का मूल स्वभाव है कि किसी भी नियम में काव्य रचना को आकार देना| नियमों से परे छंद की कल्पना नहीं की जा सकती है | इस कारण मुक्त छंद को छंद के अंग के अंतर्गत नहीं माना जा सकता|

मुक्त छंद आधुनिक काल की देन है | मुक्त छंद में काव्य के सभी नियमों को तोड़ते हुए कविता स्वच्छंद रूप से भाव प्रेरित हो कर अविरल रुप से प्रवाहित होती है | महाकवि ‘ निराला ‘ जी ने इस दिया में बहुत ही सराहनीय कार्य किया है | भावमय कविता मानवता के उच्च शिखर पर पहुँचकर लोक को आलोकित करती है | मुक्त छंद में रचित कविता नये विचारधारा एवं सर्व समाज की विविध संरचनाओं को मुक्तकंठ से व्याख्यायित करती है |

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